सामाजिक योद्धा थीं लोकमाता अहिल्याबाई

सामाजिक योद्धा थीं लोकमाता अहिल्याबाई

नरेन्द्र भदौरिया

सामाजिक योद्धा थीं लोकमाता अहिल्याबाईसामाजिक योद्धा थीं लोकमाता अहिल्याबाई

अहिल्याबाई होलकर एक सामाजिक योद्धा थीं। उन्होंने ऐसे समय में राज किया, जब मुगल शासकों की क्रूरता चरम पर थी। इसलिए लोकमाता ने सबसे पहले हिन्दू समाज में समरसता की भावना बढ़ाने और विभेद मिटाने के लिए अपने आचरण से अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने क्रूरता के स्थान पर ममत्व पर बल दिया। न्याय की स्थापना करते हुए राष्ट्रीयता के मर्म को जन-जन में लोकप्रिय बनाया। वह एक मात्र महारानी थीं, जिन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक बार सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया। अहिल्याबाई के जीवन की अनगिनत उपलब्धियां हैं। इस क्रम में उन्होंने राजधानी महेश्वर के किले को भव्य रूप दिया। इन्दौर जैसे महानगर को आकर्षक बनाने की योजना स्वयं गढ़ी और काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण भी कराया। इतना ही नहीं अपने राज्य की सीमा में मुगलों द्वारा विध्वंस किए गए अनेक मंदिरों के वास्तविक स्वरूप को नवनिर्माण से लौटाया।

इस तरह अहिल्याबाई ने जीवन की अन्तिम सांस तक एक तपश्चर्या के रूप में शासन तन्त्र को सुदृढ़ बनाकर सनातन संस्कृति की रक्षा करते हुए एकत्व भाव की स्थापना की। इसलिए उनके जीवनकाल में समाज उन्हें देवी के रूप में आदर देने लगा था। उनकी शासन व्यवस्था में नैतिकता, न्याय और धर्म का बड़ा महत्व रहा। उनके शासन काल में सनातन हिन्दू संस्कृति के सङ्ग्रन्थों के पठन-पाठन की व्यवस्था की गयी थी। संस्कृत भाषा के ग्रंथों को उपलब्ध कराने के लिए भी प्रबंध किए।

राजमाता अहिल्याबाई होलकर जैसा व्यक्तित्व यदि उस कालखंड में उभरकर सामने नहीं आता तो भारत के करोड़ों लोग इस्लामीकरण और ईसाईकरण का ग्रास बन जाते। अहिल्याबाई एक भक्त के रूप में आदि शंकराचार्य और वैष्णव संत रामानुजाचार्य की परम्परा के स्वामी रामानन्द की अनुयायी थीं। उन्होंने देखा कि मुगलों की अंतिम अवस्था में बड़े पैमाने पर सूफियों की टोलियां हिन्दुओं का कन्वर्जन कराने के लिए निकल पड़ी हैं। दूसरी ओर ईसाई मिशनरियां हुमायूं के समय से ही कन्वर्जन के लिए अनुमति पा चुकी हैं। ऐसे में अभाव, अन्याय और बीमारियों से ग्रस्त हिन्दू समाज को षड्यंत्र के अंतर्गत कन्वर्ट कराने वाली टोलियां अपने जाल में फंसा लेती थीं। इसको ध्यान में रखते हुए लोकमाता ने अपने पूरे राज्य के गांव, कस्बों और नगरों में ढिंढोरा पिटवा दिया कि यदि कोई हिन्दुओं से उनका धर्म छीनेगा, तो उसे कठोर दंड मिलेगा। लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के इस आदेश के कारण ईसाई और मुस्लिम इतिहासकारों ने अहिल्याबाई के जीवन को विवादित बताने की चेष्टा की है। इस इतिहास को छिपाया गया कि अहिल्याबाई ने किस प्रकार हिन्दू समाज के निर्बल वर्ग को कुटिल आक्रान्ताओं के चंगुल से बचाया। इसी क्रम में समाज को जागृत करने के लिए अहिल्याबाई जब किसी तीर्थ स्थल पर जातीं, तो वहां श्रद्धालुओं से धर्म की रक्षा का संकल्प करातीं। उनकी इस सक्रियता और राष्ट्र रक्षा के संकल्प से उस समय के समाज पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। अहिल्याबाई के इन प्रयासों से हिन्दू धर्म की रक्षा में बड़ी सहायता मिली। उनके कालखण्ड के अनेक राजा अहिल्याबाई से प्रेरित हुए। उन्होंने भी इस्लामी लुटेरों द्वारा तोड़े गए मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया। यही नहीं अहिल्याबाई होलकर 6 महीने के लिए पूरे भारत की यात्रा पर निकलती थीं। इसी त्याग और हिन्दुत्व की प्रेरणा के चलते इंदौर में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी के दिन अहिल्या उत्सव होता है।

(अहिल्याबाई जन्म त्रिशताब्दी वर्ष लेखमाला -3)

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