पटना का महावीर मंदिर : देवालय से सेवालय तक

पटना का महावीर मंदिर : देवालय से सेवालय तक

संजीव कुमार

पटना का महावीर मंदिर : देवालय से सेवालय तकपटना का महावीर मंदिर : देवालय से सेवालय तक

पटना के रेलवे स्टेशन के सामने रामभक्त महावीर हनुमान का एक जीर्ण-शीर्ण मंदिर होता था। कोई ढाई सौ, तीन सौ वर्ष पुराना तो इसका ज्ञात इतिहास है, वस्तुतः यह कितना प्राचीन है, कोई नहीं जानता। इसे जीर्ण-शीर्ण हालत में देख पटना के कुछ प्रबुद्धजनों के मन में वेदना उठी, वही वेदना जो कभी जामवंत के मन में उठी थी – ‘का चुप साधि रहा बलवाना‘। उस समय देश के प्रख्यात आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने मंदिर को पटना के समाज-जागरण का केन्द्र बनाने का संकल्प किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व क्षेत्र संघचालक स्व. कृष्णवल्लभ प्रसाद नारायण सिंह उपाख्य बबुआ जी और आईएएस पदाधिकारी एके चटर्जी ने उन्हें इस कार्य के लिए प्रेरित किया और फिर एक ऐसी साधना शुरू हुई, जिसने आज हर धर्म-साधक को आह्लादित कर रखा है। यही प्राचीन जीर्ण-शीर्ण महावीर मंदिर आज विशाल बहुमंजिला भव्य मंदिर बन गया है।

जहां किशोर कुणाल को भी मंदिर की साधना ने आचार्य किशोर कुणाल बना दिया। वहीं इस मंदिर में सामाजिक समरसता का प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मुख्य पुजारी पद पर तथाकथित पिछड़े वर्ग के एक प्रकाण्ड पंडित को बनाया गया। 30 अक्तूबर, 1983 को पटना के नागरिकों के सम्मिलित प्रयास से मंदिर का नवनिर्माण प्रारंभ हुआ। कारसेवा के लिए पहला कुदाल बबुआ जी ने चलाया। उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि यह मंदिर आगे चलकर आध्यात्मिक जागरण के साथ सामाजिक विकास के केन्द्र के रूप में पहचाना जाने लगेगा। 1985 में नवनिर्मित मंदिर का भव्य उद्‌घाटन हुआ और शुरू हो गया परिवर्तन का नया अध्याय। मंदिर के कार्य को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए मार्च, 1990 में एक नए न्यास का गठन हुआ और इसी के साथ दुनिया ने देखा कि हिन्दू समाज अपने श्रद्धा केन्द्रों का कैसा उत्कृष्ट और प्रभावी प्रबंधन करता है। न सिर्फ मंदिर में पूजा-अर्चना, चढ़ावे आदि के बारे में नई प्रबंध प्रक्रिया प्रारंभ हुई, वरन् चढ़ावे का समुचित उपयोग किस प्रकार सामाजिक विकास के प्रकल्पों में हो, इसकी भी प्रभावी योजना तैयार हुई।

घटना 60 के दशक की है, जब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर अपनी किसी बीमारी के इलाज के लिए दिल्ली आए थे। दिल्ली के चिकित्सकों ने उनसे कहा था कि आपका बेहतर इलाज पटना में ही हो सकता था। ऐसी ख्याति थी तब पटना की, लेकिन इस स्थिति में धीरे-धीरे बदल होता गया। बदहाली ऐसी फैली कि लोग अपने पुरुषार्थ और गौरव को ही भुला बैठे। आचार्य किशोर कुणाल ने महावीर मंदिर न्यास को सर्वप्रथम इस स्थिति को बदलने के लिए सक्रिय किया। पटना के प्रमुख चिकित्सकों के साथ मिलकर 2 जनवरी, 1988 में जो महावीर आरोग्य संस्थान का छोटा सा बिरवा किदवईपुरी मुहल्ले में लगाया। आज वह राज्य के आधुनिकतम अस्पतालों में एक है। महंगी चिकित्सा गरीब व्यक्ति को भी न्यूनतम खर्च पर मिल जाए, मंदिर प्रबंधन ने इस लक्ष्य को सदैव अपने सामने रखा। 4 दिसम्बर, 2005 को द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ने 60 बिस्तरों से युक्त नए अस्पताल परिसर का उद्‌घाटन किया। मंदिर प्रशासन ने चढ़ावे की राशि का सदुपयोग करते हुए फुलवारी शरीफ में आधुनिकतम तकनीकी सुविधाओं से युक्त कैंसर अस्पताल भी प्रारंभ किया। 2008 में यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर की एक गोष्ठी सम्पन्न हुई, जिसका उद्‌घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने किया था। यह कैंसर अस्पताल राज्य का सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल है. कैंसर चिकित्सा के लिए संस्थान के निदेशक डॉ. जितेन्द्र सिंह को भारत सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया।

इसी प्रकार मातृत्व-शिशु कल्याण को ध्यान में रखकर 250 बिस्तरों से युक्त अस्पताल के निर्माण की योजना बनी और शुरुआती चरण में 38 बिस्तरों वाले मातृत्व शिशु वात्सल्य अस्पताल की नींव 1 अप्रैल, 2006 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रखी. राज्य के प्रतिष्ठित व्यवसायी और जहाज उद्योग से जुड़े बच्चा बाबू ने अपनी ज़मीन निःशुल्क उपलब्ध करायी. मात्र 20 रुपये पंजीकरण शुल्क, 100 रुपये बिस्तर शुल्क और 4 से 5 लाख रुपये खर्च वाले ऑपरेशन यहां मात्र 15 से 25 हज़ार रुपये में ही हो जाते थे. निःसन्तान दंपतियों के कष्ट निवारण में भी अस्पताल प्रबंधन सक्रिय हो गया है. दीन-हीन, भूखे लोगों को प्रतिदिन भर पेट प्रसाद देने के लिए ‘दरिद्र नारायण भोज’, सन्तों -साधुओं के लिए निःशुल्क निवास प्रसाद व चिकित्सा के लिए ‘साधु सेवा’,  समाज को स्वस्थ साहित्य पढ़ने का अवसर देने के लिए एक समृद्ध पुस्तकालय, महावीर मंदिर प्रकाशन, ज्योतिष सलाह केन्द्र, दूरदराज के गांवों में शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए पेयजल अभियान, संस्कृत भाषा के नवोत्थान के लिए पाणिनी केन्द्र, अस्पृश्यता निवारण के लिए विभिन्न त्योहारों पर विराट सर्व सहभागी उत्सव, सामाजिक मिलन के आयोजन, भगवान के भोग के लिए नैवेद्यम और इन सभी कार्यों में सक्रिय कर्मियों के लिए सरकारी योजनाओं के अनुकूल सुन्दर नीति का निर्धारण और प्रत्यक्ष संचालन आज महावीर मंदिर को ओर से किया जा रहा है। नित्य नए आयाम मंदिर से जुड़ रहे हैं। पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार, जल संरक्षण, पर्यावरण शुद्धि और राज्य के अनेक हिस्सों में अनेक मंदिरों को पुर्नव्यवस्थित करने के साथ अनुसूचित जाति के प्रशिक्षित धर्मज्ञ पुजारियों की योजना करने जैसे पवित्र अभियान को मंदिर गति दे रहा है। ऐसा ही एक प्रकल्प सदानीरा गण्डकी के तट पर सन् 2006 में निर्मित किया गया। लगभग 37 वर्ष पहले की बात है। हाजीपुर नगर के समीप गण्डकी नदी के तट पर भगवान भोलेनाथ अद्भुत लिंग रूप में प्रकट हुए थे। भक्तों की भीड़ यहां जुटने लगी, जलाभिषेक प्रारंभ हो गया, 30 वर्षों तक भगवान आकाश की छत के नीचे रहे। महावीर न्यास ने इसे भी समाज जागृति के केन्द्र के रूप में विकसित करने की ठानी और 28 फरवरी, 2006 को भव्य शिव मंदिर कर निर्माण कर क्षेत्रवासियों को सौंप दिया। मंदिर से आचार्य किशोर कुणाल को इतना लगाव था कि उन्होंने अपना अंतिम संस्कार मंदिर के समीप स्थित कौन हारा घाट में करने को कहा था। उनकी मृत्यु 29 दिसंबर को हुई और इसी कोनहरा घाट पर 30 दिसंबर को उनके पार्थिव शरीर को मुखाग्नि पुत्र सायन कुणाल ने दी।

मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना का दायित्व अनुसूचित जाति के चन्द्रशेखर दास ने संभाला और धीरे-धीरे समाज के लिए एक श्रेष्ठ उपासना का केन्द्र यहां विकसित हो गया। मुजफ्फरपुर में भी न्यास ने साहू पोखर स्थित राम-जानकी मंदिर का प्रबंधन संभाला और नियमित पूजन-अर्चना के लिए पुजारी की व्यवस्था की। बिहार के सभी मंदिरों में प्रत्येक दिन दीया जलाने का संकल्प महावीर मंदिर न्यास के कार्य से झलकता है।

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