इस्लामिक कट्टरता के साये तले दबे मंदिरों का मिलना
अवधेश कुमार
इस्लामिक कट्टरता के साये तले दबे मंदिरों का मिलना
संभल में 46 वर्षों से बंद मंदिर खुलने और वहीं दूसरे मोहल्ले में भी बंद मंदिर व अनेक कुएं एवं एक लगभग 200 मीटर की बावड़ी मिलने के बाद पूरा देश आश्चर्य में है। लोगों के अंदर स्वाभाविक गुस्सा है कि मोहल्लों में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ने के बाद ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि पूजा करना तक संभव नहीं रहा। सेक्युलरवाद की रट लगाने वाले नेताओं, एक्टिविस्टों और बुद्धिजीवियों के पास इसका क्या उत्तर होगा? संयोग कहिए कि संभल में हिंसा के बाद प्रशासन वहां कई स्तरों पर काम कर रहा है, जिनमें बिजली चोरी पकड़ना, अवैध अतिक्रमण हटाना तथा रिलीजियस स्थानों के लाउडस्पीकर निर्धारित सीमा की ध्वनि में ही बजाए जाने के नियम का कठोरता से पालन कराना शामिल है।
संभल के खग्गू सराय मोहल्ले में इसी अभियान में 46 वर्ष से बंद मंदिर मिला। दूसरा मंदिर वहां से लगभग साढ़े तीन किलोमीटर दूर सरायतरीन क्षेत्र के कायस्थान मोहल्ले में मिला। पहला 1978 के दंगे के बाद तो दूसरा 1992 के बाद बंद हो गया था। खग्गू सराय मंदिर पर काफी सीमा तक कब्जा कर लिया गया था। यह मंदिर सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क के घर से 200 मीटर और जिस शाही मस्जिद के सर्वे पर इतना बड़ा विवाद हुआ उससे 500 मीटर दूर है। मंदिर के दरवाजों पर पड़े ताले खुलवाए गए तो अंदर हनुमान जी की मूर्ति और शिवलिंग मिला। सभी आश्चर्य में थे। स्वाभाविक ही इस सूचना के साथ पूरे शहर में हलचल मच गयी। लोग वहां आने लगे और कई वरिष्ठ जनों ने बताना शुरू किया कि यहां क्या-क्या हो सकता है। किसी ने बताया कि सामने दिखते रैंप के नीचे अमृतकूप था। जब जेसीबी से खुदाई की गई तो वास्तव में उसके नीचे कुआं मिला। इसकी खुदाई में भी कुछ मूर्तियां मिली हैं, जिनमें गणेश जी और पार्वती जी की खंडित मूर्तियां शामिल हैं। अभी जितनी जानकारी आ रही है उसके अनुसार, मंदिर काफी पुराना है। इसका सत्यापन कार्बन डेटिंग के बाद ही संभव है।
दूसरे मंदिर में राधा कृष्ण और हनुमान जी की मूर्तियां मिली हैं। जिसकी देखरेख सैनी बिरादरी के लोग कर रहे थे। आप सोचिए, अगर भारत के उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के एक प्रमुख शहर में ऐसी स्थिति बनी तो उसके कारण क्या हो सकते हैं? प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार नहीं होती तो न पुलिस प्रशासन यहां कार्रवाई करने का साहस करता और न कब्जा करके धीरे-धीरे अस्तित्व मिटा देने की अवस्था में पहुंचे मंदिर का खुलना संभव होता।
जितनी जानकारी आई है उसके अनुसार, 29 मार्च, 1978 को संभल में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। उसके बाद मोहल्ले के सारे हिंदू पलायन कर गए। उन दंगों पर काम करने वाले, भुगतने वाले, आंखों देखने वाले बता रहे हैं कि उस दौरान खग्गू सराय मोहल्ले में अनेक हिंदू घरों में आग लगा दी गई थी और लोग ऐसे बेसहारा हो गए कि उनके पास वहां से भगाने के अलावा कोई चारा नहीं रहा। जानकारी मिली है कि वहां डिग्री कॉलेज में सदस्यता न मिलने पर मंजर अली नाम के प्रभावी व्यक्ति ने हिंसा का षड्यंत्र किया था। दुकानें ज़बरदस्ती बंद कराई गईं, मारपीट, पथराव लूटपाट हुई, गोलियां चलीं। यह अधिकांश स्थानों पर एकपक्षीय था, जिसमें काफी हिंदुओं की मृत्यु की बात बताई गई है। यही कायस्थान में हुआ, जब हिंसा के बाद