नसरुल्ला की ऐसी मौत असाधारण घटना
अवधेश कुमार
नसरुल्ला की ऐसी मौत असाधारण घटना
लेबनान की राजधानी बेरूत में अपने ही सबसे सुरक्षित मुख्यालय पर हिजबुल्ला के प्रमुख हसन नसरुल्ला का इजरायली हमले में मारा जाना हर दृष्टि से असाधारण घटना है। यदि नसरुल्ला कहीं बाहर होता, असुरक्षित स्थान पर होता और हमले में मौत होती तो उसका विश्लेषण अलग तरीके से होता। लेकिन उसकी यह मौत बताती है कि इजरायल लंबी तैयारी, दृढ़ संकल्प और योजनाबद्ध तरीके से अपने दो प्रमुख स्थायी और आक्रामक दुश्मनों हमास व हिजबुल्ला के समूल नाश का लक्ष्य लेकर युद्ध कर रहा है। हालांकि आरंभ में हिजबुल्ला ने नसरुल्ला की मौत को स्वीकार नहीं किया। किंतु हमले के 20 घंटे बाद उसे स्वीकार करना पड़ा कि हां, यह समाचार सही है। उस हमले में कुल 11 लोग मारे गए, 108 घायल हुए तथा नसरुल्ला के साथ ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड के एक वरिष्ठ कमांडर अब्बास नीलफोरुशान की भी मौत हो गई। यह दूसरी बड़ी बात है। नीलफोरुशान भी 2022 से अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित था। नसरुल्ला की मौत हिजबुल्ला के साथ ईरान और उसके उन सभी सहयोगी देशों, संगठनों के लिए, जो इजरायल के धरती से नामोनिशान मिटाने की बातें करते हैं, बहुत बड़ा आघात है। ईरान ने 5 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा करते हुए बदला लेने की घोषणा की है। लेकिन इजरायल का डर इतना है कि उसके सर्वोच्च मजहबी नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को अज्ञात स्थान पर छिपाना पड़ा है। इराक सहित कई और देशों ने इस पर राष्ट्रीय शोक की घोषणा कर दी है। हालांकि नसरुल्ला की मौत पर भारत सहित विश्व भर में छाती पीटने वाले और शोक घोषित करने वाले देश भूल रहे हैं कि उसे विश्व के अनेक देश, जिनमें खाड़ी सहयोग परिषद और अरब लीग शामिल है, हिज्बुल्ला को आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं।
इजरायल ने बेरूत के उपनगर दहिया स्थित हिजबुल्ला के मुख्यालय में नसरुल्ला और उसके प्रमुख सहयोगियों के होने की सूचना के साथ इतना भीषण और तीक्ष्ण हमला किया, जिसकी उसे कल्पना नहीं रही होगी। शुक्रवार 27 सितंबर को एफ 35 विमान से एक टन के 85 बम गिराए। हमले में 3000 किलो के बमों का प्रयोग हुआ। इनमें 2000 किलो के लेजर व जीपीएस गाइड जीबी यू -28 व 1000 किलो के ब्लू -109 बंकर भेदी बम शामिल थे। ये बम जमीन में 200 फीट नीचे जाकर फटे। इजरायल को पता था कि उस स्थान को ऐसा सुरक्षित बनाया गया है कि हमले के समय नीचे बंकर में घुसकर अपने को बचाया जा सके। इजरायल वायु सेना के प्रमुख का बयान है कि पायलटों को उड़ान भरने से कुछ समय पहले ही लक्ष्य की जानकारी दी गई थी और वो समझ गए कि क्या करने जा रहे हैं। रियल टाइम इंटेलिजेंस से यह संभव हुआ। यानी इजरायल के पास पूरी जानकारी थी कि नसरुल्ला है कहां, मीटिंग कर रहा है, कितने शक्तिशाली हमले से पूरा मुख्यालय नष्ट होगा और उसमें किसी व्यक्ति या किसी तरह के संसाधन के बचने की किंचित भी संभावना नहीं रहेगी। पहली बार दुनिया ने पिज़्ज़ा सहित संचार यंत्रों में इस तरह का विस्फोट विस्मित होकर देखा जैसा इजरायल ने लेबनान में किया। उसके बाद दूसरे यंत्र फटने लगे। तो लेबनान में इतना डर पैदा कर दिया कि लोग मोबाइल, पेजर आदि के प्रयोग से बचने लगे। कब क्या और कहां फट जाए, इसकी आशंका हर समय घर करने लगी और एक बार डर की मानसिकता में लाने के बाद दुश्मन को परास्त करना आसान हो जाता है।
