यह कैसा नववर्ष…?
युगल शर्मा
यह कैसा नववर्ष…?
यह कैसा नव वर्ष कि जिसमें काँप रही है धरती
कुहरे-जल-हिम-शीत कोप ने, छीन रखी है मस्ती।
ठिठुर रहे हैं हाथ-पाँव सब, नाक-भौंह सिकुड़े हैं
घास, वनस्पति, वृक्ष-लताएं, पौध-पात अकड़े हैं॥
शीत-लहर बह रही हवा में, त्रस्त हुआ जन-जीवन
सघन मेघ से ढंके गगन में, कहाँ सूर्य के दर्शन..?
ओढ़ रजाई – कम्बल नीचे गादी एक सहारा
ठण्डी का आतंक सभी दिशि, कैसा नववर्ष तुम्हारा॥
नहीं जन्म या विजय पर्व या दिवस प्रेरणा का है
एक अकेला मध्य सत्र में, नया वर्ष कैसा है ..?
ना घर आया अन्न नया ही, ना ऋतु ही बदली है
पतझड़ हुआ कहाँ ये अब तक, ना कोपल निकली है॥
आतंकित जब पशु-पक्षी भी, तब कैसा नववर्ष ..?
देख कष्ट में हर प्राणी को, निष्ठुरता का हर्ष
बजें दन्त-वीणाएँ मुख में, ठण्डी का क्रन्दन है।
अशुभ घड़ी, किस नये वर्ष का, यह शुभ अभिनन्दन है.. ?