महाकुंभ दुर्घटना : विकृत राजनीति करने वाले याद करें अपना इतिहास
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मृत्युंजय दीक्षित
महाकुंभ दुर्घटना : विकृत राजनीति करने वाले याद करें अपना इतिहास
प्रयागराज में 144 वर्षों के पश्चात होने वाला महाकुंभ अपने आयोजन के आरंभ से ही सनातन विराधी शक्तियों के निशाने पर है, चाहे वह महाकुंभ में गैर हिंदुओं को दुकानें आवंटित करने का प्रकरण हो या फिर व्यवस्थाओं का। कुम्भ को लेकर अखिलेश यादव के नेतृत्व में हो रही बयानबाजी के पीछे का प्रमुख कारण सपा नेता का यह डर है कि कुम्भ का सफल आयोजन मुख्यमंत्री के पक्ष में एक लहर उत्पन्न कर देगा और 2027 में सत्ता में आने की उनकी आशाओं पर पानी फिर जायेगा। पौष पूर्णिमा के साथ 13 जनवरी को पूर्ण भव्यता के साथ आरम्भ हुआ कुम्भ प्रतिदिन श्रद्धालुओं की दिन दूनी रात चौगुनी उमड़ती भीड़ और व्यस्थाओं के प्रति उसके संतोष से सभी के आकर्षण का केंद्र बन गया। हर व्यक्ति कुम्भ की ओर बढ़ चला। हर ओर सनातन के साथ साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व उनके सक्षम प्रशासन की चर्चा होने लगी। इसके साथ साथ सनातन विरोधियों तथा मोदी योगी के राजनैतिक विरोधियों की ईर्ष्या भी परवान चढ़ने लगी। विरोधी महाकुंभ और उसकी व्यवस्थाओं को बदनाम करने के लिए प्रतिदिन कोई न कोई अफवाह फैलाकर महाकुंभ आने वाले श्रद्धालुओं में उत्साह की कमी करने का प्रयास करने लगे।
सपा मुखिया ने महाकुंभ की छवि खराब करने को अपना राजनैतिक लक्ष्य बना लिया है। पार्टी ने महाकुंभ में हिंदू समाज को चिढ़ाने के लिए राम भक्तों का नरसंहार करने वाले उनके पिता मुलायम सिंह यादव की प्रतिमा लगवाई और अपने चाचा के अस्थि विसर्जन के समय उनके गंगा स्नान को कुम्भ से जोड़कर प्रसारित किया। हिंदू समाज का दबाव बढ़ने पर अखिलेश यादव गणतंत्र दिवस के दिन महाकुंभ मेले में स्नान करने के लिए पहुंच गये और अपने पिता को महान संत कह डाला। सपा मुखिया अखिलेश यादव उस समय महाकुंभ पहुंचे, जब मौनी अमावस्या पर स्नान करने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ रहा था। स्पष्ट है कि सपा मुखिया अपनी विकृत राजनीति का संदेश देने ही प्रयागराज गये थे।
श्रद्धालुओं के भारी दबाव के कारण संगम तट पर दुखद भगदड़ की स्थिति बनी और 30 श्रद्धालु मौन हो गये। प्रशासन की सतर्कता से स्थिति शीघ्र ही नियंत्रण में आ गई अन्यथा यह त्रासदी और भयावह हो सकती थी। अधिकारियों ने जिस प्रकार से ग्रीन कॉरिडोर बनाकर घायलों को तत्काल स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाईं तथा संगम घाट पर स्नान आरम्भ कराया, वह अत्यंत प्रशंसनीय है। व्यवस्थाओं को पटरी पर लाने के साथ ही घटना की जांच के लिए न्यायिक आयोग भी बना दिया गया है क्योंकि घटना के प्रत्यक्षदर्शियों के बयान किसी षड्यंत्र का संकेत दे रहे हैं। इस दुर्घटना के बाद न तो सनातनी श्रद्धालुओं की निष्ठा पर कोई असर पड़ा और न ही मुख्यमंत्री योगी की कर्तव्यनिष्ठा पर उनके विश्वास को ठेस पहुंची, किन्तु सपा मुखिया अखिलेश यादव और अन्य विरोधियों को राजनैतिक रोटियां सेंकने का अवसर अवश्य मिल गया। बिल्ली के भाग्य से छींका टूट ही गया। विपक्षी इस दुर्घटना में अपनी राजनीति का आसान रास्ता खोज रहे हैं। इन नेताओं को अपना इतिहास याद करना चाहिए।
1947 में अंग्रेजों के जाने के बाद भारत का प्रथम पूर्णकुंभ तत्कालीन इलाहाबाद में 1954 में लगा था। उस वर्ष मौनी अमावस्या 3 फरवरी को पड़ी थी। तब बारिश के कारण चारों ओर कीचड़ और फिसलन थी। सुबह लगभग आठ से नौ बजे के मध्य सूचना आई कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू स्नान करने के लिए आ रहे हैं, भीड़ उन्हें देखने के लिए टूट पड़ी और भगदड़ मच गई। जिसके कारण कम से कम 1000 लोग मारे गये और अनेकानेक घायल हुए और कई लापता हो गये। जो कांग्रेसी आज महकुंभ की दुर्घटना पर सोशल मीडिया में जहर उगल रहे हैं, उन्हें अपना इतिहास व कर्म भी याद रखने चाहिए। जो कांग्रेस पार्टी आज योगी सरकार से त्यागपत्र मांग रही है, उस समय राज्य में उसी कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने बयान दिया था कि यहां पर कोई दुर्घटना घटी ही नहीं है। उस समय के एक खोजी पत्रकार एनएन मुखर्जी, जो उस समय वहां पर उपस्थित थे, ने कुंभ की कुछ तस्वीरें खींच ली थीं, जो छायाकृति नामक एक हिंदी पत्रिका में प्रकाशित हुई थीं और सच सामने आया था। उस समय दबाव बढ़ने पर सरकार की ओर से शर्मनाक बयान दिया गया था कि वहां पर कुछ भिखारी ही मरे हैं। उस समय राजभवन में सरकारी पार्टियों का दौर चल रहा था, जिसकी तस्वीरें तत्कालीन समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई थीं। उपन्यासकार समरेश बसु ने अपने उपन्यास “अमृत कुंभ की खोज“ में नेहरू के कारण कुंभ में हुई इस दुर्घटना का हृदय विदारक विवरण लिखा है, जो अमृत बाजार पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। उस समय के नेहरू भक्तों का कहना था कि घटना के समय नेहरू वहां पर नहीं थे, किंतु बाद में उन्होंने ही इस बात से संसद में पर्दा उठाया था कि वह दुर्घटना के समय वहां पर थे। उनका यह बयान आज भी संसद के लाइब्रेरी कक्ष में मौजूद है। इसके विपरीत आज प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में स्थिति पर तुरंत नियंत्रण किया गया है, स्वयं मुख्यमंत्री दिन रात वॉररूम में स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं।
वर्ष 2013 में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी। उस समय कुंभ में मची भगदड़ में मृतकों को कफन तक नहीं उपलब्ध हो सके थे। अखिलेश यादव ने कुंभ का दायित्व अपने मुस्लिम मंत्री आजम खां को दिया थ। 10 फरवरी 2013, मौनी अमावस्या का दिन था, लोग गंगा की पवित्र डुबकी लगाकर वापस जा रहे थे। तभी शाम को प्रयागराज जंक्शन पर चीख पुकार मचने लगी। रेल का प्लेटफॉर्म बदलने की घोषणा हो जाने के कारण रेलवे पुल पर बहुत भीड़ हो गई थी और सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार भगदड़ में 36 लोगों की जानें चली गईं। उस समय रेलवे कुंभ वॉर्ड में ताला लगा था और कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। रुई और पट्टी को छोड़कर कोई चिकित्सा व्यवस्था नहीं थी।
आज की योगी आदित्यनाथ सरकार ने पीड़ित परिवारों को 25 -25 लाख की सहायता राशि देने की घोषणा की है जबकि अखिलेश यादव ने तो मात्र एक लाख रुपये की ही सहायता राशि दी थी और पीड़ितों को उनके घर तक पहुंचाने की व्यवस्था तक नहीं की थी। योगी सरकार पर प्रश्न उठाने वालों को अपना इतिहास याद रखना चाहिए।
अभी तक महाकुंभ में हुई किसी भी दुर्घटना की जांच, किसी भी सरकार ने नहीं करवायी है। यह योगी सरकार ही है, जो महाकुंभ दुर्घटना की दो स्तरीय जांच करवाने जा रही है, जिसके बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। यह बहुत ही गर्व की बात है कि महाकुंभ में दुखद दुर्घटना के बाद भी सनातन हिंदू समाज का उत्साह कम नहीं हुआ है अपितु वहां पर श्रद्धालुओं का सैलाब लगातार उमड़ रहा है और वे उसी भक्ति, श्रद्धा और आस्था से पवित्र डुबकी लगा रहे हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)