इसकी चर्चा इसलिए आवश्यक है ताकि समझा जा सके कि यदि दुश्मन ऐसे हों, जो हमें धरती से नष्ट करने की कसमें खाकर एक ही लक्ष्य से कार्य और संघर्ष कर रहे हों तो उनको मिटाने के लिए बिल्कुल सुनिश्चित और सटीक तरीके से बिना हिचक के उस सीमा तक कार्रवाई करनी चाहिए, जिससे उनके बचने की कोई संभावना न रहे। हमारे जैसे देश में यह संस्कार और चरित्र पैदा नहीं होता। हम लहूलुहान होते रहते हैं, दुश्मन कहीं दूर बैठा रहता है और इस तरह की फोकस योजना और हमले की सोच हमारे यहां पैदा नहीं होती। 12 देशों ने इजरायल को युद्ध विराम के लिए तैयार करने के प्रयास किए, लेकिन वह जानता था कि ऐसा हुआ तो ये फिर संगठित होंगे और आगे हमें इसी तरह की कार्रवाई करनी होगी। विरोधियों से पूछा जाए की इजरायल को क्या करना चाहिए था? नसरुल्ला की पूरी विचारधारा शिया इस्लाम आधारित और इजरायल के विरुद्ध है। उसने 1985 में खुले पत्र में अमेरिका और सोवियत संघ को इस्लाम का शत्रु बताया था और इजरायल को मुस्लिम भूमि पर कब्जा करने वाला बताते हुए उस के संपूर्ण विनाश की कसमें खाई थीं। क्या इजरायल को स्वयं को नष्ट करवाने के लिए तैयार होना चाहिए था या नष्ट करने की मजहबी मानसिकता को समाप्त करना चाहिए था? इजरायल ने नसरुल्ला को उस स्थिति में पहुंचा दिया था कि वह कई वर्षों से सार्वजनिक रूप से नजर नहीं आया। अनाम स्थान से वीडियो जारी करता और केवल टीवी पर दिखता था। पेजर विस्फोट के बाद इसका प्रयोग बंद कर दिया और इस कारण इनके बीच संचार और संवाद का सूत्र बाधित हुआ। दो सप्ताह में हिजबुल्ला केंद्रित हमले में 1000 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। एक-एक कर हिजबुल्ला के सभी प्रमुख कमांडर मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। प्रश्न है कि अब आगे क्या?
इसके कई पहलू हैं। इजरायल के चीफ ऑफ स्टाफ यानी सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हर्जी हलबी ने कहा कि नसरुल्लाह का मरना अंत नहीं है। इजरायली डिफेंस फोर्स ने कहा है कि हिजबुल्ला के विरुद्ध अभी बहुत कुछ करना है।
हिजबुल्ला शिया इस्लामी संगठन है, जो 1990 के दशक में लेबनान से शुरू हुआ। यह संगठन इजरायल के विरुद्ध युद्ध के लिए ही बना था। धीरे-धीरे यह शक्तिशाली राजनीतिक व सैन्य संगठन बन गया। ईरान के समर्थन से इसे वह सब कुछ प्राप्त हुआ, जिससे वह ऐसी हैसियत प्राप्त कर सका। हिजबुल्ला ने पिछले कुछ दशकों में स्वयं को विश्व का सबसे शक्तिशाली गैर राज्यीय शक्ति बना लिया। उसकी सैन्य शक्ति किसी मध्य स्तरीय देश की सेना के बराबर है, जिसमें 1 लाख 50 हजार से अधिक रॉकेट और मिसाइलें हैं। उनमें ईरान निर्मित फज्र 5 और रॉकेट शामिल हैं। अमेरिका का आकलन है कि हिजबुल्ला के पास किसी देश जैसी सैन्य क्षमता है। वह घात लगाकर हमला करने, हत्या, बमबारी, फायर अटैक और अन्य सीक्रेट ऑपरेशन में कुशल है। 2023 में इजरायल हमास संघर्ष के बीच हिजबुल्ला ने इजरायल पर हमले किए। उनकी लड़ाई पुरानी है और 1992 में हिजबुल्ला के प्रमुख अब्बास अल मुसाबी को मौत के घाट भी इजरायल ने ही उतारा।
