लोक देवता जाहरवीर गोगा और गोगामेड़ी मेला
लोक देवता जाहरवीर गोगा और गोगामेड़ी मेला
जाहरवीर गोगा जी, जिन्हें गोगाजी या गोगा वीर के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से पूजे जाने वाले एक लोक देवता हैं। उन्हें “सांपों के देवता” के रूप में जाना जाता है। उनकी पूजा विशेष रूप से उन क्षेत्रों में होती है, जहां सांपों का भय लोगों के जीवन में प्रमुखता रखता है। गोगाजी का व्यक्तित्व और उनके जीवन से जुड़े किस्से राजस्थान और उससे सटे क्षेत्रों में एक गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
गोगाजी का जन्म और परिवार
गोगाजी का जन्म राजस्थान के चूरू (ददरेवा) जिले के गोगामेड़ी गांव में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी को हुआ था। उनके पिता का नाम जेवरराज चौहान और माता का नाम बाछल देवी था। जेवरराज चौहान उस समय के प्रतिष्ठित राजा थे। उनका परिवार चौहान वंश से संबंधित था।
गोगाजी का जन्म किसी साधारण घटना के रूप में नहीं हुआ था, बल्कि इसे एक दिव्य आशीर्वाद के रूप में देखा गया। गोगाजी की माता बाछल देवी संतान सुख से वंचित थीं। उन्हें गुरु गोरखनाथ के आशीर्वादस्वरूप पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। गोगाजी के जीवन में गुरु गोरखनाथ का गहरा प्रभाव रहा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
गोगाजी का बचपन वीरता और धार्मिकता से भरा हुआ था। वे बचपन से ही बहादुर और निडर थे। उन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा के दौरान कई कौशल सीखे। गोगाजी को युद्धकला, घुड़सवारी, तलवारबाजी और धार्मिक अध्ययन में विशेष रुचि थी। उन्होंने अपने गुरु गोरखनाथ से साधना और योग विद्या प्राप्त की, जिससे वे न केवल एक वीर योद्धा बने, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत प्रबल हो गए।
गोगाजी का संबंध नाग देवताओं से भी माना जाता है। कहा जाता है कि वे नाग देवताओं के प्रति विशेष श्रद्धा रखते थे। उन्होंने अपनी साधना से उन पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। इस कारण से गोगाजी को नाग देवता का स्वरूप माना जाता है।
वीरता और कृतित्व
गोगाजी का जीवन वीरता और साहस से भरा हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में कई लड़ाइयाँ लड़ीं और हमेशा अन्याय के विरुद्ध खड़े रहे। गोगाजी की सबसे प्रसिद्ध कहानी सांपों के प्रति उनके समर्पण से जुड़ी है। कहा जाता है कि उनके क्षेत्र में एक समय सांपों का अत्यधिक प्रकोप था, लोग भयभीत रहते थे। गोगाजी ने अपनी दिव्य शक्तियों का उपयोग करके इस संकट से लोगों को मुक्ति दिलाई।
लोककथाओं के अनुसार, वे सांपों पर विशेष आधिपत्य रखते थे। उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना उनकी पत्नी, केलम दे, के जीवन से जुड़ी है। विवाह के बाद, जब केलम दे को एक विषैले सांप ने काट लिया, तो गोगाजी ने अपनी सिद्धियों का प्रयोग करते हुए सभी सांपों को एक कढ़ाई में खौलते तेल में गिरने के लिए विवश कर दिया। इस घटना के बाद, सांपों के राजा तक्षक नाग ने गोगाजी से क्षमा मांगी और उनकी पत्नी को पुनः जीवित कर दिया। इस घटना के बाद से, गोगाजी को सांपों के देवता के रूप में पूजे जाने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
गोगाजी का नाम लेने मात्र से विषैले सांपों का भय समाप्त हो जाता है, यह विश्वास आज भी गहराई से प्रचलित है। उनके कृतित्व में न्याय और धर्म की स्थापना भी शामिल है। उन्होंने अपने राज्य में न्यायपूर्ण शासन की स्थापना की और सम्पूर्ण प्रजा को समान रूप से देखा। गोगाजी के शौर्य और पराक्रम ने उन्हें एक लोकनायक बना दिया। उनके इस गुण के कारण उन्हें “जाहरवीर” की उपाधि मिली, जिसका अर्थ है ‘विजयी योद्धा’।
