प्रतिमा तोड़ने वालों पर नहीं, मामले को उजागर करने वाले पत्रकारों पर कार्रवाई: कोलकाता में दो पत्रकार हिरासत में
प्रतिमा तोड़ने वालों पर नहीं, मामले को उजागर करने वाले पत्रकारों पर कार्रवाई: कोलकाता में दो पत्रकार हिरासत में
कोलकाता में काली पूजा के दौरान प्रतिमा को तोड़ने की घटना को उजागर करने पर पत्रकार अनन्यो गुप्ता और एक अन्य को ममता पुलिस ने गिरफ्तार किया है। आश्चर्य की बात यह है कि प्रशासन ने प्रतिमा तोड़ने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने के स्थान पर इस घटना को सामने लाने वाले पत्रकारों को निशाना बनाया है और उन पर गंभीर धाराओं के अंतर्गत केस दर्ज कर किया है। अनन्यो गुप्ता, जो “मध्यम” नामक ऑनलाइन समाचार पोर्टल चलाते हैं, ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो में प्रतिमा तोड़फोड़ की घटना की ओर प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया था। 2 नवंबर को पोस्ट किए गए इस वीडियो में अनन्यो गुप्ता ने कोलकाता के रजाबाजार और दक्षिणदरी क्षेत्रों में काली पूजा पंडालों पर हमले की निंदा की थी। इसके बाद 5 नवंबर को पुलिस ने उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 196(2), 299 और 302 के अंतर्गत मामले दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। ये धाराएं आम तौर पर गंभीर आपराधिक मामलों में लगाई जाती हैं, जिनमें सरकारी कार्य में हस्तक्षेप और हत्या के प्रयास जैसे आरोप शामिल होते हैं, जबकि इस मामले में ये धाराएं असंगत प्रतीत होती हैं।
पत्रकारिता पर प्रशासन का शिकंजा: पहले भी हुए ऐसे मामले
यह पहली बार नहीं है, जब अपराध का खुलासा करने वाले पत्रकारों पर इस प्रकार की कार्रवाई की गई है। पिछले कुछ समय में इस प्रकार की कई घटनाएं सामने आई हैं, जहां अपराधी को पकड़ने की बजाय घटना को उजागर करने वाले पत्रकारों को निशाना बनाया गया:
1. 2024 में रिपब्लिक बंगला चैनल के पत्रकार संतू पान को उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वे स्थानीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता के विरुद्ध यौन उत्पीड़न और जमीन कब्जाने की घटनाओं पर रिपोर्टिंग कर रहे थे। यह गिरफ्तारी पुलिस ने लाइव प्रसारण के दौरान की, जिसमें संतू ने कहा कि उन्हें “सच उजागर करने” के लिए निशाना बनाया जा रहा है। इस गिरफ्तारी की आलोचना कोलकाता प्रेस क्लब और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी की थी, जिन्होंने इसे पत्रकारों के लिए चिंता का विषय बताया था।
इसके अतिरिक्त, 2023 में भी पश्चिम बंगाल में कुछ पत्रकारों को स्थानीय राजनीतिक गतिविधियों और भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग के कारण धमकियां मिली थीं और उनके विरुद्ध कार्रवाई की गई थी। ऐसे मामलों ने पत्रकारों की सुरक्षा और मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर चिंताओं को और गहरा किया है।
2. 2020 में, कोलकाता के अरामबाग में अरामबाग टीवी के पत्रकार सैफीकुल इस्लाम और उनके साथियों को भ्रष्टाचार उजागर करने के बाद गिरफ्तार किया गया। इस्लाम ने कोविड-19 फंड का गलत तरीके से वितरण उजागर किया था, जिससे कुछ सत्ताधारी नेताओं पर प्रश्न उठे। गिरफ्तारी के बाद, कोलकाता हाईकोर्ट ने इस पर नाराजगी जताते हुए पुलिस से तीन महीनों में रिपोर्ट मांगी और पत्रकारों को जमानत पर छोड़ा गया।
अभव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संकट
पत्रकारों की गिरफ्तारी ने पूरे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर बहस छेड़ दी है। विभिन्न पत्रकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस कार्रवाई की कड़ी आलोचना की है। उनका मानना है कि इन घटनाओं से पत्रकारों को संदेश दिया जा रहा है कि वे मुस्लिम तुष्टीकरण या सरकार के विरुद्ध मुद्दों पर रिपोर्टिंग करेंगे, तो भुगतना पड़ेगा। ममता का प्रशासनिक तंत्र इस प्रकार की घटनाओं से पत्रकारों पर दबाव बनाकर भय का वातावरण बना रहा है।
आरजी कर अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर की निर्मम हत्या व बलात्कार कांड पर ममता सरकार के रवैये से पहले से त्रस्त जनता पुलिस की इस कार्रवाई से बेहद आक्रोशित है। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन को वास्तविक दोषियों की पहचान कर उनके विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए थी, न कि उन पत्रकारों को सजा देनी चाहिए जो सच उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं।
इस घटना ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व को एक बार फिर सामने ला दिया है। पत्रकारिता जगत और बुद्धिजीवी समाज इसे बंगाल में लोकतंत्र के लिए एक खतरे के रूप में देख रहे हैं। अब सभी की निगाहें सरकार की ओर हैं कि वह इस मामले में क्या कदम उठाती है और पत्रकारिता की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए क्या नीतियां अपनाती है।