नसरुल्लाह केवल हिजबुल्ला का प्रमुख नहीं, बल्कि पश्चिम एशिया के प्रभावशाली व्यक्तित्व में से एक था। उसने ही हिजबुल्ला को एक शक्तिशाली सैन्य संगठन के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिज्बुल्ला ईरान का गैर राज्य सैन्य विस्तार था, जिसके माध्यम से वह इजरायल का दुनिया से नामोनिशान मिटाने के लक्ष्य से काम कर रहा है। नसरुल्ला ने 2000 में इजरायल को दक्षिणी लेबनान से पीछे हटने को विवश कर दिया था। 2006 में इजरायल हिज्बुल्लाह युद्ध में भी उसकी निर्णायक भूमिका थी। 1960 में जन्मे नसरुल्ला के पिता अब्दुल करीम की सब्जी की दुकान थी। 1970 के दशक में वह शिया मिलिशिया संगठन अमल में शामिल हुआ और 1982 में हिजबुल्ला का अंग बना। 1992 में अब्बास अल मुसावी की मौत के बाद वह 32 वर्ष की उम्र में हिजबुल्ला का नेता बना।
हिजबुल्ला की मौत से केवल लेबनान, ईरान इराक में ही शोक नहीं बल्कि कई मुस्लिम देशों के अंदर भी उसे शहीद के रूप में देखा जा रहा है। उसका भावनात्मक असर कितना था, इसका प्रमाण लेबनान के अल-मायादीन टेलीविजन पर दिखा। उसकी न्यूज एंकर जब 64 वर्षीय नसरुल्ला की लेबनान इजरायली हवाई हमले में मौत की खबर दे रही थी, तो रोने लगी। एंकर ने शो में कई बार स्वयं को संभालने का प्रयास किया, लेकिन नसरुल्ला का नाम आने पर उसकी आवाज रूंधने लगी और उसके लिए स्वयं को काबू करना कठिन हो गया। इससे अनुमान लगा सकते हैं कि इजरायल की सफलता कितनी बड़ी है। बताने की आवश्यकता नहीं कि पश्चिम एशिया में इस समय तनाव काफी बढ़ा हुआ है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा है कि अगर ईरान ने हमला किया तो उसे युद्ध में कूदना पड़ सकता है। अमेरिका ने नसरुल्ला की मौत को कई पीड़ितों के साथ न्याय घोषित कर दिया है। किंतु अभी तक ईरान केवल इजराइल को धरती से नेस्तनाबूत करने की बातें करते हुए सीधे युद्ध से बचता रहा है। यहां तक कि ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड के प्रमुख कर्नल सुलेमानी के मारे जाने के बाद भी वह इजराइल से सीधे संघर्ष में नहीं उतरा। उसके कई प्रमुख कमांडर, अधिकारी और न्यूक्लियर वैज्ञानिक मारे गए। वर्तमान हमले में भी उसके प्रमुख कमांडर की मौत हुई है। जब स्वयं इजरायल के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में दो नक्शे, जिनमें एक ओर ईरान, इराक, सीरिया और यमन तथा दूसरी ओर भारत, मिस्र, सूडान और सऊदी अरब थे, उन्हें दिखाते हुए कहा कि एक अभिशाप है तो दूसरा वरदान। एक तरफ भविष्य का अंधकार है, तो दूसरी तरफ भविष्य की आशा है। हम आतंकवाद के अंधकार को मिटा देंगे। नेतान्याहू ने कहा कि जब तक पूर्ण विजय नहीं मिल जाती, लड़ाई जारी रहेगी। इससे पता चलता है कि इजरायल की तैयारी कितनी बड़ी है।