घटना से सीख लेकर व्यवस्था की समीक्षा आवश्यक

घटना से सीख लेकर व्यवस्था की समीक्षा आवश्यक

अवधेश कुमार

घटना से सीख लेकर व्यवस्था की समीक्षा आवश्यकघटना से सीख लेकर व्यवस्था की समीक्षा आवश्यक

भव्यता से संपन्न हो रहे प्रयागराज महाकुंभ में 30 श्रद्धालुओं की मृत्यु और पांच दर्जन से अधिक के घायल होने की त्रासदपूर्ण घटना ने निस्संदेह ग्रहण लगाया है। इस घटना ने सबको दुखी किया। पूरे देश की संवेदनाएं पीड़ितों के साथ हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भावुकता और रुंधा गला बता रहा था कि वे कितने आहत हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह आदि सभी दुर्घटना की सूचना मिलते ही जिस प्रकार सक्रिय हुए, उसका असर दिखा। यह भी सच है कि घटना के बाद स्थिति नियंत्रित करने में कुछ समय लगा दूसरी ओर जन समूह के एक साथ एकत्रित होने के सारे विश्व रिकॉर्ड ध्वस्त होने के बावजूद सामान्य स्नान के दृश्य भी हमारे सामने हैं। महाकुंभ की शास्त्रीय व्यवस्था में साधु – संतों का स्नान, जिसे पूर्व में शाही स्नान और आज अमृत स्नान कहा जाता है, का सर्वाधिक महत्व है। ऐसा लगा कि इस अपरिहार्य शास्त्रीय परंपरा पर भी विराम लगाना पड़ेगा, किंतु अंततः विलंब से ही सही अमृत स्नान हुआ। अमृत स्नान में नागाओं से लेकर साधु-सन्यासियों के चेहरे और हाव-भाव तथा दूसरी ओर त्रासदी की घटना के बीच कोई तालमेल नहीं था। इसकी हम और आप अपने अनुसार व्याख्या कर सकते हैं। निश्चित रूप से एक ओर महाकुंभ में स्नान करते लोग प्रफुल्लित हैं तो दूसरी ओर जिनके अपने बिछड़े, जो घायल हुए उनको इससे शांति नहीं मिल सकती। हालांकि सनातन धर्म और विशेषकर हिंदू धर्म में मनुष्य की मृत्यु के कारण, स्थान और समय को पूर्व निर्धारित माना गया है। कौन कब कहां किन कारणों से किस समय इस शरीर से अलग हो जाएगा यह बताना हमारे आपके लिए संभव नहीं है। इसीलिए कहा गया है कि मृत्यु पर शोक कैसा और जन्म पर उल्लास कैसा। हमारी आपकी सामान्य सोच के विपरीत ऐसी प्रतिक्रियायें भी सुनीं कि जिनकी मृत्यु हुई, वे पुण्यात्मा थे और उनका जीवन धन्य हो गया। इस परिस्थिति में जीवन सत्य की ये बातें आसानी से लोगों के गले नहीं उतरतीं। कुछ लोगों के अंदर इससे गुस्सा भी पैदा होगा, किंतु यही जीवन का सच है। हमारे साधु – सन्यासियों, शरीर के रूप में जीवित दिव्य आत्माओं को इसका पूरा आभास है और इसीलिए अमृत स्नान के समय मनुष्य के रूप में भले व्यथा रही होगी, लेकिन इससे उनके कर्मकांड, दिव्य अनुभूति और चेहरे के हाव-भाव में अंतर नहीं आया।
बावजूद हम जिस काल और परिस्थिति में हैं, उसके अनुसार भी घटना की व्याख्या करनी होगी। त्रासदी हुई तो किसी न किसी पर इसकी जिम्मेवारी निश्चित होगी।

