पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेल करने वाले पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर दिए जाएं—इलाहबाद हाईकोर्ट
पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेल करने वाले पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर दिए जाएं—इलाहबाद हाईकोर्ट
प्रयागराज। एक याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेल करने वाले पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए। 13 जून को सुनाए गए इस निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य मशीनरी को उन पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए जो अपने लाइसेंस की आड़ में साधारण व्यक्ति को ब्लैकमेल करने जैसी असामाजिक गतिविधियों में शामिल हैं।
दरअसल इलाहबाद हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में मांग की गई थी कि ब्लैकमेलिंग के आरोपों का सामना कर रहे पत्रकार, उसके दो साथियों एवं एक समाचार पत्र वितरक के विरुद्ध कार्रवाई को रद्द किया जाए। इसी मांग को ठुकराते हुए जस्टिस शमीम अहमद की पीठ ने कहा कि राज्य को पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलिंग जैसी असामाजिक गतिविधियों में लिप्त पाए जाने वाले पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए। आरोपियों के विरुद्ध धारा 384/352/504/505 आईपीसी, 3(2)(वीए), और 3(1)(एस) एससी/एसटी अधिनियम के अंतर्गत मामला चल रहा है। आरोप है कि ये सभी लोग निर्दोष लोगों की तस्वीरें लेने, उनसे संबंधित सामग्री समाचार पत्रों में छापने व इसी के माध्यम से उन्हें ब्लैकमेल करने के अपराध में लिप्त थे।
दूसरी ओर आरोपियों के वकील ने दलील दी है कि इन्हें झूठे मामले में फंसाया गया है। साथ ही कहा कि आरोप पत्र भी बिना उचित जांच के दायर किया गया है।
मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से उपस्थित जी.ए. तथा अपर महाधिवक्ता ने कहा कि पूरे राज्य में एक गिरोह सक्रिय है, जिसमें पत्रकार शामिल हैं। यह गिरोह समाचार पत्रों में आम आदमी के विरुद्ध सामग्री छापने तथा समाज में उनकी छवि खराब करने की आड़ में उसे ब्लैकमेल कर आर्थिक लाभ तथा अन्य लाभ प्राप्त करने जैसी असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त है।
इस पर कोर्ट ने कहा, “मामला बहुत गंभीर है और राज्य मशीनरी को इसका संज्ञान लेना चाहिए। ऐसे पत्रकारों का लाइसेंस रद्द करना चाहिए, यदि वे अपने लाइसेंस की आड़ में इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में काम करते पाए जाते हैं। राज्य सरकार के पास ऐसी मशीनरी है जो इस तरह की गतिविधियों को रोकने में सक्षम है, अगर मामला सही पाया जाता है।”
‘पुनीत मिश्रा उर्फ पुनीत कुमार मिश्रा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ नामक मामले में कोर्ट ने नोट किया कि आवेदक, जिसने पत्रकार होने का दावा किया था, कोई ऐसा दस्तावेज नहीं दिखा सके जिससे साबित होता हो कि उन्हें अखबार (स्वतंत्र भारत) द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसे देखते हुए, कोर्ट ने कहा कि मामले में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है; इसलिए, उनकी याचिका खारिज की जाती है।