लोक देवता कल्ला जी राठौड़: बलिदान, सत्य और न्याय के अमर नायक

लोक देवता कल्ला जी राठौड़: बलिदान, सत्य और न्याय के अमर नायक

डॉ. आशा लता

लोक देवता कल्ला जी राठौड़: बलिदान, सत्य और न्याय के अमर नायकलोक देवता कल्ला जी राठौड़: बलिदान, सत्य और न्याय के अमर नायक

राजस्थान की वीरभूमि केवल युद्धों की गवाह नहीं, बल्कि बलिदान, धर्म रक्षा और सत्य के प्रति अटूट निष्ठा की साक्षी रही है। इस भूमि ने अनगिनत वीरों और लोकदेवताओं को जन्म दिया, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर अपने धर्म, मातृभूमि और न्याय की रक्षा की। ऐसे ही एक अमर नायक थे लोकदेवता कल्ला जी राठौड़, जिनका जीवन पराक्रम, त्याग और धर्म रक्षा की अनुपम मिसाल है। उनका बलिदान केवल राजस्थान तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत की वीरगाथाओं में अमर है। लोकदेवता कल्ला जी राठौड़ का जन्म 1601 ईसवी में अश्विन शुक्ल अष्टमी के दिन (दुर्गा अष्टमी) हुआ था, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 1544 ईस्वी में आता है। 

राजस्थान के नागौर जिले के सामियाना गाँव में जन्मे कल्ला जी मेड़ता के वीर शासक जयमल राठौड़ के भतीजे और महान संत मीराबाई के परिवार से संबंध रखते थे। उनके पिता का नाम आस सिंह (कुछ स्रोतों में अचल सिंह) और माता का नाम श्वेत कंवर था। उनका लालन-पालन एक ऐसे परिवार में हुआ, जहाँ वीरता, धर्म और सत्य की रक्षा ही जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य था।

बाल्यकाल से ही वे असाधारण पराक्रमी, धार्मिक और न्यायप्रिय थे। उन्होंने योग और आयुर्वेद की शिक्षा अपने गुरु भैरवनाथ से प्राप्त की। उन्हें जड़ी-बूटियों का भी गहरा ज्ञान था। लोक मान्यता है कि वे शेषनाग के अवतार थे। उन्हें “चार हाथों वाले देवता”, “कमधज” और “बाल ब्रह्मचारी” भी कहा जाता है।

मेड़ता के शासक जयमल राठौड़ को अपने भतीजे कल्ला जी पर विशेष स्नेह था। वे बाल्यकाल से ही अपनी तेजस्विता और युद्धकला के लिए प्रसिद्ध हो गए थे। लेकिन जब मुगलों ने मेड़ता पर आक्रमण किया और उसे अपने अधीन कर लिया, तब कल्ला जी का हृदय वेदना से भर उठा।

उन्होंने संकल्प लिया कि वे अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित करेंगे। इसी संकल्प के साथ वे मेड़ता से मेवाड़ पहुंचे, जहाँ महाराणा उदयसिंह के नेतृत्व में राजपूत स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे। जयमल राठौड़ और फत्ता सिसोदिया पहले से ही चित्तौड़गढ़ की रक्षा में लगे हुए थे। कल्ला जी ने भी अपने वीर चाचा का साथ देने का निश्चय किया।

24 वर्षीय कल्ला जी का विवाह शिवगढ़ के राव कृष्णदास की पुत्री कृष्णा से तय हुआ था। द्वाराचार के समय जब उनकी सास आरती उतार रही थीं, तभी राणा उदयसिंह का सन्देश मिला कि अकबर ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया है, अतः सेना सहित तुरंत वहाँ पहुँचें। कल्ला जी कृष्णावती से शीघ्र लौटने का कहकर चित्तौड़ रवाना हो गए। उन्होंने मातृभूमि की रक्षा को प्राथमिकता दी और युद्ध में भाग लेने के लिए जा पहुंचे।

“धर्म से बड़ा कोई बंधन नहीं, मातृभूमि से बड़ा कोई प्रण नहीं!”

महाराणा उदयसिंह को मंत्रियों की सलाह पर गोगुंदा भेज दिया गया और किले की रक्षा का दायित्व जयमल राठौड़ और फत्ता सिसोदिया को दिया गया।

युद्ध के दौरान जब अकबर की बंदूक संग्राम से चली गोली जयमल राठौड़ के पैर में लगी, तो वे चलने में असमर्थ हो गए। ऐसे कठिन समय में कल्ला जी राठौड़ ने जयमल को अपने कंधों पर बिठाकर युद्ध किया।

“कंधों पर चाचा, हाथों में तलवार, रण में गरजता वीर राजपूताना का अभिमान!”

दोनों वीरों ने एक साथ चार तलवारें चलाईं, जिससे मुगल सेना भयभीत हो उठी। यह दृश्य देखकर लोगों ने उन्हें “चार हाथों वाला देवता” कहा।

“रण में डटे वीर ही पूजे जाएँ, बाकी तो इतिहास में खो जाएँ।”

युद्ध के दौरान दोनों वीरों ने हजारों मुगलों का संहार किया, लेकिन अंततः वे केसरिया कर वीरगति को प्राप्त हुए। मान्यता है कि जब कल्ला जी का सिर धड़ से अलग हुआ, तो भी उनका कंधारहित शरीर तलवार चलाता रहा और रणस्थल में मुगलों का संहार करता रहा। यह 24 फरवरी, 1568 (फाल्गुन शुक्ल पंचमी) का दिन था। इससे एक रात पहले चित्तौड़ के किले में उपस्थित सभी क्षत्राणियों ने जौहर किया।

कल्ला जी राठौड़ राजस्थान के लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं। उनकी वीरता की स्मृति में चित्तौड़गढ़ के भैरव पोल पर एक छतरी बनाई गई, जहाँ आज भी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

उनका प्रमुख उपासना स्थल रनेला गाँव (तहसील सलूम्बर, जिला उदयपुर) में स्थित है। इसके अलावा डूंगरपुर जिले के समालिया, बांसवाड़ा और मेवाड़ के विभिन्न स्थानों पर उनके सैकड़ों मंदिर और थान स्थित हैं।

“जहाँ न्याय रुके, वहाँ कल्ला जी खड़े!”

लोक मान्यता है कि जो भी व्यक्ति न्याय की तलाश में सच्चे मन से कल्ला जी से प्रार्थना करता है, उसे अवश्य न्याय मिलता है। कल्ला जी राठौड़ के लिए प्रसिद्ध कहावतें, उनके जीवन को समर्पित हैं।

“धरम रा रस्ता वीरां जाणे, जेहड़ा धीर न धरै, सो जाणे।”

धर्म का मार्ग केवल वीरों के लिए होता है, कायर उसमें नहीं टिक सकते।

“सांच रो साथ कल्ला जी, झूठ रो साथ कोई नहीं।”

सत्य के रक्षक कल्ला जी हैं, झूठ का कोई सहारा नहीं होता।

“जहाँ अन्याय, वहाँ कल्ला जी।”

जहाँ भी अन्याय होता है, वहाँ कल्ला जी न्याय की रक्षा के लिए खड़े रहते हैं।

“वीर मरता नहीं, अमर हो जावे!”

कल्ला जी राठौड़ का जीवन हमें सत्य, धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि देशप्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं।

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