इस प्यार को क्या नाम दें…?
बलबीर पुंज
“अगर यह लव जिहाद नहीं है, तो क्या है? उसने कबूल किया कि वह मेरी बेटी से प्यार करता था और जब मेरी बेटी ने इनकार कर दिया, तब उसने उसे मार डाला। लव जिहाद के लिए वे अच्छे परिवारों की लड़कियों को निशाना बनाते हैं। फैयाज मेरी बेटी का मतांतरण करना चाहता था। नेहा की हत्या ‘द केरल स्टोरी’ की तरह है।” मीडिया के समक्ष यह आक्रोश कर्नाटक स्थित हुबली-धारवाड़ नगर निगम में कांग्रेस के पार्षद निरंजन हिरेमथ ने प्रकट किया है। गत 18 अप्रैल को उनकी बेटी नेहा की उसके सहपाठी मोहम्मद फैयाज ने सरेआम कई बार चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। हत्याकांड कितना भयावह था, वह नेहा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट है। इसके अनुसार, फैयाज ने नेहा पर 30 सेकंड में 14 बार चाकू से वार किए थे और यहां तक उसका गला काटने का भी प्रयास किया था।
यह विडंबना है कि निरंजन हिरेमथ उस दल के सदस्य हैं, जो मुखर होकर वर्षों से ‘लव-जिहाद’ और उस पर आधारित फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को ‘इस्लामोफोबिया’ से प्रेरित कल्पना और भाजपा-संघ का प्रोपेगेंडा बता रहे हैं। जब केरल स्थित कुछ चर्च संगठनों ने अपने समाज में जागरूकता फैलाने हेतु 2-4 अप्रैल के बीच फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को कई स्थानों पर प्रदर्शित और सार्वजनिक चैनल दूरदर्शन ने 5 अप्रैल को इस फिल्म का प्रसारण किया, तब भी वामपंथियों के साथ कांग्रेस ने इसका विरोध किया था। वही तेवर कर्नाटक की कांग्रेस सरकार का नेहा हिरेमथ हत्याकांड में दिख रहा है।
हालिया दिनों में ‘लव-जिहाद’ की शिकार केवल नेहा ही नहीं है। इस नृशंस हत्या से स्तब्ध कर्नाटक की एक अन्य हिंदू छात्रा ने जब अपने मुस्लिम प्रेमी आफताब के साथ संबंध तोड़े, तो इससे गुस्साए आफताब ने उसे हमला करके घायल कर दिया। पीड़िता के अनुसार, उसकी मुस्लिम सहेली ने आफताब से मित्रता हेतु विवश किया था। इसके अतिरिक्त, प्रदेश के ही बेलगावी में विवाहित अनुसूचित जाति की महिला ने रफीक और उसकी बेगम पर जबरन मतांतरण करने का आरोप लगाया है। पुलिस में दर्ज शिकायत के अनुसार, रफीक ने बहला-फुसलाकर अपनी बेगम के सामने पहले हिंदू महिला का बलात्कार किया, जिसकी तस्वीरें तक ली गईं। इसके बाद मुस्लिम दंपत्ति ने उसपर सिंदूर हटाने, बुर्का पहनने, नमाज अदा करने और अपने हिंदू पति को तलाक देकर इस्लाम कबूलने का दवाब बनाना और धमकाना प्रारंभ कर दिया।
शेष भारत के अलग कोनों से भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिन्हें किसी अन्य उपयुक्त संज्ञा के अभाव में ‘लव-जिहाद’ के तौर पर परिभाषित किया जा रहा है। महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में ताहेर पठान द्वारा अपनी मजहबी पहचान छिपाकर 27 वर्षीय हिंदू युवती को प्रेमजाल में फंसाकर उसका यौन-उत्पीड़न करने, उसका वीडियो बनाने, जबरन गोमांस खिलाने और मतांतरण करने का मामला दर्ज हुआ है। वही मध्यप्रदेश के गुना में अयान पठान पर पड़ोस की एक हिंदू युवती ने प्रेम के नाम पर उसको बंधक बनाकर बलात्कार करने, उसे बेल्ट-पाइप से बुरी तरह पीटने, उसके जख्मों पर नमक-मिर्च डालने और चीख-पुकार रोकने हेतु उसके होंठों को फेवीक्विक से चिपकाने का आरोप लगाया है।