हिंदुओं के लगभग 100 परिवारों को वहां से पलायन करने को विवश होना पड़ा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 1978 के दंगे के बारे में विधानसभा में बताया कि 184 हिंदू उसमें मारे गए थे, जिनमें काफी संख्या में लोगों को जिंदा जलाया गया था। तब दो माह तक शहर सहित जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा रहा था। पता चल रहा है कि उसमें कुल 171 मुकदमे पंजीकृत हुए, जिनमें तीन पुलिस की ओर से लिखे गए थे। उनका परिणाम क्या हुआ अभी पता नहीं।
संभल में सांप्रदायिक हिंसा का पुराना इतिहास है और अभी तक रिकॉर्ड के अनुसार 16 बार शहर में सांप्रदायिक दंगे हुए। अगर मिले वर्तमान मंदिर और विवादास्पद जामा मस्जिद की कहानी को ही ध्यान में रखें तो अनुमान लगाना कठिन नहीं होगा कि सारी हिंसा के पीछे कौन लोग हो सकते हैं तथा किन्हें इसका खामियाजा अधिक भुगतना पड़ा होगा। आज खग्गू सराय मोहल्ले में किसी हिंदू का मतदाता सूची में नाम तक नहीं है।
आसपास के कुछ मुसलमानों का वक्तव्य है कि मंदिर बंद करने के लिए कोई दबाव नहीं डाला गया बल्कि लोग अपना मकान बेचकर चले गए और पूजा करने वाला ही कोई नहीं रहा। इनका कहना है कि जब कोई हिंदू पारिवार वहां रहता ही नहीं, तो पूजा कौन करता। मुस्लिम नेता और बुद्धिजीवियों का वक्तव्य है कि मंदिर बंद था तो उसे खोलना ही चाहिए, लेकिन लोग यहां से क्यों चले गए? आज तक योगी सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया? यह किस तरह का क्रूर बयान है? इसकी जगह मामला किसी मस्जिद का होता तो क्या ये लोग ऐसे ही वक्तव्य देते? ध्यान रखने की बात है कि यहां से 200 – 300 मीटर दूर हिंदू आबादी है। उनमें से कोई वहां आने तक का भी साहस नहीं जुटा पाता था। मंदिर संभालने वाले परिवार का बयान है कि पुजारी रखकर नियमित पूजा अर्चना के प्रयास किए गए, लेकिन डर इतना था कि कोई जाने का साहस नहीं जुटा सका। धीरे-धीरे मुस्लिम समुदाय ने मंदिर के स्थानों को कब्जाना शुरू कर दिया। वहां जल डालने के लिए स्थित पीपल का पेड़ भी काट दिया गया। हमारे यहां पीपल का पेड़ काटना कितना बड़ा पाप माना जाता है।
अब नक्शा देखकर पुलिस प्रशासन मंदिर के अतिक्रमित स्थान को बुलडोजर से ध्वस्त कर रहा है। बदले वातावरण का असर देख लोगों ने स्वयं भी अतिक्रमण हटाना शुरू कर दिया है और कैमरे पर आकर बोल रहे हैं कि उन्हें इससे कोई समस्या नहीं। लोग साहस करके मंदिर पर कब्जा करने वालों का नाम भी बता रहे हैं। कितनी भयावह स्थिति रही होगी कि जानते हुए भी हिंदू समाज वहां मंदिर में पूजा करने का साहस इतने लंबे समय तक नहीं दिखा पाया। सरायतरीन कायस्थान मोहल्ले की घटना तो 32 वर्ष पुरानी है, लेकिन खग्गू सराय के मामले में इतना लंबा समय गुजरने के बाद जिनकी आयु आज 50 – 55 की होगी उन्हें पता भी नहीं होगा कि कोई मंदिर था। इस बीच तीन पीढ़ियां हुई होंगी। धीरे -धीरे मंदिर ही विस्मृति के गर्त में चला गया। किंतु ऐसे धर्मस्थलों का संस्कार स्मृतियां कभी समाप्त नहीं होने देता। पुराने लोग अपने परिवारों में या अन्य स्थानों पर इसकी चर्चा करते हैं और जब विषय सामने आता है तब वे उन बातों को बताने लगते हैं। एक दो लोगों ने पूरे मंदिर का नक्शा तक बता दिया। यह भी बताया कि खुलने पर दीवारों पर छह दीपक रखने का स्थान मिलेगा और वास्तव में मिला। मंदिर में बंद होने के समय चढ़ाए गए सिक्के भी मिले। मंदिर के एक कक्ष में मूर्तियां हैं और एक कमरा खाली है। इसके दो दरवाजे हैं। किस तरह उसे चारों तरफ से ढंका गया होगा इसकी कल्पना की जा सकती है। पूरब में स्थित मुख्य प्रवेश द्वार को लगभग 30 वर्ष पहले 4 फीट दूरी पर दीवार खड़ा कर बंद कर दिया गया। निकासी द्वार उत्तर और दक्षिण की ओर हैं, जिन पर ताला लगा हुआ था। पाटा गया कूप दक्षिण द्वार के सामने था। सरायतरीन वाला मंदिर 15 फीट ऊंचा और 25 मीटर में बना है। इस पर प्रधान बुद्धसैन 1982 लिखा है। शायद 1982 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया होगा।
