दिल्ली की जनता ने नाकाम कर दिया अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र

अजय सेतिया
दिल्ली की जनता ने नाकाम कर दिया अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र
दिल्ली के चुनाव परिणाम बहुत कुछ कहते हैं। दिल्ली की जनता ने सिर्फ केजरीवाल को नहीं हराया बल्कि जॉर्ज सोरोस, भारत विरोधी अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों और अमेरिका-यूरोप के डीप स्टेट को हराया है, जो 2010 से भारत में अराजकता फैलाने का षड्यंत्र रच रहे थे। 2010-11 में जब मनमोहन सरकार में जमकर भ्रष्टाचार हो रहा था, तब सबसे पहले बाबा रामदेव ने दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के विरुद्ध धरना शुरू किया था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने पुलिस बल का प्रयोग करके धरना उठवा दिया। उसके बाद भारत की राजनीति पर दृष्टि रखने वाली पर अंतर्राष्ट्रीय शक्ति को लग रहा था कि भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभर रही है, उसे रोकने के लिए उन्होंने ऐसे लोगों की खोज की, जो अमेरिका की कम्युनिस्ट लॉबी के चंदे पर पलते थे और भारत में वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति बन सकते थे।
आज उस इतिहास को याद करने की आवश्यकता है, कि कैसे अरविन्द केजरीवाल ने बाबा रामदेव और अन्ना हजारे का प्रयोग करके राजनीतिक शक्ति बनने का लक्ष्य प्राप्त किया था। उन लोगों ने, जिनकी सामाजिक हैसियत कुछ भी नहीं थी, उन्होंने सबसे पहले बाबा रामदेव का प्रयोग किया। बाबा रामदेव ने 14 नवंबर 2010 को कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध रामलीला मैदान में रैली की थी। इस रैली के बाद कुछ लोगों ने मिल कर एक मीटिंग की, जिसने अन्ना हजारे को दिल्ली में धरना देने के लिए बुलाने का निर्णय किया। अरविन्द केजरीवाल, शान्ति भूषण, प्रशांत भूषण, किरन बेदी, राम जेठमलानी, मेधा पाटकर, स्वामी अग्निवेश, कर्नल देवेन्द्र सहरावत, सुनीता गोदारा, दिल्ली का आर्कबिशप, जस्टिस डीएस तवेतिया, देवेन्द्र शर्मा, पीवी राजगोपाल, त्रिलोक शर्मा और आश्चर्यजनक ढंग से उनके साथ हर्ष मंदर भी शामिल थे, जो सोनिया गांधी की एनएसी के भी सदस्य थे। इनमें से ज्यादातर लोग ऐसे थे, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र की भनक ही नहीं थी, कि यह असल में भाजपा को रोकने के उद्देश्य से वैकल्पिक राजनीतिक दल बनाने की बड़ी चेष्टा के अंतर्गत सब कुछ हो रहा था। वरना भाजपा आरएसएस के घोर विरोधी और सोनिया गांधी की टीम के सदस्य हर्ष मंदर इस ग्रुप में शामिल क्यों थे।
अन्ना हजारे की सहमति से पहले देश भर में भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन शुरू हो चुका था। भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के पीछे अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां किस तरह शामिल थी, इसका एक प्रमाण यह है कि 12 मार्च 2011 को कैलिफोर्निया में भारत के भ्रष्टाचार के विरुद्ध मार्च शुरू किया गया (जिसमें वहां के कुछ एनआरआई शामिल हुए थे) जो भारत में लोकपाल के गठन और विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों का काला धन वापस लाने की मांग करते हुए 26 मार्च को सेन फ्रान्सिसको में समाप्त हुआ। इधर आन्दोलन की रूपरेखा बनाने वाले अरविन्द केजरीवाल ने अन्ना हजारे से सम्पर्क किया, तो अन्ना हजारे ने मांग की कि सरकार और सिविल सोसायटी मिल कर जन लोकपाल का ड्राफ्ट तैयार करें। क्या यह मांग अन्ना हजारे की स्वयं की थी,
