मेरी धानक्या यात्रा
कुलदीप
मेरी धानक्या यात्रा
धानक्या एक छोटा सा गांव है, जो जयपुर से जोधपुर को जोड़ने वाले रेलमार्ग पर स्थित है। पं. दीनदयाल उपाध्याय से जुड़ा होने के कारण यह स्थल बेहद ऐतिहासिक व वैचारिक महत्व रखता है। जयपुर रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी मात्र 19 किलोमीटर है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने बाल्यकाल के कुछ वर्ष व अपनी सातवीं तक की शिक्षा इसी गांव से प्राप्त की थी। उनकी स्मृति में यहां एक राष्ट्रीय स्मारक बनाया गया है। रविवार (28 अप्रैल, 2024) को एक अध्ययन यात्रा पर यहां आने का सुअवसर मिला।
पंडित दीनदयाल जी के बचपन का नाम दीना था। उन्होंने जिस रेलवे क्वार्टर संख्या 8 में अपने बचपन के खेल-तमाशे और शरारतें की थीं, उस स्थल को प्रत्यक्ष देख कर मन भावों के गहरे सागर में डूब गया और भावनाएं अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं। पंडित जी के महान व्यक्तित्व को विचारों के रूप में पढ़ने वाले एक छात्र के रूप में वो मेरे लिए बेहद आदरणीय रहे हैं, लेकिन जब उनके जीवन से जुड़े स्थल पर जाने का अवसर मिला तो रोमांचित होना स्वाभाविक था।
एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसने अभावों में जीते हुए अपना संपूर्ण जीवन अंत्योदय के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनका विचार था कि अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के जीवन में सुखद परिवर्तन लाने के लिए भारतीय चिंतन पद्धति पर आधारित एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण हो, जो न केवल भारत बल्कि संपूर्ण जगत के कल्याण में कारगर सिद्ध हो। आज़ जब देश के निर्धन वर्ग को देखते हैं, तो बार बार दीन दयाल जी के विचार हमारे लिए प्रेरणा स्रोत बनते हैं।
पंडित जी का जीवन हम सब के लिए अनुकरणीय है। उनके सामाजिक जीवन के कुछ किस्से, जैसे खोटे सिक्के की भूल को अगली सुबह सुधारना, ट्रेन में सामान्य श्रेणी की जगह प्रथम श्रेणी में यात्रा करने पर स्टेशन आकार अपना जुर्माना देना, बेहद कम संसाधनों से जीवन यापन करना, कार्य के प्रति कर्मठता, जिजीविषा, मूल्यों को प्राथमिकता में रखते हुए अडिग रहना, राजनीतिक कीचड़ में कमल खिलाना व एकात्म मानव दर्शन जैसे महान विचार समाज के सम्मुख आदर्श हैं।
पूरा स्मारक विजिट करने के बाद मैंने अनुभव किया कि पंडित जी के जीवन और जीवन मूल्यों को जानने व समझने के लिए हर किसी को यहां कम से कम एक बार तो अवश्य आना चाहिए।