इस्लामोफोबिया से त्रस्त यूरोप

इस्लामोफोबिया से त्रस्त यूरोप

रामस्वरूप अग्रवाल

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यूरोप में बीते कुछ वर्षों में ‘इस्लामोफोबिया’ तेजी से बढ़ा है। ‘इस्लामोफोबिया’ का अर्थ होता है ‘इस्लाम का डर’। यूरोप के कई देशों में उनके देश का इस्लामीकरण होने की आशंका बलवती होती जा रही है। ब्रिटेन में नवम्बर, 2022 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार इंग्लैंड और वेल्स में ईसाइयों की जनसंख्या आधे से भी कम हो गई, वहीं मुस्लिमों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। ऑफिस फॉर नेशनल स्टेटिस्टिक्स की जनगणना (2021) के अनुसार ब्रिटेन में ईसाइयों की जनसंख्या में 13.1 प्रतिशत की कमी आई है तथा मुसलमानों की जनसंख्या में 4.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

ब्रिटेन, स्वीडन, नीदरलैंड, फ्रांस, इटली, हंगरी, ऑस्ट्रिया, ग्रीस, डेनमार्क, चेक व स्लोवाकिया आदि देशों में मुस्लिम देशों से आने वाले शरणार्थियों व अप्रवासियों (स्थायी रूप से बसने के लिए आने वालों) के विरोध में स्वर उठ रहे हैं। इसके कारण वहां न केवल राष्ट्रवादी पार्टियों का मत प्रतिशत उछाल पर है, वरन् कई देशों में ऐसे दल सत्तारूढ़ भी हुए हैं। हंगरी, स्वीडन, इटली, पोलैंड आदि देशों में ऐसे दलों की सरकारें बनी हैं।

इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और ‘यूगॉव’ के द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार एक तिहाई ब्रिटिश मतदाताओं का मानना है कि मुसलमानों का उनके देश में शरणार्थी बनकर या अन्य प्रकार से अप्रवासन (प्रवेश) ब्रिटेन का इस्लामीकरण करने की गुप्त योजना का हिस्सा है। ब्रिटेन की ‘यूके इंडिपेंडेंस पार्टी’ की स्थापना करने वाले निगोल फराज, जिनकी ब्रिटेन द्वारा यूरोपीय संघ छोड़ने के पीछे प्रमुख भूमिका मानी जाती है, ने कहा है, ‘‘जो लोग ब्रिटेन में इस्लाम को मानते हैं, वे ब्रिटेन की संस्कृति तथा कानून को स्वीकार नहीं करते हैं।’’ पोलैंड में मुस्लिम शरणार्थियों को स्वीकार करने के संबंध में जनता की राय ली गई थी। लगभग तीन- चौथाई लोगों ने मुस्लिम तथा ब्लैक लोगों को अपनाने के विरुद्ध मत दिया। 65 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें मुसलमान शरणार्थी बिल्कुल भी नहीं चाहिए। पोलैंड की सरकार का मानना है कि मुस्लिम शरणार्थियों को रखना यानी अपनी ही तबाही के लिए बम फिट कर लेना है।

