मातृभाषा : वात्सल्य की भाषा
शैशवावस्था में मानव जो प्रथम भाषा सीखता व बोलता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं, जो माँ की ममता के स्नेह से परिपूर्ण होती है। अपनी जननी के साथ हर क्षण को बांटना, सिखना और समझना एक बच्चा जिस भाषा से शुरू करता है, जीवन के प्रारंभ में संचार का यह प्राथमिक साधन मातृभाषा ही कहलाता है। मनुष्य के जीवनकाल में सर्वप्रथम अपनी भावनाओं को शब्दों में पहचान देना मातृभाषा के द्वारा होता है। हम जिससे वात्सल्य प्राप्त करते हैं उसे सम्मान स्वरूप मां कहते हैं।
मातृभाषा का अस्तित्व देश, स्थान और संस्कृति के अनुसार बनता है, जो सम्पूर्ण विश्व में अलग-अलग परन्तु महत्वपूर्ण है। प्रत्येक व्यक्ति की पहचान जिस प्रकार उसके देश, वेश, नगर, परिवार व नाम से होती है वैसे ही भाषा बोली भी उसी पहचान का हिस्सा है। भारत बहुभाषी देश है, अन्य विविधताओं की तरह भाषाओं की विविधता भी पर्याप्त है। किसी भी अंचल में बोली जाने वाली भाषा उस अंचल के निवासियों की मातृभाषा है। हिन्दी अधिकांश प्रान्तों में बोलचाल की भाषा है। हम केवल उसे ही मातृभाषा मान लेते हैं, जबकि वह सम्पूर्ण भारत की सम्पर्क भाषा है।
हमारे संविधान में कुल 22 भाषाओं को मान्यता है। ये भाषाएँ अपने भारत को सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। संवाद, लेखन, पठन, अभिव्यक्ति, परम्पराएं, गीत, भजन, रीति-नीति व जीवन मूल्यों आदि अनेकों रूप में मातृभाषा को सहेजा जाता रहा है।
मातृभाषा में शिक्षा बालक के लिए सर्वाधिक ग्राह्य होती है। मानव संसार के किसी भी कोने का क्यों न हो, परन्तु जब भी वह पीड़ा के क्षण में होता है तो उसके मुख से उसकी मातृभाषा में ही शब्द निकलते हैं। पीड़ा के उस असहनीय समय में मातृभाषा में निकली आवाज औषधि का भी अनुभव कराती है, माँ के सानिध्य सा।
मातृभाषा शर्म नही मर्म है
आज बहुत से लोग जो अपनी मातृभाषा को बोलना बन्द कर चुके हैं, जिसका कहीं-कहीं कारण लज्जा, दिखावा भी होता है, उनको भी कोई गूढ़ विषय सहज सरल अपनी मातृभाषा में ही समझ आता है।
मातृभाषा में भावाभिव्यक्ति सरल और अधिक प्रभावी होती है। भावनाओं की निजता से यह निजभाषा भी कही जाती है। प्रत्येक व्यक्ति के धड़कते हृदय की पहचान है मातृभाषा। हम सभी को अपनी मातृभाषा की अनमोलता पर गर्व होना चाहिए व अन्यों की मातृभाषा का सम्मान करना चाहिए। हमारे जीवन-व्यवहार में मातृभाषा, देशभक्ति, संस्कृति और समृद्धि का प्रतीक है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी मातृभाषाओं के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। हम प्रतिदिन अपने घर परिवार की बोलचाल में मातृभाषा को चलायमान करें।