कश्मीर विवाद का समाधान POK की वापसी

प्रमोद भार्गव
कश्मीर विवाद का समाधान POK की वापसी
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कश्मीर के हालात और भारत सरकार की ओर से उठाए गए संवैधानिक कदमों के बारे में लंदन के चैथम हाउस थिंक टैंक में विश्व में भारत का उदय और भूमिका विषय पर बोलते हुए कहा, कश्मीर विवाद का समाधान कश्मीर के चुराए गए हिस्से की वापसी के वाद संभव हो जाएगा। यह हिस्सा अवैध रूप से पाकिस्तान के कब्जे में है। वैसे हमने कश्मीर के सिलसिले में अधिकांश मुद्दों का हल निकाल लिया है। इस दिशा में कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 का समापन पहला कदम था। कश्मीर में विकास, आर्थिक गतिविधि और सामाजिक न्याय को बहाल करना दूसरा कदम था। तीसरा कदम कश्मीर में भारतीय संविधान में निहित लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुसार चुनाव कराना था। इसमें मत प्रतिशत का अच्छा होना इस बात का प्रमाण है कि जम्मू-कश्मीर की जनता भारतीय लोकतंत्र का समर्थन कर रही है। अब इस हिस्से के कश्मीर में आते ही इस समस्या का समाधान पूरी तरह हो जाएगा।
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से में गिलगिट-बाल्टिस्तान, मुजफ्फराबाद और मीरपुर आते हैं। भारत की स्वाधीनता के पहले कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य था। यहां डोगरा राजपूत वंश के राजा हरिसिंह शासक थे। कश्मीर में मुसलमानों की जनसंख्या अधिक थी। इसलिए पाकिस्तान का मानना था कि कश्मीर उसके अधिकार क्षेत्र में होना चाहिए। इस मानसिकता के चलते पाक ने कश्मीर राज्य पर पाकिस्तान में विलय का अनैतिक दबाव वनाया लेकिन हरिसिंह इस दबाव में नहीं आए। तब 1948 में पाकिस्तान की सेना ने कबाइलियों के वेश में कश्मीर पर हमला कर दिया था, किंतु हरिसिंह द्वारा सहायता मांगने पर भारतीय सेना ने पाक सेना को न केवल खदेड़ दिया, बल्कि संपूर्ण कश्मीर के एक तिहाई हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया। इसी बीच नेहरू कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र में ले गए और 5 जनवरी, 1949 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी गई। युद्ध विराम के समय जो सेनाएं जिस भूमि पर थीं, उसे ही युद्ध विराम की रेखा मान लिया गया। यही आज नियंत्रण रेखा (एलओसी) है। इस कारण पीओके, जिसे पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है, पाकिस्तान के हिस्से में है और श्रीनगर समेत शेष कश्मीर भारत के हिस्से में है।
जिस आतंकवाद का जनक पाकिस्तान रहा है, वही आतंकवाद उसके लिए पीओके में चुनौती बन कर उभर रहा है। आतंकी हमले थमने का नाम नहीं ले रहे। बलूचिस्तान प्रांत के तुरबाद नगर में नौसैनिक अड्डे पर आतंकवादियों ने गोली वरसाते हुए हमला किया। इसके बाद खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में चीनी नागरिकों के काफिले पर हमला बोल दिया। इसमें पांच चीनी इंजीनियरों की मौत हो गई थी। ये इंजीनियर दासू हाइड्रो प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य में लगे थे। इन हमलों की ज़िम्मेवारी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की मजीद ब्रिगेड ने ली है। इस्लामावाद से 200 किमी. दूर स्थित दासू हाइड्रो प्रोजेक्ट का निर्माण चीनी कंपनी कर रही है। ग्वादर बंदरगाह पर भी आतंकी हमला हो चुका है।