पिछले कई वर्षों से सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, मोरक्को, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, पाकिस्तान आदि मुस्लिम देशों से बड़ी संख्या में लोग भागकर यूरोप के विभिन्न देशों में पहुँचे हैं। यूरोपीय देशों में राजनीतिक शरण देने संबंधी कानून बहुत उदार हैं, जिसके चलते वे अपने देश में ‘जान पर खतरा’ बताकर इन देशों में घुसते हैं। परंतु जैसे-जैसे इनकी संख्या बढ़ने लगी, अनेक देशों में बमबारी, बलात्कार और सामूहिक हिंसा सहित सभी तरह के हिंसक अपराधों में वृद्धि होती गई। स्वीडन में वर्ष 2021 में रिकार्ड स्तर पर 100 से अधिक बम विस्फोट हुए। युवा मुस्लिम आप्रवासियों के कारण स्वीडन में बलात्कारों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। फ्रांस में बिना लाइसेंस व बीमा के तेज गति से गाड़ी चलाने वाला अल्जीरियाई मुस्लिम युवा जिसने कार के हुड से लटके एक पुलिसकर्मी को कई फीट तक घसीटा था, वह पुलिस की गोली से मारा गया था। इस घटना के बाद वहां पांच दिनों तक मुसलमानों द्वारा मचाए गए उत्पात में 935 इमारतें क्षतिग्रस्त हुईं, 5354 वाहन जलाए गए, 6880 आगजनी की घटनाएं तथा 41 पुलिस थानों पर हमला हुआ। दंगाई ‘अल्लाह हो अकबर’ का नारा लगा रहे थे। कई शहरों में दुकानों तथा शॉपिंग माल में भी लूटपाट की गई। दंगाई भीड़ ने मार्सिले शहर के सबसे बड़े पुस्तकालय को आगजनी से नष्ट कर दिया। भारत में भी बख्तियार खिलजी ने 1193 ई. में भारत के ज्ञान, संस्कृति व विरासत को नष्ट करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आग लगा दी थी।

यूरोप में ‘मुस्लिम ग्रूमिंग’ अर्थात् मुस्लिम युवाओं द्वारा कम उम्र की लड़कियों-किशोरों का षड्यंत्रपूर्वक लगातार सामूहिक यौन शोषण, उत्पीड़न और मानव तस्करी करने के समाचार आते रहते हैं। ब्रिटेन के साथ ही नॉर्वे, स्वीडन और डेनमार्क में मुस्लिम-ग्रूमिंग फैलती जा रही है।

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी का इस्लाम विरोध जग जाहिर है। 2015 में मेलोनी ने मुसलमानों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की थी। सत्ता में आने के बाद वे गैराज तथा वेयरहाउस में नमाज अदा करने या उनका मस्जिद के रूप में उपयोग करने से रोकने का कानून बना रही हैं।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है, ‘‘फ्रांस में इस्लामी आतंकवाद को पनपने नहीं दिया जा सकता।’’ फ्रांस में बढ़ रहे इस्लामिक आतंकवाद को समाप्त करने के लिए कई नए कानून बनाए जा रहे हैं। पुलिस को अधिकार दिया गया है कि वह फ्रांस की मस्जिदों व मदरसों को जब चाहे तब बंद करा सकती है। मुस्लिम कट्टरपंथियों को गिरफ्तार किया जा रहा है तथा मस्जिद-मदरसों द्वारा विदेशों से धन लेने पर रोक लगाई गई है। ऑस्ट्रिया की सरकार ने मुस्लिम कट्टरवाद रोकने के लिए कई मस्जिदें बंद करा दी हैं। स्विट्जरलैंड में नई मीनारों के निर्माण पर रोक लगाई गई है।

2022 के अक्टूबर माह में यूरोपियन यूनियन के न्यायालय ने ‘हिजाब’ पर एक कम्पनी द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को उचित ठहराया था। ग्रीस की एक राजनैतिक पार्टी ने वहां के मुस्लिम सांसदों का फोन टैप किए जाने की मांग रखी है ताकि उनके कट्टरपंथी मुस्लिम समूहों से संबंधों पर नजर रखी जा सके। डेनमार्क के एक राजनैतिक दल ने घृणा फैलाने का आरोप लगाते हुए इस्लाम पर प्रतिबंध लगाने तक की मांग की है। डेनमार्क में इस्लामोफोबिया की चर्चा करने वाली इस पार्टी ने चुनावों में अच्छी सीटें प्राप्त की हैं।