धार्मिक पुस्तकों में संभल को सनातनियों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ क्षेत्र के रूप में वर्णित किया गया है। आज वहां अनेक मंदिरों का अस्तित्व नहीं है। यहां तक कि श्मशान घाट को भी कब्जाए जाने की जानकारी आई है। स्कंद पुराण, विष्णु पुराण से लेकर कई ग्रंथों के उदाहरण दिए जा रहे हैं, जिनमें कलयुग में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार वहां होने का उल्लेख है। जिस हरि मंदिर की महत्ता का विवरण अंग्रेजों के सर्वे से लेकर आईने अकबरी और बाबरनामा में है उसका अस्तित्व नहीं है। इस्लामी आक्रमण के काल में बाबर से लेकर मोहम्मद बिन तुगलक आदि द्वारा हिंदू स्थलों को ध्वस्त करने के विवरण उपलब्ध हैं। स्वतंत्रता के बाद भी वहां मंदिर कब्जाए गए और लगभग 21 कूपों को बंद करने या कब्जा करने की बात सामने आई है। यह स्थिति जारी है तो मानना पड़ेगा कि उस मानसिकता के लोग आज भी हैं।
योगी आदित्यनाथ द्वारा पिछले दिनों संभल से बांग्लादेश तक हिंसा करने वालों के अंदर बाबर का डीएनए बताने वाले बयान पर हंगामा मचा है। उन्होंने किसी आम मुसलमान के बारे में बात नहीं की। जो आज भी धर्मस्थलों पर कब्जा करना मजहबी दायित्व मानते हैं और कब्जाई गई जगह की छानबीन करने तक पर मरने-मारने को उतारू हैं। उन्हें क्या माना जाए? दुर्भाग्य है कि सेक्युलरवाद के नाम पर नेता, एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवी जानते हुए भी कटु सच के विपरीत इसकी बात करने वाले या पीड़ित पक्ष को ही दोषी ठहराते हैं। संभल हिंसा में मृतकों के लिए छाती पीटने वाले हिंसा करने वालों के विरुद्ध कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। इस कारण मुस्लिम समुदाय के लोगों का दुस्साहस कितना बढ़ गया है, इसका प्रमाण संभल में ही मिल रहे बिजली के अवैध कनेक्शन, मंदिरों के बंद होने और अतिक्रमणों से मिलता है। खग्गू सराय मोहल्ले में पांच मस्जिदों और इसके आसपास के लगभग ढाई सौ घरों में बरसों से कटिया लगाकर बिजली का उपयोग किया जा रहा था। संभव नहीं कि इसकी जानकारी प्रशासन या बिजली विभाग को नहीं हो। बावजूद वातावरण ऐसा था कि कोई इनको पकड़ने, रोकने और प्रत्यक्ष कानूनी कार्रवाई का साहस नहीं कर पाया। मस्जिद मजहबी स्थान है और पांच मस्जिदों में कटिया लगाकर बिजली ली जा रही थी तथा लगभग ढाई सौ अन्य घरों में बिजली आपूर्ति हो रही थी। एक मस्जिद में चोरी की बिजली से 59 पंखे, फ्रिज, वाशिंग मशीन, एसी, कूलर और 25 अन्य बिजली के प्वाइंटों के उपयोग का मामला दर्ज हुआ है। कोई इसके विरुद्ध बोलने का साहस तक नहीं दिखा रहा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 1978 के दंगों के न्याय को लेकर जैसा कड़ा बयान दिया है तथा सरकार की जैसी प्रतिबद्धता दिखी है उससे आशा पैदा हुई है मुकदमों की बंद फाइलें खुलेंगी, नए सिरे से न्याय होगा और केवल संभल नहीं पूरे उत्तर प्रदेश में ऐसे उपासना या अन्य स्थलों का भी उद्धार होगा क्योंकि यह अकेली घटना नहीं है। जगह-जगह ऐसे मंदिरों के समाचार आने लगे हैं।