क्या ईश्वर पक्षपाती है?
क्या ईश्वर पक्षपाती है?
एक बार एक गाँव में कुछ मित्र, मण्डली बनाकर बैठे थे। वह लोग ईश्वर के अन्याय पर चर्चा कर रहे थे। एक व्यक्ति बोला, “भगवान कितना निर्दयी है, उसे तनिक भी दया नहीं आती, कितने ही लोग भूकम्प में मर जाते हैं, कितने ही बेघर हो जाते हैं, कितने ही अपंग हो जाते हैं, बेचारे जीवन भर अपंगता का भार ढोते रहते हैं।”
इतने में दूसरा व्यक्ति बोला, “ईश्वर बड़ा ही पक्षपाती है, दुष्टों को अमीर बना देता है और सज्जनों को गरीब। यह भगवान मेरी तो समझ से बाहर है।”
इतने में तीसरा व्यक्ति बोला, “भाई! इस संसार में ईश्वर नाम की कोई चीज़ नहीं, सब बेकार की बातें हैं।” इतने में चौथा बोला, “ हाँ! सही कहते हो भाई! किन्तु हमारे शास्त्र तो ईश्वर को बताते हैं, मुझे लगता है ईश्वर होंगे भी तो बैठे होंगे कहीं वैकुण्ठ में।
चर्चा चल ही रही थी कि पास से गुजर रहे एक दार्शनिक ने उनकी बातें सुन लीं। वह लोगों के पास आये और बोले, “भाइयो! चलो मेरे साथ आप सभी को एक अजूबा दिखाना है।” सभी आश्चर्य से दार्शनिक के साथ चल दिए।
दार्शनिक महोदय सभी को खेतों की ओर ले गये और दो खेतों के बीचों-बीच जाकर खड़े हो गये। एक तरफ थी फूलों की खेती और दूसरी तरफ थी तम्बाकू की खेती।
दार्शनिक महोदय बोले, “धरती भी कैसा अन्याय करती है। एक फसल से सुगंध आती है और एक से दुर्गंध।
उनके पास खड़े लोग बोले – “नहीं नहीं श्रीमान, यह दोष धरती का नहीं, उसमें बोये गये बीज का है। जहाँ फूलों के बीज बोये गये वहाँ से सुगंध आती है और जहाँ तम्बाकू के बीज बोये गये वहाँ से दुर्गंध आती है। इसमें धरती को दोष देना उचित नहीं।”
दार्शनिक महोदय बड़े विनम्र भाव से बोले – “आपका कहना सही है, धरती को दोष देना मेरी मूर्खता है, किन्तु मुझे यह बताइए कि ईश्वर के संसार रूपी खेत में ईश्वर को दोषी ठहराना कहाँ की समझदारी है। जो आप ईश्वर को अन्यायी और पक्षपाती कह रहे थे।”
सभी को बात समझ आ गई थी। मनुष्य जैसे कर्मों के बीज अपने जीवन में बोएगा, उसको वैसा ही फल प्राप्त होगा, वैसी ही उसकी फसल होगी। जो लोग ईश्वर पर दोषारोपण करते हैं, वे या तो स्वयं की गलती स्वीकार नहीं करना चाहते या फिर अपने अज्ञान का परिचय दे रहे होते हैं। आवश्यक नहीं कि जिसे आप अच्छा कहते हैं, वही आपके लिए अच्छा हो। कभी कभी सामयिक हानि और दर्द हमारे भविष्य के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। जैसे जब किसान बुवाई करता है तो वह हानि में रहता है क्योंकि मेहनत भी करता है और महंगे बीज भी मिट्टी में मिला देता है। किन्तु फिर धैर्य पूर्वक परिश्रम करते रहने पर उसे जो पारितोषिक प्राप्त होता है। उससे वह और उसका पूरा परिवार खुशियों से भर उठता है।