दरअसल, बलूचिस्तान प्रांत के नागरिक मानते हैं कि पाकिस्तान सरकार उनके प्रांत के हितों की लंबे समय से अनदेखी कर रही है। यहां लोग इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप का भी विरोध कर रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान सरकार धन के लालच में चीन के सुरसामुख में फंस चुकी है। देश में चल रही आर्थिक बदहाली के कारण भी वह चीन का दामन नहीं छोड़ पा रही है। चीन से उसकी मित्रता का कारण धन का लालच तो है ही, भारत के साथ तनावपूर्ण रिश्ते भी हैं। पीओके में आतंकी शक्तियां इतनी मजबूत हो गई हैं कि पाकिस्तान को ईरान और
अफगानिस्तान से भी मधुर संबंध बनाए रखना मुश्किल हो रहा है।
गिलगिट-बलूचिस्तान में रहने वाले लोगों ने अपने क्षेत्र पर पाकिस्तान के बलात् कब्जे को कभी नहीं स्वीकारा। यहां राजनीतिक अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक आवाजें उठ रही हैं, सरकार इन लोगों पर दमन का क्रम जारी रखे हुए है। पाकिस्तान की कुल भूमि का 40 प्रतिशत हिस्सा यहीं है, लेकिन इसका विकास नहीं हुआ है। लगभग 1 करोड़ 30 लाख की जनसंख्या वाले इस हिस्से में सर्वाधिक बलूच हैं। इसलिए इसे गिलगिट-बलूचिस्तान भी कहा जाता है। 1999 में परवेज मुशर्रफ सत्ता में आए तो उन्होंने बलूच भूमि पर सैनिक अड्डे खोल दिए। इसे बलूचों ने अपने क्षेत्र पर कब्जे का प्रयास माना, जिससे संघर्ष और तेज हो गया। इसके बाद यहां बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी जैसे संगठन बने।
निर्वाचन की प्रक्रिया से गुजरने के बावजूद यहां की विधानसभा को अपने बूते कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है। सारे निर्णय एक परिषद लेती है, जिसके अध्यक्ष पाकिस्तान के पदेन प्रधानमंत्री होते हैं। परिणामस्वरूप यहां के अस्तोर, दियामिर और हुनजा समेत उन सब क्षेत्रों में विद्रोह की आग सुलगी रहती है, जो शिया बहुल हैं। सुन्नी बहुल पाकिस्तान में शिया और अहमदिया मुस्लिमों समेत सभी धार्मिक अल्पसंख्यक प्रताड़ित किए जा रहे हैं। इस क्षेत्र में चीन बड़ा निवेश कर रहा है। ग्वादर में बड़ा सा बंदरगाह बनाया है। चीन की एक और बड़ी योजना है, ‘चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ जिसकी लागत 3 लाख 51 हजार करोड़ है। यह गलियारा गिलगिट-बाल्टिस्तान से गुजर रहा है। इस गलियारे के निर्माण में लगे चीनी नागरिकों की आतंकी संगठन बीएलए हत्याएं कर रहा है। चूंकि यह क्षेत्र आधिकारिक रूप से भारत का है, इसलिए भारत भी इस परियोजना का लगातार विरोध कर रहा है। पाकिस्तान रणनीतिक रूप से गिलगिट-बाल्टिस्तान को पांचवां प्रांत बना लेने की फिराक में है। चूंकि यह क्षेत्र आधिकारिक रूप से भारत के जम्मू-कश्मीर प्रांत का हिस्सा है, इसलिए यहां कोई भी बदलाव कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन होगा। पाकिस्तान यहां सुन्नी मुसलमानों की संख्या बढ़ा कर इस पूरे क्षेत्र का जनसंख्या घनत्व वदलने के प्रयास में भी लगा है। इन कारणों के चलते यहां के मूल बलूचों की पाकिस्तान के प्रति जबरदस्त नाराजगी है और वे निर्णायक लड़ाई लड़कर भारत में मिल जाने के प्रयास में लगे हैं।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)