करोड़ों की संख्या में ऐसे लोग थे, जिन्हें कोई दुर्घटना हुई इसका पता भी नहीं था। लोग सामान्य तरीके से स्नान कर रहे थे। सामान्यत: वहां जाने वालों की मानसिकता में ही कष्ट उठाने का भाव होता है। इसलिए मौनी अमावस्या के मौन के अलौकिक वातावरण में पुण्य लाभ के भाव से भरे थे और स्नान के साथ ही उन सबके चेहरे पर महासंतोष था। आप टीवी पर प्रतिक्रियाएं देख लीजिए, ऐसे लोग कम होंगे, जिन्होंने स्नान के बाद किसी तरह के असंतोष की भावाभिव्यक्ति की। मुख्यमंत्री ने घटना की न्यायिक जांच के आदेश देने के साथ मृतकों के लिए सम्मानजनक 25 लाख रुपए क्षतिपूर्ति की घोषणा की है। यह मृतक पुण्य आत्माओं के परिवारों को थोड़ी सांत्वना अवश्य देगा। घटना के निश्चित कारणों की जानकारी जांच रिपोर्ट से ही सामने आएगी। वीआईपी व्यवस्था पर प्रश्न उठाने वाले नेताओं को स्वयं के अंदर झांकना चाहिए कि क्या वे इसे छोड़ सकते हैं? वीआईपी व्यवस्था वहां बड़ी समस्या थी। लेकिन यह केवल सत्ता पक्ष पर लागू नहीं होता। अखिलेश यादव को भी वहां वही वीआईपी व्यवहार मिला, रास्ते खाली थे और स्नान घाट के आसपास तक पूरी सुरक्षा व्यवस्था थी।

वैसे इस त्रासदी में वीआईपी व्यवस्था की भूमिका नहीं दिखती है। जैसा मेला अधिकारी विजय किरण आनंद और पुलिस उपमहानिरीक्षक वैभव कृष्ण ने बताया। मौनी अमावस्या के ब्रह्म मुहूर्त स्नान के लिए एकत्रित भारी जनसमूह के बीच अफरा – तफरी मची और अमृत स्नान के लिए बनी बैरिकेडिंग टूटी, भीड़ आगे आगे बढ़ी और जो श्रद्धालु आगे स्नान की प्रतीक्षा में लेटे थे, वे दबते चले गए। घटना इतनी भी हो तो अंदर से दिल दहल जाता है कि क्या बीती होगी उन लोगों पर, जो संगम में डुबकी लगाकर पुण्य लाभ की दृष्टि से वहां बैठे या लेटे रहे होंगे। प्रत्यक्षदर्शी यह भी बता रहे हैं कि कुछ शरारती लोग थे, जो समस्याएँ पैदा कर रहे थे। उन्हीं के कृत्यों के कारण समस्याएं बढ़ीं और अफरातफरी मची। इसकी जांच होनी चाहिए कि वो कौन थे? मोटा -मोटी अनुमान है कि 1 बजे रात के बाद संगम तट पर भीड़ का दबाव बढ़ा। 12 लाख से अधिक श्रद्धालु उस समय संगम तट पर थे और 3:00 बजे भोर से मौनी अमावस्या के अमृत स्नान का ब्रह्म मुहूर्त था। जिन्हें हमारे पंचांग, कर्मकांडों, उनके मुहूर्त आदि की तात्विक जानकारी नहीं, वे इसके महत्व को नहीं समझेंगे। करोड़ों लोगों का अंतर्भाव उस मुहूर्त के साथ स्नान का है तथा साधकों ने उसके दिव्य प्रभावों को प्रमाणित भी किया है।

घटना के बाद अखाड़े और अन्य आश्रमों ने पूरी तरह संयम सहयोग का प्रशंसनीय उदाहरण प्रस्तुत किया। यह सामान्य बात नहीं है कि निश्चित मुहूर्त में निर्धारित समय के अनुसार स्नान पूर्व के कर्मकांड साधन संपन्न कर चुके हों, उन्हें अचानक रोकने को कहें, वे मान लें और विलंब से इस स्वरूप और भाव से स्नान के लिए जाएं। यह हमारी महान संत परंपरा की मानवीयता, संवेदनशीलता और सहनशीलता का उदाहरण है। दृश्य देखिये, एक ओर ऐसी त्रासदी और वहीं इससे परे लाखों श्रद्धालु बैरिकेड के दोनों ओर हाथ जोड़ संत महात्माओं, नागाओं के प्रति सम्मान प्रकट कर रहे थे।