नीदरलैंड (हॉलैंड) के चुनावों में इस्लाम विरोधी गीर्ट वाइल्डर्स की पार्टी के जीतने पर उनके कथनों की चर्चा विश्वभर में हो रही है। उन्होंने तो कुरान पर प्रतिबन्ध लगाने जैसे वक्तव्य भी दिए हैं। स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको मुस्लिम आप्रवासियों के विरुद्ध सबसे ज्यादा मुखर रहे हैं। वे कहते हैं कि स्लोवाकिया में इस्लाम के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने मुस्लिम आप्रवासियों को अपने देश में शरण देने से साफ इन्कार कर दिया है।

चेक गणराज्य की नेता और प्रसिद्ध वकील क्लालरा संकोवा ने चेक संसद में इस्लाम के विरुद्ध बहुत तीखा बोलते हुए कहा है कि ईसाइयत, बौद्ध, हिंदू ये सभी मत-पंथ साथ-साथ रह सकते हैं। इनमें किसी को मारने या जबरदस्ती कन्वर्जन (धर्म परिवर्तन) की बातें नहीं होती। लेकिन इस्लाम में हिंसा, बलात्कार, गुलाम बनाने की प्रथा, महिलाओं की स्वतंत्रता पर कई तरह की पाबंदियां हैं। इसलिए मुस्लिम यूरोपीय संस्कृति से कभी भी मेल नहीं खा सकते। यूरोपीय देशों को तथा यहाँ की संस्कृति को बचाने के लिए हमें मुसलमानों से मुक्ति पानी ही होगी, नहीं तो मुस्लिम यूरोप को बर्बाद कर देंगे।

यूरोप में इस्लामोफोबिया इतना बढ़ गया है कि वह वहां के साहित्य में भी परिलक्षित होने लगा है। प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक मीशेल वेलबेक का नया उपन्यास ‘सबमिशन’ काफी चर्चा में है। उसकी कहानी है कि आने वाले वर्षों में फ्रांस का इस्लामीकरण हो जाएगा। देश का मुस्लिम राष्ट्रपति होगा, महिलाओं का पर्दा करना अच्छा माना जाएगा तथा उन्हें नौकरी छोडऩे के लिए प्रेरित किया जाएगा। एक से ज्यादा पत्नियां रखना कानूनी हो जाएगा।

फ्रांस के मौलवी शेख तकी अल-दीन अलदारी का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह कह रहा है, ‘‘जिहाद के जरिए फ्रांस एक इस्लामिक देश बन जाएगा और पूरी दुनिया इस्लामी शासन के अधीन होगी।’’ उसने फ्रांसीसियों को कहा है, ‘‘इस्लाम में कन्वर्ट हो जाओ, नहीं तो जजिया कर (गैर मुसलमानों पर लगाया जाने वाला कर) के भुगतान के लिए मजबूर किए जाओगे।’’ ब्रिटेन के एक मुस्लिम नेता उमर बकरी मोहम्मद का कहना है कि वे ब्रिटेन को एक इस्लामी राज्य के रूप में देखना चाहते हैं। वे इस्लामी झंडे को प्रधानमंत्री निवास पर फहरता देखना चाहते हैं तो बेल्जियम मूल के एक इमाम ने भविष्यवाणी की है कि जैसे ही हम इस देश पर नियंत्रण स्थापित कर लेंगे हम हमारे आज के आलोचकों को क्षमा कर देंगे परन्तु उन्हें हमारी सेवा करनी होगी।

यूरोप में पोलैंड इकलौता ऐसा देश है जिसने कई दबावों के बावजूद अपने देश में मुसलमानों के अप्रवास पर पूरी तरह से रोक लगा रखी है। इसके कारण यह देश अनेक समस्याओं से सुरक्षित है।

मुस्लिम मामलों के जानकार डैनियल पाइप कहते हैं कि इस विषय में तीन रास्ते ही बचते हैं- सद्भावनापूर्वक मुसलमानों को आत्मसात करना, इनको निकाला जाना या फिर यूरोप पर इनका नियंत्रण हो जाना। यूरोप को इन्हीं में से किसी एक का चयन करना होगा।

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