पुनर्जीवित हुआ प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय

पुनर्जीवित हुआ प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय

पुनर्जीवित हुआ प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालयपुनर्जीवित हुआ प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय

वर्ष 1193 में जिस नालंदा विश्वविद्यालय को आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने आग लगाकर नष्ट कर दिया था, उसी ऐतिहासिक विश्वविद्यालय के नए कैंपस का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को उद्घाटन किया। 

कार्यक्रम में 17 देशों के राजदूत भी सम्मिलित हुए। इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि मैं इसे भारत के विकास के एक शुभ संकेत के रूप में देखता हूं। नालंदा केवल नाम नहीं, यह पहचान है। नालंदा मंत्र, गौरव और गाथा है। आग की लपटों में पुस्तकें भले जल जाएं, लेकिन लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं।

यह नया कैंपस बिहार के राजगीर में प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के पास ही बनाया गया है। नालंदा विश्वविद्यालय भारत के समृद्ध इतिहास की अमिट कहानी रहा है, जो प्राचीन भारत के गौरवशाली अतीत को दर्शाता है।

विश्वविद्यालय के नए कैंपस की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के अंतर्गत की गई है। इस अधिनियम में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए वर्ष 2007 में फिलीपीन में आयोजित दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय को लागू करने का प्रावधान किया गया है।

नए कैंपस की विशेषताएं 

नया नालंदा विश्वविद्यालय, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की विरासत को ध्यान में रखते हुए स्थापित किया गया है, लेकिन आधुनिक शिक्षा और अनुसंधान की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इसे विशेष रूप से डिजाइन किया गया है।

यहां ग्लोबल फैकल्टी, बहुसांस्कृतिक वातावरण, अंतरविषयक पाठ्यक्रम, अनुसंधान केंद्र, ग्रीन कैंपस, सस्टेनेबिलिटी स्टडीज, लाइब्रेरी और रिसोर्स सेंटर, टेक्नोलॉजी-इनेबल्ड क्लासरूम्स आदि का विशेष ध्यान रखा गया है।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास 

नालंदा विश्वविद्यालय को भारत में स्नातकोत्तर शिक्षा, उन्नत अध्ययन और अनुसंधान का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता थी। कई अन्य व्यक्तिगत विहार, कॉलेज तथा निवास स्थान इस केंद्रीय संस्थान के अंतर्गत कार्य करते थे।

राजा कुमार गुप्त (415-455 ई.) ने नालंदा में बौद्ध भिक्षुओं के प्रशिक्षण के लिए प्रथम मठ बनवाया था। नालंदा विश्वविद्यालय का विस्तृत विवरण चीनी यात्री ह्वेन त्सांग से मिलता है, जो राजा हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान अपनी पढ़ाई के लिए यहॉं आया और पांच वर्ष तक छात्र के रूप में रहा। तिब्बती इतिहासकार लामा तरानाता भी अपने लेखन में नालंदा का विवरण देते हैं।

नालंदा विश्वविद्यालय में एक समय में 8,500 छात्र तथा 1,510 शिक्षक थे।  कोरिया, मंगोलिया, जापान, चीन, तुखारा, तिब्बत और श्रीलंका (सीलोन) जैसे देशों से भी बड़ी संख्या में छात्र यहॉं पढ़ने आते थे। कुछ विदेशी छात्रों ने भारतीय नाम भी ग्रहण किये। उदाहरण के लिए, हुआन चाओ ने प्रकाशसमती, ताओ-शिंग ने चंद्रदेव तथा ताओ-ही ने श्रीदेव नाम अपनाया।

नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति या अध्यक्ष शील भद्र थे। नालंदा विश्वविद्यालय अपनी मुहर के लिए प्रसिद्ध था, जिस पर शिलालेख ‘श्री-नालंदा महाविहारिया-आर्यभिक्षु संघस्य’ लिखा जाता था। इसमें एक पुस्तकालय था, जो तीन भवनों में स्थित था। इनमें एक भवन नौ मंजिला था, जिसका नाम रत्नसागर था। मौखरि वंश राजा के एक शिलालेख के अनुसार, नालंदा विहार गगनचुम्बी इमारत को ‘अम्बुधरावलेही’ कहा जाता था।

वर्ष 1202 में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी। पूरा विश्वविद्यालय महीनों तक धूधू कर जलता रहा।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *