विश्व की 46 प्राचीन सभ्यताओं में से केवल सनातन संस्कृति ही जीवित और सजीव- कपूर

विश्व की 46 प्राचीन सभ्यताओं में से केवल सनातन संस्कृति ही जीवित और सजीव- कपूर

विश्व की 46 प्राचीन सभ्यताओं में से केवल सनातन संस्कृति ही जीवित और सजीव- कपूरविश्व की 46 प्राचीन सभ्यताओं में से केवल सनातन संस्कृति ही जीवित और सजीव- कपूर

जयपुर, 10 सितम्बर। सोमवार को राजस्थान विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में अंग्रेजी विभाग द्वारा ‘प्रो. आर.के. कौल स्मृति व्याख्यान’ का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. कपिल कपूर (पद्म विभूषण), पूर्व प्रो-वाइस चांसलर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली, ने अपना सारस्वत वक्तव्य दिया। उन्होंने “भारतीय साहित्य और भारतीय दृष्टि” विषय पर अपना विशद व्याख्यान प्रस्तुत किया।

अपने व्याख्यान में प्रो. कपूर ने भारतीय भाषाओं और बोलियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत में 700 से अधिक बोलियां हैं और 269 भाषाएं प्रचलित हैं, जिनमें से केवल 28 की लिपि उपलब्ध है। उन्होंने भारतीय और यूरोपीय साहित्य की तुलना करते हुए बताया कि जहाँ यूरोपीय साहित्य लिखित रूप में है, वहीं भारतीय साहित्य मौखिक परंपरा पर आधारित है। उन्होंने पश्चिमी विद्वानों द्वारा दी गई इस धारणा का खंडन किया कि भारत में लिखित साहित्य की कमी के कारण वह “असभ्य” है। उन्होंने कहा कि भारतीय लोग अपनी संस्कृति से भली-भांति परिचित हैं, चाहे वे गाँव में हों या शहर में। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा सूचीबद्ध 46 प्राचीन सभ्यताओं में से केवल सनातन संस्कृति ही जीवित और सजीव है। उन्होंने भारतीय साहित्य को “ज्ञान का केंद्र” बताया और कहा कि भारत के पास दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथों का भंडार है, जिसमें आयुर्वेद, व्याकरण, खगोलशास्त्र और भाषा विज्ञान सहित सभी क्षेत्रों के पहले ग्रंथ भारत में लिखे गए थे। मुगल काल के दौरान भारतीय साहित्य की कई कृतियाँ खो गईं, लेकिन रामानुजन, वाल्मीकि और कालिदास जैसे महान लेखकों की कृतियों ने भारतीय साहित्य की प्राचीन समृद्धि को दर्शाया। प्रो. कपूर ने महाभारत जैसे उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय साहित्य आत्मनिर्भर और प्राचीन सभ्यता का प्रतीक है।

इसके पश्चात सम्मानित अतिथि संदीप कवीश्वर (राष्ट्रीय संगठन सचिव, अंतरराष्ट्रीय संस्कृति अध्ययन केंद्र, भारत) ने भारतीय ग्रंथों में धर्म, कर्तव्य और मोक्ष जैसे जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की व्याख्या की और बताया कि कैसे जनजातीय समाज ने अपनी संस्कृति को संरक्षित रखा है।

सम्मानित अतिथि प्रोफेसर महावीर प्रसाद (क्षेत्र प्रचार प्रमुख, राजस्थान) ने भी भारतीय साहित्य की समृद्धि और महिमा की सराहना की तथा संतों के धर्म संग्रह पर अपने विचार रखे। अंत में कार्यक्रम के संयोजक डॉ. अरुण सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।

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