सद्भावना और समरसता का पाठ पढ़ाता महाकुंभ प्रयाग
डॉ. आशा लता
सद्भावना और समरसता का पाठ पढ़ाता महाकुंभ प्रयाग
महाकुंभ भारत की धरती पर सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और आध्यात्मिकता का अनूठा महापर्व है। अलग अलग भाषा बोलने वाले, अलग-अलग आहार, विहार परिधान वाले सनातनी जब करोड़ों की संख्या में एक स्थान पर आकर मिलते हैं, तो सामाजिक समरसता का एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। आज जब जीवन एकांगी होता जा रहा है, परिवार छोटे होते जा रहे हैं, मनुष्य अपनी निजता को लेकर चिंतित है, उस काल में एक स्थान पर करोड़ों की संख्या में लोग एक साथ भोजन करते, प्रसादी लेते, स्नान करते, देव दर्शन और सत्संग करते हुए दिखते हैं, तो विदेशियों के लिए यह रिसर्च का विषय होता है। इस बार 45 दिन के महाकुंभ के अवसर पर 45 करोड़ लोगों के यहॉं आने का अनुमान है। संपूर्ण विश्व में केवल दो ही देश इस आंकड़े को जनसंख्या के मामले में पार करते हैं। एक स्थान पर बाहर से आए इतने लोगों के आवास, भोजन, स्नान और सत्संग आदि की व्यवस्था मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से भी अद्भुत है।
पूर्ण कुंभ हर बारह वर्षों में एक बार चार पवित्र स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक आयोजित होता है और महाकुंभ बारह पूर्ण कुंभ के बाद आता है यानी 144 वर्ष बाद, यह प्रयागराज में आयोजित होता है। महाकुंभ में देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत एकत्र होते हैं और गंगा, यमुना व विलुप्त सरस्वती नदियों के संगम पर स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाते हैं। महाकुंभ में सामाजिक समरसता की भांति ही विश्व बंधुत्व की भावना भी प्रबल होती है।
महाकुम्भ में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम, कथा-वाचन, भजन-कीर्तन और प्रवचन आयोजित किए जाते हैं। ये कार्यक्रम लोगों को आध्यात्मिक शांति और मानसिक शुद्धि प्रदान करते हैं। महाकुंभ में आए साधु-संत अपने ज्ञान और अनुभवों को साझा करते हैं, जिससे समाज को दिशा मिलती है। कल्पवास से अंतर्मन शुद्ध होता है।
महाकुंभ आर्थिक और पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस अवसर पर करोड़ों पर्यटक और श्रद्धालु विभिन्न स्थानों से आते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। विभिन्न क्षेत्रों के लोग यहाँ आकर अपने व्यापार का विस्तार करते हैं। इस बार होने वाले महाकुंभ आयोजन पर उत्तर प्रदेश सरकार 7000 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। इससे 42000 करोड़ के राजस्व मिलने का अनुमान है। कुंभ की विशालता को देखते हुए 2019 में यूनेस्को ने इस को सांस्कृतिक विरासत में शामिल किया था। यह आयोजन भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को विश्व स्तर पर प्रस्तुत करने का एक सशक्त माध्यम है।
महाकुंभ पर्व का अपना इतिहास है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह स्वतंत्रता सेनानियों के मिलन का केंद्र रहा। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और स्वाधीनता सेनानी नाना साहब के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नागा साधुओं ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने का पूर्ण प्रयास किया था। 1918 के कुंभ में गांधी जी ने गंगा में डुबकी लगाई थी। 1930 के कुंभ का आयोजन अंग्रेज सरकार ने डरते डरते किया था, उस समय उन्हें गांधी जी के नमक आंदोलन के भड़क जाने का भय था। 1942 के कुंभ के दौरान महामना मदन मोहन मालवीय ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिन लिथगो को प्रयाग कुंभ में बुलाया और इसकी विशालता के दर्शन कराए थे। 1954 में जवाहरलाल नेहरू के मौनी अमावस्या के दिन कुम्भ आगमन के दौरान मची भगदड़ में 800 से अधिक लोगों की जान गई। अव्यवस्था जनित घटना को छिपाने के लिए शवों को इकट्ठा कर जला दिया गया और इस घटना को कुछ भिखारियों की मौत कहकर प्रचारित किया गया।1989 के प्रयागराज के कुंभ में अयोध्या में शिला पूजन एवं शिलान्यास का निर्णय लिया गया था। सन् 2001 के प्रयागराज महाकुंभ में पहली बार अयोध्या के प्रस्तावित राम मंदिर का मॉडल रखा गया और राम मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया गया। 2013 के महाकुंभ के दौरान इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मची, जिसमें 42 लोग मारे गए। उस समय समाजवादी सरकार थी और आजम खान कुम्भ आयोजन की देख रेख कर रहे थे। इसके बाद आयोजित कुंभ 2019 अपनी सुव्यवस्था के लिए प्रसिद्ध रहा। वर्ष 2025 का महाकुंभ चल रहा है। जिसके लिए वहां के प्रशासन और सरकार ने अपना पूर्ण जोर लगा रखा है।
कुंभ मेले का सर्वाधिक आकर्षण उसमें आने वाले नागा साधु और सन्यासियों का होता है। लेकिन वहां लगने वाले अखाड़ों का उल्लेख किए बिना महाकुंभ का वर्णन अधूरा है। हमारे यहां 13 अखाड़े हैं, जिनमें शैव मतानुयायियों के सात अखाड़े, वैष्णवों के तीन अखाड़े और उदासी के तीन अखाड़े हैं। इन अखाड़ों की राजसी यात्रा धर्माचार्य परंपरागत बैंड-बाजों, चांदी के हौदे, छत्र, चंवर, पालकी, रथ और आकर्षक परिधानों में निकालते हैं। सनातन धर्म का यह पर्व पूरे विश्व को यह संदेश देता है कि सनातन धर्म की परंपराएं अत्यंत मजबूत हैं, जहां करोड़ों लोग एकत्रित होकर भी व्यवस्थित हैं। अलग जाति, लिंग, और आर्थिक स्थिति के होते हुए भी एक हैं। कुंभ श्रद्धा भाव का पर्व है।
यह हमें अपने भीतर झांकने और अपनी आत्मा की शुद्धि का अवसर प्रदान करता है। महाकुंभ के इस पवित्र अवसर पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने जीवन में समरसता, एकता और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देंगे और इस पर्व के संदेश को जन-जन तक पहुँचाएंगे।