इस्लामिक आतंकवाद : एक वैश्विक चुनौती
अवधेश कुमार
इस्लामिक आतंकवाद : एक वैश्विक चुनौती
अमेरिका के न्यू ऑरलियन्स में वर्ष 2025 के पहले दिन हुए आतंकवादी हमले ने फिर साबित कर दिया है कि विश्व का कोई भी देश, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो, जिहादी आतंकवाद के खतरे से मुक्त नहीं है। जिस तरह केवल एक आतंकवादी ने सुबह-सुबह बोरबन स्ट्रीट पर तेज गति से ट्रक भीड़ में घुसाकर 15 लोगों को मौत के घाट उतार दिया, उसका अर्थ है कि बिना हथियार के भी हमला करने की लगभग 9 वर्ष पहले जिहादी आतंकवाद की सामने आई प्रवृत्ति आज तक जारी है। अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में लिखा, ”हमारा देश पूरे विश्व में हंसी का पात्र है! यह तब होता है जब आपके पास कमजोर, अप्रभावी और लगभग अस्तित्वहीन नेतृत्व के साथ खुली सीमाएं होती हैं। डीओजे (डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस), एफबीआई और डेमोक्रेट राज्यों और स्थानीय अभियोजकों ने अपना काम नहीं किया है। वे अयोग्य और भ्रष्ट हैं, जिन्होंने अमेरिकियों को बाहरी और आंतरिक हिंसक भीड़ से बचाने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, जो हमारी सरकार और हमारे राष्ट्र के सभी पहलुओं में घुसपैठ कर चुकी है, अपना सारा समय अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी, मुझ पर गैरकानूनी हमला करने में बिताया है।” उन्होंने आगे लिखा, “हमारे देश में ऐसा होने देने के लिए डेमोक्रेट्स को स्वयं पर शर्म आनी चाहिए। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, सीआईए को अभी इसमें शामिल होना चाहिए। अमेरिका टूट रहा है – हमारे पूरे राष्ट्र में सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र का एक हिंसक क्षरण (कमजोर होना) हो रहा है। केवल शक्ति और शक्तिशाली नेतृत्व ही इसे रोक सकता है। 20 जनवरी को मिलते हैं। मेक अमेरिका ग्रेट अगेन!” ट्रंप ने यहां अवैध घुसपैठ की बात की, लेकिन आतंकवादी की पहचान 42 वर्षीय अमेरिकी नागरिक शम्सुद्दीन जब्बार के रूप में हुई, जो टेक्सास निवासी था और पुलिस मुठभेड़ में मारा गया।
हमलावर आतंकवादी था। यह इससे भी प्रमाणित होता है कि वाहन में इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) का झंडा मिला। जांचकर्ताओं का कहना है, संदिग्ध ने ‘हमले से कुछ घंटे पहले’ सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड किए थे, जिससे पता चलता है कि वह आईएसआईएस से प्रेरित था और हत्या करने का इरादा रखता था। जब्बार ने वीडियो में ऐसे सपने देखने की बात कही, जिनसे उसे आईएसआईएस में शामिल होने की प्रेरणा मिली। यहां यह जानना आवश्यक है कि जब्बार अमेरिकी सेना में लंबे समय तक नौकरी कर चुका था, उसकी तैनाती अफगानिस्तान में भी हुई थी। जब्बार ने 2010 में सेंट्रल टेक्सास कॉलेज से एसोसिएट डिग्री और 2017 में जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी से ग्रेजुऐशन कंप्यूटर विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी में किया था। उसने अपनी दो वाइफ को तलाक दे चुका था। यानी वह अवैध अप्रवासी नहीं, अमेरिकी नागरिक बन चुका था। उसके पास अच्छी डिग्री थी। अच्छी नौकरी के कारण संपन्न भी था। उसे पढ़ी-लिखी सुंदर वाइव्स (wives) भी मिल चुकी थीं। यानी एक व्यक्ति की सामान्य जीवन में जो कल्पना होती है वह अमेरिका जैसे देश में उसे प्राप्त था। बावजूद उसने हमला किया। क्या इससे फिर इस बात की पुष्टि नहीं हुई कि मजहबी कट्टरता और आतंकवाद के लिए आपको व्यक्तिगत जीवन में किसी प्रकार की समस्या होना या आपका अशिक्षित या गरीब होना कारण नहीं हो सकता।
