वर्ष 2003 में आज के दिन दहला था मुम्बई, हुई थी 54 निर्दोष नागरिकों की मौत
रमेश शर्मा
वर्ष 2003 में आज के दिन दहला था मुम्बई, हुई थी 54 निर्दोष नागरिकों की मौत
अगस्त माह में भारत स्वतंत्र हुआ था। इस माह में भारतवासी स्वतंत्रता का उत्सव मनाते हैं। लेकिन इतिहास के पन्नों में अगस्त का महीना विभाजन की त्रासदी, मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन डे के नरसंहार, अगस्त क्रान्ति पर अंग्रेजों के गोली चालन जैसे अनेक दर्द समेटे हुए है। हालांकि ये सब स्वाधीनता के पूर्व की स्मृतियाँ हैं, परंतु स्वाधीनता के बाद भी भारत की खुशियों को छीनने के षड्यंत्र लगातार होते रहे हैं। ऐसा ही एक कुचक्र 25 अगस्त 2003 को रचा गया, जब मुंबई में दो स्थानों पर कार बम विस्फोट हुए, जिनमें 54 निर्दोष लोगों के प्राण गये और 244 लोग घायल हुए। घायलों में कुछ और लोगों ने बाद में प्राण त्यागे। 25 अगस्त को एक धमाका जावेरी बाजार में हुआ और दूसरा गेटवे ऑफ इंडिया पर। ये दोनों धमाके ऐसे थे, जिनमें न केवल मुम्बई अपितु पूरे देश में सनसनी फैल गई थी।
जावेरी बाजार के धमाके में 29 लोगों की मौत हुई थी। यह धमाका इतना जबरदस्त था कि 200 मीटर दूर तक जमीन हिल गई और अनेक मकानों में तो दरार आ गई थी। एक ज्वैलरी स्टोर सहित कुछ दुकानों के शीशे टूट गए थे।
पुलिस और प्रशासन अभी ठीक से बचाव कार्य शुरु भी नहीं कर पाया था कि गेटवे ऑफ इंडिया पर दूसरा बम धमाका होने की खबर आ गयी। यह धमाका भी कार बम बिस्फोट था। गेटवे आफ इंडिया के धमाके में 25 लोगों की मौत हुई और 200 से अधिक लोग घायल हुए।
दोनों बम विस्फोट टैक्सियों में किये गए थे। आतंकवादियों ने दोनों टैक्सियों में टाइम बम रखे थे। निर्धारित समय पर विस्फोट हुए। दोनों घटनाओं में आरोपियों ने दो अलग अलग टैक्सी किराये पर लीं और उपर्युक्त दोनों स्थानों पर ड्राइवर को जल्दी लौटने का कह कर स्वयं टैक्सी से उतर गए। जावेरी बाजार में टैक्सी ड्राइवर गाड़ी में बैठा उनके लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था, तभी हुए विस्फोट में उसकी मौत हो गई। गेटवे ऑफ इंडिया पर हुए विस्फोट में टैक्सी ड्राइवर की जान बच गई क्योंकि वह गाड़ी से बाहर निकलकर टहलने लगा था। इस ड्राइवर के बयान हुए, आरोपियों का सुराग लगा और फहमीदा व अशरफ पकड़े गये। ये पाकिस्तान से संबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर से जुड़े थे। 6 वर्ष बाद अगस्त 2009 में अदालत ने इन्हें फाँसी की सजा सुनाई। लेकिन उन्होंने हाईकोर्ट में अपील कर दी, तो मामला 16 वर्षों तक अदालतों में घूमता रहा।