करौली का जगदीश जी मेला
करौली का जगदीश जी मेला
करौली का जगदीश जी मेला राजस्थान के प्रमुख धार्मिक मेलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मेला हर वर्ष बसंत पंचमी और आषाढ़ सुदी दूज के दिन आयोजित होता है। करौली के जगदीश जी मंदिर और मेले का इतिहास भक्त चन्द्रमादास की भक्ति और तपस्या से जुड़ा है। चन्द्रमादास का जन्म गंगापुर उपखंड के नांगतलाई गांव में संवत 1701 में मुरली गुर्जर के घर हुआ था। बचपन से ही चन्द्रमादास की भगवान जगन्नाथ के प्रति अटूट श्रद्धा थी। 13 वर्ष की आयु में वे अध्ययन और दीक्षा के लिए गुरु बृजदास की शरण में गए, जहाँ उन्होंने भक्ति का मार्ग अपनाया और चन्द्रमादास के नाम से प्रसिद्ध हुए। संवत 1725 में चन्द्रमादास ने भगवान जगदीश से मिलने के लिए कनकदण्डवत करते हुए उड़ीसा के जगदीश धाम जाने का संकल्प लिया। यात्रा के दौरान उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पत्नी जमनाबाई ने रास्ते में ही देह त्याग दी, उनका स्वयं का शरीर कमजोर हो गया, लेकिन चंद्रमादास ने अपनी यात्रा जारी रखी और अंततः जगन्नाथपुरी पहुँच गए। भगवान ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा, तो उन्होंने जगन्नाथ धाम जैसी ही तीन मूर्तियां मांग लीं। भगवान ने उनको आशीर्वाद दिया। चंद्रमादास नांगतलाई होते हुए माघ सुदी 4 सवंत 1735 को वापस कैमरी गांव पहुंचे। अगली सुबह बसंत पंचमी के दिन आकाश से हो रही पुष्प वर्षा के बीच जगदीश भगवान, बहन सुभद्रा व बलदाऊ सहित तीनों मूर्तियों स्थापना की गई। इसके बाद से ही यहाँ हर वर्ष बसंत पंचमी के दिन मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
भक्तों के लिए यह मेला भगवान जगदीश की भक्ति, उनके प्रति श्रद्धा और संकल्प का प्रतीक है। श्रद्धालु इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और मंदिर में भगवान के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मेले के दौरान हर वर्ष भगवान जगदीश की रथ यात्रा निकाली जाती है, जो श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र होती है। रथ यात्रा में भगवान की मूर्तियों की भव्य झांकी होती है। मेले के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें संगीत, नृत्य और अन्य लोक कला के प्रदर्शन होते हैं। इससे स्थानीय कला व संस्कृति को बढ़ावा मिलता है, जो दूर दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए अविस्मरणीय अनुभव होता है। मेले में श्रद्धालुओं को अटका प्रसादी वितरित की जाती है। यह प्रसादी भगवान की भक्ति और आशीर्वाद का रूप मानी जाती है। मेले के दौरान विभिन्न धार्मिक गतिविधियाँ जैसे भजन-कीर्तन, भगवान की पूजा और माला बोली आदि भी आयोजित की जाती हैं। इन गतिविधियों में भाग लेकर श्रद्धालु अपने जीवन में सुख-समृद्धि और शांति की कामना करते हैं। मेले में समाज के विभिन्न वर्गों के लोग अपनी भागीदारी निभाते हैं और सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज की एकजुटता को भी प्रदर्शित करता है।