इस तरह के हमले को पहले अमेरिका ने ही लोन वुल्फ अटैक का नाम दिया था। पहली बार सितंबर 2014 में इस्लामिक स्टेट के प्रवक्ता अबू मोहम्मद अल अदनानी ने ऐसे हमले की अपील की थी। उसने कहा था कि अगर आप आईईडी या बंदूकों की व्यवस्था करने में असक्षम हैं, तो अमेरिका, फ्रांस या उनके सहयोगी देशों को निशाना बनाएं। पत्थर से हमले कर उनके नागरिकों के सिर कुचल दें या उन पर चाकू से हमला करें या उन्हें अपनी कार से कुचल दें या किसी ऊंचे स्थान से नीचे फेंक दें या उनका गला घोंट दें या जहर देकर मार डालें, या घर में आग लगा दें, फसलें जला दें और कुछ नहीं तो मुंह पर थूक दें। उसके बाद से जिहाद और अखिल इस्लामाबाद के आईएसआईएस अलकायदा या ऐसे दूसरे विचारों से प्रभावित या उनका समर्थन करने वालों के लिए किसी भी तरह हिंसा करने का एक रास्ता मिल गया। उसने इसका नाम नहीं दिया, किंतु इस तरीके के लगातार हमले विश्व में होते रहे हैं और लोन वुल्फ अटैक नाम स्वीकार कर लिया गया है।
14 जुलाई, 2016 को फ्रांस के बास्ताईल दिवस पर नीस में ऐसे ही एक ट्रक के हमले में 85 लोगों की मौत हुई थी। उसके बाद 19 दिसंबर, 2016 बर्लिन में 12, 22 मई,2017 को ब्रिटेन में तीन, 17 अगस्त ,2017 को स्पेन में 14, 29 नवंबर ,2019 को लंदन ब्रिज में तीन, 20 अक्टूबर, 2020 को फिर फ्रांस के नीस के चर्च में तीन, 25 जनवरी, 2023 को स्पेन में एक की मौत हुई। इसके पहले मई, 2014 में बेल्जियम के ब्रसेल्स में चार लोग तो जनवरी 2015 में तेल अबीब में 9 इस्राइली मारे गए।
फ्रांस के पहले हमले ने पूरे विश्व को हिला दिया था। दुनिया ने इस तरह का आतंकवादी हमला पहली बार देखा था और शायद ही कोई ऐसा हो जो अपने आसपास भी ऐसी घटनाएं घटित होने की कल्पना से भयभीत नहीं हुआ हो। नीस शहर में समुद्र के किनारे लोग फ्रांसीसी क्रांति के दौर में राजशाही के पतन और लोकतंत्र की स्थापना के रूप में बास्ताईल दिवस उत्सव मनाने के लिए जमा हुए थे। इस्लामिक स्टेट के आतंकी ने भीड़ पर 70 किमी प्रति घंटे की गति से ट्रक चढ़ा दिया और लगभग 2 किलोमीटर तक लोगों को ट्रक से रौंदता ही रहा। इसमें 84 लोगों की मौत हो गई और 50 लोग घायल हुए । उसमें सबसे ज्यादा जान विदेशियों की गई थी, जो देखने पहुंचे थे। पता नहीं और कहां-कहां कितने लोन वुल्फ हमले हुए होंगे, जिनकी हमारे आपके पास जानकारी भी नहीं आई होगी। अनेक घटनाएं हमें लूट, डकैती, सामान्य हत्या, दुर्घटना, आगजनी या कुछ और लग सकतीं हैं; लेकिन संभव है इसके पीछे मजहबी आतंकवाद की ही सोच हो।
इस पर अध्ययन करने वालों ने लोन वुल्फ को लेकर काफी कुछ विश्व के सामने रखा है। अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी से लेकर विश्व की अनेक जांच एजेंसियों ने भी कुछ घटनाओं की छानबीन तथा अलग-अलग अध्ययनों से आई रिपोर्टें भी प्रस्तुत की हैं। सामान्य तौर पर इस तरह की घटना को अंजाम देने के लिए किसी आतंकवादी का मूल संगठन से जुड़ा होना या वहां से निर्देश पाना आवश्यक नहीं रहता। ऑनलाइन यह अन्य कई तरीकों से संपर्क में आकर ये उसे सही मानकर समर्थक बनते हैं, सहानुभूति रखते हैं और स्वत: मजहबी कर्तव्य मानकर जो कुछ भी उपलब्ध होता है,,उसी से घटनाएं घटित कर देते हैं।
अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी यानी एफबीआई और सैन डिएगो पुलिस ने एक बड़े ताकतवर व्यक्ति एलेक्स कर्टिस की गतिविधियों की जांच के लिए ऑपरेशन लोन वुल्फ चलाया था। कहा जाता है तभी से यह नाम चलन में अधिक आया। आईएस के प्रवक्ता द्वारा इसका आह्वान करने के पूर्व स्वयं अमेरिका में 19वीं शताब्दी से 20 शताब्दी के बीच लोन वुल्फ अराजकतावादी आतंकवाद का दौर था। 1878-1934 के बीच घटित सैकड़ों हिंसक अराजकतावादी घटनाएं अकेले व्यक्तियों या बहुत छोटे समूहों द्वारा बिना किसी सांगठनिक ढांचे के हुईं। अराजकतावादियों ने सत्ता पर किसी तरह के केंद्रीकृत नियंत्रण को स्वीकार करते हुए ऐसे हमले किए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ऐसी हिंसा रुकी, लेकिन 1940 से अब तक अमेरिका में 100 से अधिक लोन वुल्फ हमलों के विवरण मिलते हैं। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि अलकायदा या आईएस या अन्य ऐसे संगठनों के आतंकवादियों ने अमेरिका से ही शायद इसे सीखा। सच है कि वर्ष 2000 के बाद से अमेरिका में लगातार ऐसे लोन वुल्फ हमले हुए हैं।
कोई भी देश इससे बच नहीं सकता। हमारे देश में 2017 में भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में बम विस्फोट के एक लोन वुल्फ आतंकी ने किया था, जिसने स्वयं को आईएस का बताया भी था। यह नहीं कह सकते कि आगे भारत में लोन वुल्फ हमले नहीं होंगे। पिछले दो-तीन वर्षों में ही हिंसा के षड्यंत्रों का सुरक्षा एजेंसियों ने पता लगाया और गिरफ्तारियां हुईं, जो लोन वुल्फ आक्रमण की तैयारी कर चुके थे या कर रहे थे। वास्तव में 2025 के पहले दिन अमेरिका का यह हमला संपूर्ण विश्व के लिए एक चेतावनी है कि जिहादी आतंकवाद का दौर न समाप्त हुआ है न कमजोर।
11 सितंबर, 2001 को अमेरिका के न्यूयॉर्क और वाशिंगटन में हुए हमले के बाद आतंकवाद विरोधी युद्ध मुख्य नेतृत्वकर्ता अमेरिका की सोच और सत्ता में आ रहे परिवर्तनों के कारण कमजोर पड़ा। अमेरिका का लक्ष्य बदला, अफगानिस्तान, इराक आदि देशों से बगैर पूरा लक्ष्य प्राप्त किए अराजकता में छोड़कर वे चले गए और इन सबका भी परिणाम हमारे सामने है। दूसरे, अमेरिका और प्रमुख यूरोपीय देशों ने ही द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में ऐसे-ऐसे विचार और ढांचे विकसित किये जो उनके और संपूर्ण दुनिया के लिए समस्या हैं। मानवाधिकार, अल्पसंख्यक अधिकार, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, धार्मिक समानता जैसे सारे शब्द आकर्षित करते हैं, लेकिन इनकी जो परिभाषाएं दी गईं और जैसे मापदंड बनाए गए, उनमें एकपक्षीयता और अस्वाभाविकता भी है। इनसे ऐसे तत्वों और विचारों के प्रोत्साहित होकर संगठित होने और हमले करने का रास्ता तो बनता है, लेकिन सीधा इन्हीं की भाषा में उत्तर देकर इनको पूरी निष्ठुरता से विनाश करने की स्वतंत्रता नहीं मिलती। चीन जैसा देश इन मापदंडों और ढांचों से परे रहकर भूमिका निभाता है। इसलिए वह अभी तक हमसे और पश्चिमी देशों से सुरक्षित है। वैसे 11, सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुए हमले ने भी बताया था कि आतंकवादी योजना बनाकर जब हवाई जहाज को शक्तिशाली बम में परिणत कर सकते हैं,,तो उनके लिए उपलब्ध कोई भी यंत्र और ढांचा हथियार बन सकता है। आज न दुनिया में आतंकवाद से लड़ने पर एकता है और न निकट भविष्य में एकजुट होकर कर इसके विनाश के लिए किसी संकल्प और कार्रवाई की संभावना दिखती है। दूसरी ओर भारत के पड़ोसी बांग्लादेश में कट्टरपंथियों द्वारा शेख हसीना की सत्ता उखाड़ने के बाद पाकिस्तान के साथ लगभग उसका एकाकार होना, अफगानिस्तान से लेकर पश्चिम एशिया आदि की घटनाएं बता रहीं हैं कि हर देश को अपने स्तर पर सुरक्षा ढांचे को नए सिरे से सशक्त करना होगा।