महाकुंभ में घुमंतू जाति के संतों का ऐतिहासिक समागम, किया आध्यात्मिक विचारों का आदान प्रदान

महाकुंभ में घुमंतू जाति के संतों का ऐतिहासिक समागम, किया आध्यात्मिक विचारों का आदान प्रदान

महाकुंभ में घुमंतू जाति के संतों का ऐतिहासिक समागम, किया आध्यात्मिक विचारों का आदान प्रदानमहाकुंभ में घुमंतू जाति के संतों का ऐतिहासिक समागम, किया आध्यात्मिक विचारों का आदान प्रदान

प्रयागराज के पवित्र तीर्थराज में इस बार का महाकुंभ ऐतिहासिक बन गया, जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के घुमंतू जाति उत्थान न्यास के तत्वावधान में अखिल भारतीय घुमंतू जाति का संत समागम आयोजित हुआ। इस आयोजन में देशभर से सैकड़ों संतों ने पहली बार महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाई और अपने आध्यात्मिक विचारों का आदान-प्रदान किया।

यह पहली बार हुआ जब घुमंतू जाति के संतों ने संगठित होकर महाकुंभ में भाग लिया। इस अवसर पर आयोजित संत समागम में देश के विभिन्न भागों से आए संतों ने भाग लिया और समाज को प्रेरणा देने के उद्देश्य से महाकुंभ स्नान किया। समागम का आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय घुमंतू जाति उत्थान न्यास द्वारा किया गया।

इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने संतों को संबोधित किया। उन्होंने कहा, “घुमंतू जाति हमारे समाज का अभिन्न अंग है। संतों का यह समागम समाज में समानता, समरसता और धार्मिक जागरूकता लाने का कार्य करेगा।” उन्होंने इस आयोजन को भारतीय संस्कृति और परंपरा का महत्वपूर्ण अंग बताया।

संत समागम में अखिल भारतीय घुमंतू जाति कार्य प्रमुख दुर्गादास और अखिल भारतीय घुमंतू प्रचारक प्रमुख स्वांत रंजन की उपस्थिति ने आयोजन को विशेष बना दिया। उन्होंने समाज के कल्याण और विकास के लिए घुमंतू जातियों को मुख्यधारा में लाने पर जोर दिया।

राजस्थान का गौरव: हासू महाराज का योगदान

राजसमंद के संत हासू महाराज (बागरिया) ने भी इस आयोजन में विशेष भूमिका निभाई। उन्होंने मंच साझा करते हुए समाज के उत्थान के लिए अपने विचार रखे। उनके नेतृत्व में राजस्थान से आए संतों ने महाकुंभ स्नान में भाग लिया और समाज को संगठित करने का संदेश दिया।

घुमंतू जाति उत्थान न्यास के जयपुर महानगर प्रमुख राकेश कुमार शर्मा ने इस आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने बताया कि इस समागम का उद्देश्य घुमंतू जातियों के संतों और समाज को जोड़ना और उनके अधिकारों और विकास के लिए जागरूकता फैलाना है। यह आयोजन न केवल घुमंतू जातियों के लिए ऐतिहासिक था, बल्कि पूरे भारतीय समाज के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। संत समागम के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि हर जाति और वर्ग को समान महत्व और अवसर मिलने चाहिए।

इस ऐतिहासिक आयोजन ने न केवल घुमंतू जातियों के धार्मिक और सामाजिक विकास में एक नई शुरुआत की है, बल्कि समाज में समरसता और भाईचारे का संदेश भी दिया है। महाकुंभ में घुमंतू जाति के संतों की भागीदारी से समाज को एकजुटता और समानता की प्रेरणा मिली। इस प्रकार यह आयोजन भारतीय संस्कृति और सामाजिक समरसता का अद्वितीय उदाहरण बन गया।

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