गोगाजी के जीवन का अंत भी वीरता और संघर्ष से भरा हुआ था। उनके मौसेरे भाइयों, अरजन और सरजन ने भूमि विवाद के चलते गोगाजी की गायें मोहम्मद गजनवी को सौंप दीं। तब गोगाजी ने अपने 47 पुत्रों, 60 भतीजों और 1100 सैनिकों के साथ सतलज नदी पार कर गजनवी से युद्ध किया और गायों को मुक्त करवाया। बाद में अरजन व सरजन से भी युद्ध किया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया। मोहम्मद गजनवी से उन्होंने 11 युद्ध लड़े। अंतिम युद्ध तब हुआ जब गजनवी के दूत सालार मसूद ने गोगाजी के दरबार में आकर उनके राज्य से होते हुए प्रभास पट्टन (सोमनाथ) जाने की अनुमति मांगी और गोगाजी ने मनाकर दिया। गजनवी ने गोगागढ़ घेर लिया और भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में गोगाजी वीरगति को प्राप्त हुए। तब गुरु गोरखनाथ के निर्देशानुसार राणा गोगाजी चौहान के कुल पुरोहित नन्दी दत्त ने गोगाजी के शव का दाह संस्कार किया और उसी स्थल पर समाधि का निर्माण कराया। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी को यहॉं विशाल मेला भरता है। राजस्थान एवं निकटवर्ती राज्यों के गांवों में खेजड़ी के नीचे ‘गोगाजी के थान’ होते हैं। यहॉं एक कहावत प्रचलित है-
‘‘गांव गांव गोगा नै, गांव गांव खेजड़ी।’’
गोगाजी व गजवनी के मध्य युद्ध का वर्णन कवि मेह द्वारा रावसाल ग्रन्थ में किया गया है।
लोक गाथाओं व गीतों में गोगाजी
गोगाजी की गाथाएँ, किस्से और गीत राजस्थान, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोक साहित्य व गीतों में गहराई से समाहित हैं। उनकी वीरता और लोक सेवा की कहानियाँ गाँव-गाँव में सुनाई जाती हैं। लोक गायक और भजन गाने वाले आज भी अपने गायन में गोगाजी के महात्म्य का वर्णन करते हैं।
गोगाजी से सम्बंधित कुछ प्रसिद्ध लोकगीत
1. “गोगा जी आयो रे, गोगा जी आयो रे”- यह गीत गोगा जी की आराधना के समय गाया जाता है। इसमें गोगाजी के आगमन और उनके प्रति लोगों की श्रद्धा का वर्णन होता है। यह गीत विशेष रूप से गोगा नवमी के अवसर पर गाया जाता है।
2. “लखदातार गोगाजी, शरण में आयो हूँ”- इस गीत में भक्त गोगाजी से अपनी रक्षा की प्रार्थना करता है और उन्हें संकट से उबारने के लिए शरणागत होता है। यह गीत गोगाजी की शक्ति और करुणा का प्रतीक है।
3. “गोगा पीर का बाना, उगियो नाग का राजा*” – इस गीत में गोगाजी की नागों के राजा के रूप में पूजा का वर्णन है। गोगाजी के नाग देवता के रूप में पूजनीय होने की कहानी इस गीत में व्यक्त की गई है।
4. “थारी महिमा है गोगाजी, थारे चरणों में बसा है” – इस गीत में गोगाजी की महिमा का बखान किया गया है और बताया गया है कि उनके चरणों में भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
उपर्युक्त लोकगीत तो कुछ उदाहरण हैं। गोगाजी जनमानस में आज भी ऐसे समाये हैं कि लोग उनके जीवन की जन्म से अवसान तक की घटनाओं को लोकगीतों के माध्यम से याद करते हैं। उन्होंने गोगाजी के प्रति अपनी श्रद्धा को संजोकर रखा है ताकि उनकी कहानियाँ आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचती रहें। उनकी गाथाएँ केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी हैं, जो उस क्षेत्र की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना को समझने में सहायक हैं। जब ये गीत सामाजिक और धार्मिक समारोहों में गाए जाते हैं तो इनके माध्यम से लोग एक दूसरे के साथ अपनी भक्ति साझा करते हैं। उनकी पूजा में सभी जातियों और समुदायों के लोग भाग लेते हैं, जो सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती है। उनके जीवन से जुड़ी कहानियाँ आज भी लोगों को न्याय, धर्म और वीरता के पथ पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
गोगाजी का नाम ही सुना था की सांपो के प्रभाव को कम कर रक्षा करते है किंतु अधिक जानकारी आज अच्छे से प्राप्त हो सकी है