कई मुस्लिम शासकों ने इस्लाम के प्रचार-प्रसार हेतु डराने-धमकाने और तलवार का भरपूर उपयोग किया। वही अब इस्लामी प्रथा ‘तकैयाह’ (पवित्र धोखा) के अंतर्गत झूठ बोलकर और छल-फरेब से मतांतरण का प्रयास किया जाता है, जिसे मजहबी स्वीकृति भी प्राप्त है। कुछ जानकारों ने ऐसे मजहबी चक्रव्यूह, जिसमें प्रेम के नाम पर गैर-मुस्लिमों से शारीरिक संबंध बनाकर उनपर मतांतरण का दवाब डाला जाता है— उसे सार्वजनिक विमर्श में ‘लव-जिहाद’ का नाम दिया है। यह शब्दावली विरोधाभासी है। इसमें प्रेम नहीं, अपितु इस्लाम का प्रसार करने की प्रतिबद्धता है, जिसमें ‘सवाब’ मिलने की अवधारणा है। शायद इसलिए ‘लव-जिहाद’ के कई मामलों में आरोपी/दोषी का पूरा परिवार भी शामिल होता है।
‘लव-जिहाद’ की उत्पत्ति हालिया नहीं है। संज्ञा भले ही नई हो, परंतु हिंदू-ईसाई समाज कई दशकों से इसपर अपनी चिंता प्रकट कर रहे है। एक अमेरिकी ईसाई मिशनरी क्लिफर्ड मैनशार्ट ने 1936 में लंदन से प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘द हिंदू-मुस्लिम प्रॉब्लम इन इंडिया’ के पृष्ठ 48 में उद्धृत किया था, “मुसलमान भरोसे लायक नहीं। वे हिंदुओं की महिलाओं को चुराने और बहकाने की कोशिश करते हैं।” ‘लव-जिहाद’ भारत तक सीमित है, ऐसा भी नहीं है। गत वर्ष ब्रिटेन की तत्कालीन गृहमंत्री (2022-23) स्वेला ब्रेवरमैन ने कहा था— “पाकिस्तानी मूल के मुसलमान… श्वेत ब्रितानी लड़कियों से उनकी मुश्किल परिस्थितियों के दौरान बलात्कार करते है और ड्रग्स देते है।” रॉचडेल (2008-12) और रॉदरहैम (1970-2014) में गैर-मुस्लिम युवतियों (अधिकांश ईसाई और नाबालिग सहित) का भयावह यौन उत्पीड़न— इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, जिसमें पाकिस्तान और अफगान मूल के कई मुस्लिम दोषी पाए गए थे। कुछ वर्ष पहले ब्रिटेन स्थित एक सिख संगठन ने भी दावा किया था कि वर्ष 1960 से स्थानीय हिंदू-सिख युवतियां का मुस्लिम युवकों द्वारा यौन-शोषण हो रहा है। तब इस मामले को ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सांसद सारहा चैंपियन (2012 से अबतक) ने भी जोरशोर से उठाया था।
आखिर यह कैसी मानसिकता है? ‘डेमोग्राफिक इस्लामिजेशन: नॉन-मुस्लिम्स इन मुस्लिम कंट्री’ नामक दस्तावेज में फ्रांसीसी समाजशास्त्री और यूरोपीय विश्वविद्यालय में प्रवासन नीति केंद्र के निदेशक फिलिप फर्ग्यूस कहते हैं, “प्रेम अब सतत इस्लामीकरण की प्रक्रिया में वही भूमिका निभा रहा है, जो अतीत में बलपूर्वक किया जाता था।” ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में इस्लामी इतिहासकार क्रिश्चियन सी.साहनर ने अपनी पुस्तक ‘क्रिश्चियन मार्ट्यर्स अंडर इस्लाम: रिलीजियस वॉयलेंस एंड मेकिंग ऑफ द मुस्लिम वर्ल्ड’ में लिखा है, “इस्लाम शयन कक्ष के माध्यम से ईसाई दुनिया में फैला।”
निसंदेह, सभ्य समाज की जिम्मेदारी है कि वे दो व्यस्कों के प्रेम-संबंध के बीच मजहब या जाति की दीवार कभी खड़ी नहीं होने दें। परंतु छल-कपट और अपनी मजहबी पहचान छिपाकर बनाया गया रिश्ता, किसी भी सूरत में प्रेम नहीं कहा जाएगा। कोई आश्चर्य नहीं कि अपने मजहबी अभियान में असफल होने या उसका भंडाफोड़ होने पर तथाकथित ‘प्रेमी’ हिंसक हो जाते है और अपनी ‘प्रेमिका/पत्नी’ की हत्या करने में संकोच भी नहीं करते है।
(स्तंभकार ‘ट्रिस्ट विद अयोध्या: डिकॉलोनाइजेशन ऑफ इंडिया’ पुस्तक के लेखक हैं)