या अरविन्द केजरीवाल ने उन्हें सामने रख कर उनसे यह मांग रखवाई थी? मनमोहन सिंह सरकार ने यह मांग नहीं मानी, तो 5 अप्रैल 2011 को अन्ना हजारे ने जन लोकपाल की मांग करते हुए दिल्ली के जंतर मन्तर पर भूख हड़ताल शुरू कर दी, जिसमें बाबा रामदेव भी शामिल हुए। बाबा रामदेव, किरन बेदी और अरविन्द केजरीवाल जन लोकपाल के साथ विदेशों में जमा भारतीय धन को वापस लाने की मांग भी कर रहे थे। तब अरविन्द केजरीवाल भारत के कई कांग्रेसी और एनसीपी नेताओं का नाम लेकर कहते थे कि इनके विदेशी बैंक खातों की डिटेल उनके पास है। खैर! अन्ना हजारे, बाबा रामदेव और कई अन्यों को इस सारे आन्दोलन के पीछे अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र की कोई जानकारी नहीं थी। आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, भाजपा ने खुल कर समर्थन दिया। स्वाभाविक है कि उन्हें भी इस बात की भनक नहीं थी कि आन्दोलन के पीछे अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों की भी कोई भूमिका है या अरविन्द केजरीवाल के पीछे अमेरिका की फोर्ड फाउंडेशन और जॉर्ज सोरोस की क्या भूमिका है? अमेरिका के भारत विरोधी डीप स्टेट की क्या भूमिका है? दिल्ली का आर्क बिशप और अमेरिका की फंडिंग एजेंसियों से फंड लेकर भारत की विकास परियोजनाओं के विरुद्ध आन्दोलन करने वाली मेधा पाटकर इस आंदोलन में किसके इशारे पर कूदी थी? अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन में भी अन्ना हजारे के आन्दोलन के समर्थन में रैलियाँ हुईं, उन्हें कौन ओर्गेनाईज कर रहा था? आखिर मनमोहन सरकार ने आन्दोलन के सामने घुटने टेक दिए। वह सरकार और आन्दोलनकारियों की एक कमेटी बनाने को राजी हो गई। जिसके चेयरमेन प्रणब मुखर्जी बनाए गए, कमेटी में शान्ति भूषण को सहायक चेयरमैन बनाया गया। कमेटी में शरद पवार को भी रखा गया था, जिस पर अन्ना हजारे ने आपत्ति की, क्योंकि वह उन्हें महाभ्रष्ट कह चुके थे। शरद पवार ने कमेटी से त्यागपत्र दे दिया। शान्ति भूषण ने अन्ना हजारे, जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल के साथ बातचीत करके एक ड्राफ्ट तैयार किया था।
प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाली ड्राफ्ट कमेटी की पहली बैठक 16 अप्रैल को हुई। इधर जब सरकार से बातचीत शुरू हो गई थी, तो अन्ना का आन्दोलन समाप्त हो गया था। उधर 4 जून को रामलीला मैदान में बाबा रामदेव का आन्दोलन शुरू हो गया। पहले तो सरकार ने उनके साथ बातचीत शुरू की, और बाद में 5 जून की रात को दिल्ली पुलिस ने रामलीला मैदान के तंबू उखाड़ फेंके, जिसकी कांग्रेस और आरजेडी को छोड़कर देश के लगभग सभी दलों ने आलोचना की। जून 2011 के मध्य में जन लोकपाल की ड्राफ्ट कमेटी में मतभेद पैदा हुए, तब सरकार ने कहा कि वह सिविल सोसायटी और सरकार की ओर से बनाए गए ड्राफ्ट केबिनेट कमेटी में रख देगी। अन्ना हजारे का सारा फोकस जन लोकपाल पर था, जबकि अरविन्द केजरीवाल एंड कंपनी का टार्गेट कुछ और था। अन्ना हजारे ने 16 अगस्त से जन लोकपाल के लिए फिर से अनशन शुरू करने की घोषणा कर दी। मनमोहन सरकार ने 16 अगस्त को सुबह ही अन्ना हजारे और उनके लगभग 1200 समर्थकों को हिरासत में ले लिया। शान्ति भूषण और किरन बेदी समेत ज्यादातर को शाम को छोड़ दिया गया, लेकिन अन्ना हजारे को तिहाड़ जेल भेज दिया गया। देश भर में आन्दोलन शुरू हो गया, तो राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह को सलाह दी कि अन्ना हजारे को छोड़ दिया जाए। यह जांच का विषय है कि जब सारी कांग्रेस अन्ना आन्दोलन के पीछे अन्तर्राष्ट्रीय षड्यंत्र देख रही थी, तब राहुल गांधी ने किसके इशारे पर अन्ना को रिहा करने की सलाह दी थी। सरकार ने मजिस्ट्रेट से उन्हें रिहा करने का आदेश जारी करवा दिया था। लेकिन अन्ना हजारे ने तब तक जेल से बाहर आने से इनकार कर दिया, जब तक उन्हें आन्दोलन के लिए जगह उपलब्ध नहीं करवाई जाती। अगले दिन 17 अगस्त को कांग्रेस ने एक आधिकारिक बयान जारी किया, जिसमें उसने कहा कि उसे इस आन्दोलन के पीछे विदेशी हाथ की आशंका है। कांग्रेस ने सरकार से जांच करने की मांग की कि क्या इस आन्दोलन के पीछे अमेरिका का हाथ है। यह जांच कभी नहीं हुई, न कांग्रेस के जमाने में, न भाजपा के जमाने में। अन्ना हजारे जेल से बाहर आए और रामलीला मैदान में अनशन पर बैठ गए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अन्ना हजारे की भूख हड़ताल समाप्त करवाने के लिए सभी तरह के लोकपाल बिल ड्राफ्ट और अन्ना हजारे की तीन मांगों को भी ड्राफ्ट में शामिल करना मान लिया, और 27 अगस्त को संसद में सभी ड्राफ्ट बिलों पर बहस शुरू कर दी, तो 28 अगस्त को अन्ना हजारे ने अपना अनशन समाप्त कर दिया। ड्राफ्ट स्टैंडिंग कमेटी में गया, जो ड्राफ्ट लौट कर आया तो उससे अन्ना हजारे सहमत नहीं थे, इसलिए 22 दिसंबर 2011 को अन्ना हजारे ने घोषणा की कि वह 27 दिसंबर से मुम्बई में भूख हडताल शुरू करेंगे और उसके बाद जेल भरो आन्दोलन शुरू होगा। उन्होंने भूख हडताल शुरू कर दी थी, लेकिन केजरीवाल की इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने उनकी सेहत को देखते हुए उन्हें भूख हडताल समाप्त करने की सलाह दी। अपने बिगड़े स्वास्थ्य के कारण उन्होंने भूख हडताल और जेल भरो आन्दोलन स्थगित कर दिए। अब केजरीवाल अन्ना को पीछे करके अपने एजेंडे पर आगे बढ़ने की तैयारी कर रहे थे।
25 मार्च 2012 और 3 जून 2012 को अन्ना हजारे ने एक एक दिन का अनशन किया, क्योंकि संसद से पारित बिल बहुत ही कमजोर था। आन्दोलन भी कमजोर पड़ रहा था, जिससे अरविन्द केजरीवाल का असली उद्देश्य भी कमजोर पड़ जाता, इसलिए उन्होंने अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को किनारे करके आम आदमी पार्टी बनाने का निर्णय किया, कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षी लोग केजरीवाल के साथ चले गए, जबकि किरन बेदी समेत कुछ लोग अन्ना हजारे के साथ जुड़े रहे। अन्ना हजारे की आंख तब खुली, जब उनके विरोध के बावजूद अरविन्द केजरीवाल ने राजनीतिक दल बनाने का निर्णय किया। केजरीवाल से जुड़े अधिकांश लोग भी यह नहीं जानते थे कि अरविन्द केजरीवाल किस के इशारे पर यह सब कुछ कर रहे हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)