स्वाभाविक रूप से पुलिस प्रशासन पर अमृत स्नान को सर्व प्रमुखता देकर संपन्न करने का दायित्व था और उस रूप में वे व्यवस्था कर रहे थे। कुछ भुक्तभोगी बता रहे हैं कि वे सोए थे और पुलिस वालों ने उन्हें जगाया कि उठो स्नान करो और जब उन्होंने कहा कि हम ब्रह्म मुहूर्त में करेंगे तो उन्होंने दबाव बनाया। संभव है ऐसा हुआ और इसके कारण भी समस्या पैदा हुई हो। जितनी बड़ी संख्या एकत्रित हुई थी उसका दबाव पुलिस प्रशासन पर बिल्कुल रहा और भोर 3 बजे से अमृत स्नान होना था, अखाड़े, साधुओं, संतों की निर्धारित सवारियां आनी थीं, जिन्हें निर्बाध रूप से संपन्न कराना था, इसलिए संभव है कि आम लोगों को उसके पहले स्नान कराकर कुछ घाटों को खाली करने की योजना रही हो।

बताया गया है कि सुबह तक वहां लगभग 6 करोड़ और थोड़ी देर बाद 8 करोड़ की संख्या प्रयागराज में पहुंच चुकी थी। यह विश्व के किसी शहर ही नहीं, अनेक देशों की जनसंख्या से भी अधिक संख्या है। जानकारी यह भी आ रही है कि अमृत स्नान की दृष्टि से पांटून पुलों को बंद रखा गया था ताकि समस्या नहीं हो। लोगों के आने और जाने का एक ही रास्ता बचा था, जिसके कारण समस्या पैदा हुई। सच यह है कि प्रदेश सरकार ने अपने स्तर से स्वतंत्र भारत के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था का प्रयास किया, दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर पुलिस और प्रशासन का उसके अनुरूप व्यवहार अनेक स्थानों पर नहीं दिखता है। निर्माण में लगे ठेकेदारों से लेकर सुपरवाइजरों तक ने भी अपने सारे कार्यों को मानक के रूप में अंजाम नहीं दिया। यह सब वहां दिखाई दे रहा है। किसी भी तरह के जोखिम से बचने की दृष्टि से अतिवादी सुरक्षा व्यवस्था, जहां आवश्यकता नहीं हो उन रास्तों को भी बैरिकेड से घेर देने आदि के कारण पहले से ही पूरे प्रयागराज में ट्रैफिक जाम की भयावह समस्या थी। लाखों की संख्या में लोग संगम घाट पर पहुंचने से वंचित होते रहे। व्यावहारिकता से उनकी समीक्षा कर आवश्यकतानुसार इनमें बदलाव के लिए कदम उठाने को कोई तैयार नहीं था। अब वाहन निषिद्ध क्षेत्र घोषित करना भी इसी तरह का अतिवादी कदम है। संगम नगरी, जहां आश्रमों और आम लोगों ने कल्पवास किया है, वहां भीड़ नहीं है और गाड़ी जाने-आने में भी समस्या नहीं है। आप वाहन रोक देंगे तथा रेलवे में बसों में जगह नहीं मिलेगी तो लोग महाकुंभ आने, संगम स्नान करने से वंचित होंगे। इससे नए सिरे से परेशानियां पैदा होंगी। इस घटना से सीख लेकर ठीक प्रकार से समीक्षा कर व्यवस्था नहीं हुई तो दूसरे प्रकार की समस्यायें हो सकती हैं। पूरी व्यवस्था पुलिस प्रशासन के जिम्मे छोड़ने की जगह पार्टियों, संगठनों के कार्यकर्ताओं आदि की भूमिका हो। आप देखेंगे स्वयंसेवी संगठन, धार्मिक -सामाजिक -सांस्कृतिक संस्थाएं भी जबरदस्त भूमिका निभा रहीं हैं और उनसे लोगों को स्नान, पूजा, आवास, आने – जाने सब में सहयोग मिल रहा है।

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