99 युद्ध जीते, 80 घाव खाए, ऐसे महाराणा सांगा का बनेगा पैनोरमा
99 युद्ध जीते, 80 घाव खाए, ऐसे महाराणा सांगा का बनेगा पैनोरमा
भरतपुर। राजस्थान के भरतपुर जिले के रूपवास क्षेत्र में स्थित खानवा युद्ध स्मारक स्थल को एक नया रूप दिया जा रहा है। यहां बनने वाला महाराणा सांगा पैनोरमा अब देश और विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा। इस पैनोरमा में महाराणा सांगा के बचपन से लेकर उनके अंतिम युद्ध तक की गाथा को मूर्तियों और अभिलेखों के माध्यम से एक बार फिर से जीवंत किया जाएगा। कैला देवी चैत्र मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पैनोरमा में भव्य प्रवेश द्वार बनाया जाएगा। भरतपुर के पर्यटक स्थलों और राष्ट्रीय राजमार्गों पर भी खानवा युद्ध स्मारक के साइनेज लगाए जाएंगे। इस परियोजना के अंतर्गत, पैनोरमा के साथ-साथ एक लाइट एंड साउंड शो भी आयोजित किया जाएगा, जिसमें लेजर किरणों के माध्यम से बाबर और महाराणा सांगा के बीच हुए युद्ध को प्रदर्शित किया जाएगा।
प्रतिवर्ष 3 अक्टूबर को यहॉं एक भव्य समारोह आयोजित किया जाएगा। इस समारोह में विभिन्न विभागों की झांकियां, मेला और महाराणा सांगा के जीवन पर आधारित पेंटिंग, निबंध, रंगोली, और क्विज प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। इस आयोजन को पर्यटन विभाग के कैलेंडरों में भी स्थान दिया जाएगा। पैनोरमा के मुख्य द्वार को बंशी पहाड़पुर के पत्थरों से भव्य रूप दिया जाएगा।
महाराणा सांगा एक अप्रतिम योद्धा
महाराणा सांगा (1482–1528) मेवाड़ राज्य के एक महान शासक थे, जिन्हें राणा सांगा के नाम से भी जाना जाता है। उनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था। वे राणा कुंभा के पौत्र और महाराणा रायमल के पुत्र थे। महाराणा सांगा ने 1508 से 1528 तक मेवाड़ पर शासन किया। वे अपनी बहादुरी और युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने मेवाड़ राज्य को मजबूत और समृद्ध बनाया। महाराणा सांगा अंतिम शासक थे, जिनके ध्वज तले खानवा के युद्ध में समस्त राजपूताना एकजुट हुआ था। महाराणा सांगा के समय मेवाड़ दस करोड़ वार्षिक आमदनी वाला प्रदेश था।
महाराणा ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को दो बार युद्ध में परास्त किया और गुजरात के सुल्तान को मेवाड़ की तरफ बढ़ने से रोक दिया। बाबर को बयाना के युद्ध में बुरी तरह परास्त किया और बाबर से बयाना का दुर्ग जीत लिया।
महाराणा सांगा अपनी बहादुरी के लिए तो प्रसिद्ध थे ही, उन्होंने नैतिकता के भी उच्च प्रतिमान गढ़े। महाराणा ने मालवा के मुस्लिम सुल्तान को युद्ध में हराया और 6 महीने तक अपनी कैद में रखा। उसके घाव ठीक होने पर उसे वापस छोड़ दिया।
खानवा का युद्ध
16 मार्च, 1527 को हुए खानवा के युद्ध में राणा सांगा ने बाबर को कड़ी टक्कर दी। राणा सांगा के पास वीर योद्धा थे तो, बाबर के पास गोला-बारूद का बड़ा जखीरा। बाबर ने तोपों के साथ ही छल का भी प्रयोग किया। उसने राणा की सेना के सेनापति लोदी को प्रलोभन देकर सैन्य टुकड़ी समेत अपनी ओर मिला लिया। अपनी सेना के बीच भी जिहाद की घोषणा कर दी और मुसलमानों पर से तमगा (एक प्रकार का सीमा टैक्स) हटा लिया, साथ ही अपनी सेना को अन्य कई प्रकार के लालच दिए। दिन भर चली लड़ाई में राणा सांगा घायल होने पर मूर्छित हो गए, उन्हें युद्ध क्षेत्र से बाहर ले जाया गया। अत्यंत पराक्रम से लड़ने के बावजूद इस युद्ध में राणा सांगा की हार हुई। इस जीत के बाद बाबर ने स्वयं को गाजी की उपाधि दी और क्रूरता की सीमाएं लांघ दीं। तैमूर की भांति हिन्दुओं के कटे सिरों की मीनारें खड़ी कीं। सैकड़ों मंदिर तोड़े गए। हजारों क्षत्राणियों ने जौहर कर अपने सतीत्व की रक्षा की। बाबर की क्रूरता का उल्लेख सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में किया है। इस युद्ध के बाद ही मुग़ल वंश की शुरुआत हुई।
राणा सांगा ने अपने जीवन काल में 100 से अधिक युद्ध लड़े और सभी जीते केवल खानवा के युद्ध को छोड़कर। खानवा के युद्ध के कुछ दिन बाद ही उन्हें किसी ने जहर दे दिया।
दुर्भाग्य से हमें सिर्फ हारे हुए युद्ध के बारे में ही बताया और पढ़ाया गया। खानवा का युद्ध सनातन संस्कृति और मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ा गया था।
महाराणा सांगा पैनोरमा बनने से हमारे इतिहास की इस गौरव गाथा को विश्व पटल पर एक नई पहचान मिलेगी।