धर्मप्रियता, प्रजा वत्सलता, दयालुता और न्यायप्रियता की प्रतिमान हैं लोकमाता अहिल्याबाई- डॉ. चौहान

धर्मप्रियता, प्रजा वत्सलता, दयालुता और न्यायप्रियता की प्रतिमान हैं लोकमाता अहिल्याबाई- डॉ. चौहान

धर्मप्रियता, प्रजा वत्सलता, दयालुता और न्यायप्रियता की प्रतिमान हैं लोकमाता अहिल्याबाई- डॉ. चौहानधर्मप्रियता, प्रजा वत्सलता, दयालुता और न्यायप्रियता की प्रतिमान हैं लोकमाता अहिल्याबाई- डॉ. चौहान

झुंझुनूं, 18 नवम्बर। किसी भी व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होता है कि उसने जीवन कैसा जिया, न कि कितना जिया। अहिल्याबाई अपने कृतित्व से धर्मप्रियता, प्रजा वत्सलता, दयालुता और न्यायप्रियता की प्रतिमान बन गईं। ये विचार वीएसके फाउंडेशन की डायरेक्टर डॉ. शुचि चौहान ने रविवार को राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) जिला झुंझुनूं द्वारा अहिल्याबाई होलकर के 300वें जन्म वर्ष पर आयोजित महिला विचार गोष्ठी में मुख्यवक्ता के रूप में व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन स्थानीय केशव आदर्श विद्या मंदिर सभागार में किया गया था।

डॉ. चौहान ने अहिल्याबाई की न्यायप्रियता, राजधर्म, धर्मपरायणता तथा राजनीतिक कुशलता को विभिन्न कथानकों व घटनाओं के माध्यम से विस्तार से बताया। उन्होंने कहा, अहिल्याबाई शिव की अनन्य उपासक थीं। उनकी रियासत के हर ऑर्डर पर हुजूर शंकर लिखा जाता था। मंदिरों के जीर्णोद्धार और निर्माण के लिए उनका नाम सम्मान से लिया जाता है। आदिगुरु शंकराचार्य ने पूरे भारत को एक सूत्र में पिरोने के लिए देश के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की, अहिल्याबाई ने पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक धर्मशालाएं, मंदिर व घाट बनवाए, अन्नसत्र चलवाए। कुएं, बावड़ियां, सड़कें बनवायीं। 

उन्होंने कहा, अहिल्याबाई बीस वर्ष की आयु में विधवा हो गईं। फिर ससुर और बेटे को भी खो दिया, रानी बनीं, लेकिन दुखों ने पीछा नहीं छोड़ा। पहले नाती, फिर दामाद और बेटी को भी खो दिया। हर विपरीत परिस्थिति का डटकर सामना करते हुए, उन्होंने अपना पूरा जीवन प्रजा को ही अपना परिवार, बेटा बेटी मानते हुए धर्म कर्म में अर्पित कर दिया। उनका जीवन लोक के लिए समर्पित था, इसलिए लोकमाता कहलायीं। उन्हें रानी के बजाय मातोश्री, लोकमाता, देवी व पुण्यश्लोक जैसे सम्बोधन मिले। उन्होंने कहा कि युधिष्ठिर, राजा नल और भगवान विष्णु को भी पुण्यश्लोक कहा जाता है, तो सोचिए अहिल्याबाई का जीवन कैसा रहा होगा। 

कार्यक्रम की दूसरी वक्ता शिक्षक संघ की विभाग महिला संगठन मंत्री संगीता रानी ने अपने उद्बोधन में सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों पर चर्चा करते हुए उनको पुनः अपनाने पर बल दिया तथा उपस्थित महिला शिक्षकों से बालिका शिक्षा के साथ-साथ उन्हें संस्कारवान बनाने का आह्वान किया। 

प्रदेश पर्यवेक्षक रामेश्वर खीचड़ ने संगठन की विभिन्न गतिविधियों पर प्रकाश डाला तथा संगठन की रीति नीति व कार्यपद्धति पर विस्तार से चर्चा की।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मंजू सोनाणिया ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में बच्चों को संस्कारवान बनाने तथा अहिल्याबाई के जीवन से प्रेरणा लेकर कार्य करने की बात कही। उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित समस्त उपशाखाओं से बड़ी संख्या में पधारी बहनों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन जिला महिला मंत्री आयशा ने किया।

जिला अध्यक्ष राजेश जांगिड़, जिला मंत्री राजेश हलवान, कोषाध्यक्ष अरुण चौपाल और जितेन्द्र गौड़ सहयोग हेतु उपस्थित रहे।

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