व्यक्ति की साधना ही उसे परिणाम तक पहुंचाती है- कैलाश चंद
व्यक्ति की साधना ही उसे परिणाम तक पहुंचाती है- कैलाश चंद
जयपुर, 26 अगस्त। रविवार (भाद्रपद कृष्ण सप्तमी, विक्रम संवत् 2081) को राजस्थान शिक्षक संघ (राष्ट्रीय) द्वारा मानसरोवर के जीडी बड़ाया मेमोरियल सभागार में जयदेव पाठक जन्म शताब्दी संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी का आरंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन, माल्यार्पण व सरस्वती वंदना से हुआ।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता कैलाश चंद ने गुरु के महत्व को गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय, दोहे से प्रारंभ कर बताया कि पाठक जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उस देव दुर्लभ टोली के सदस्य रहे, जिन्होंने राष्ट्रीय मूल्यों की स्थापना, संस्कृति की रक्षा, विश्व शांति, वसुधैव कुटुंबकम्, समाज कल्याण और शिक्षकों व विद्यार्थियों के हित के लिए अपना तन, मन, धन अर्पित कर दिया। उन्होंने कहा कि हमें व्यक्ति नहीं बल्कि उसके गुणों की पूजा करनी चाहिए और पाठक जी जैसे महापुरुषों के सद्गुणों को जीवन में उतारना चाहिए। उन्होंने कहा कि कार्य की सिद्धि के लिए उपकरणों का महत्व नहीं है, व्यक्ति की साधना ही उसे परिणाम तक पहुंचाती है। अपने मन, बुद्धि और आत्मा को शुद्ध करके व्यष्टि, सृष्टि, समष्टि और परमेष्ठी चारों का एक दूसरे के साथ समन्वय कर व्यक्ति अपना सर्वांग विकास कर परम वैभव की स्थिति तक पहुंच सकता है। उन्होंने कहा कि पाठक जी बाहर से कठोर परंतु आंतरिक मन से बहुत ही मुलायम व सुहृदय थे। अंत में उन्होंने जयदेव पाठक को- वह जीवन भी क्या जीवन है जो काम देश के आ न सका, वह चंदन भी क्या चंदन है जो अपना वन महका न सका- गीत के साथ श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बजरंग प्रसाद ममेजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारे आदर्श श्रद्धेय जयदेव जी पाठक का जन्म 1924 में जन्माष्टमी के दिन हिंडोन के फाजीलाबाद ग्राम में हुआ था।माता के जल्दी देहांत के बाद पिता के साये में उनका बाल्यकाल व्यतीत हुआ। पढ़ने में वे प्रारंभ से ही मेधावी रहे। बचपन से उनकी सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ बनने की इच्छा थी। परंतु भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रहने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आने के बाद वे 1946 में अध्यापक की नौकरी छोड़कर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए।जिला, विभाग प्रचारक, विद्या भारती में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए 1954 में उन्होंने राजस्थान शिक्षक संघ के स्थापना की। उन्होंने कहा कि पाठक जी सदैव संगठन के विस्तार, कार्यकर्ता निर्माण, प्रवास, शिक्षक और विद्यार्थी हित, त्याग, मितव्ययता, पद, प्रशंसा आदि विभिन्न पहलुओं पर जोर देते थे। शिक्षक संघ राष्ट्रीय पाठक जी पर शीघ्र ही एक स्मारिका प्रकाशित करने जा रहा है।
शिक्षक संघ राष्ट्रीय के प्रदेश अध्यक्ष रमेश चंद पुष्करणा ने अपने उद्बोधन में कहा कि पाठक जी संगठन की सदस्यता पर बहुत जोर देते थे। उन्हीं के विचार और आदर्शो के कारण आज हमारा संगठन लगभग सवा दो लाख से भी अधिक सदस्यों के साथ राजस्थान का सबसे बड़ा संगठन बन गया है। उन्होंने कहा कि प्रभावी संकुल रचना के कारण आज हम इतनी सदस्यता निश्चित समयावधि में पूर्ण कर पाए। इसके लिए उन्होंने सभी कार्यकर्ताओ का भी आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि पाठक जी कहते थे कि कोई संगठन तभी ठीक प्रकार से चलता है जब उसके सभी कार्यकर्ता संगठन में हुए निर्णयों के अनुसार आचरण करें। हमारे बीच किसी बात को लेकर मतभेद हो सकते हैं, मनभेद नहीं होने चाहिए क्योंकि हम सब भारत मां को परम वैभव तक पहुंचाने के एक ही राष्ट्रीय विचार को लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
कार्यक्रम के आरम्भ में संगठन के प्रदेश महामंत्री महेंद्र कुमार लखारा ने सभी अतिथियों का परिचय कराया और जयदेव पाठक के जीवन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जयदेव जी पाठक ने विपरीत परिस्थितियों में भी देशभक्ति की चिंगारी को बुझने नहीं दिया। उन्होंने राजस्थान शिक्षक संघ को राज्य का सबसे बड़ा और प्रभावी संगठन बनाया। वे आज भी सभी कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रेरणा हैं। उन्होंने कहा कि जयदेव जी पाठक की जन्म शताब्दी पर प्रत्येक उपशाखा और जिला स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
संगोष्ठी का संचालन प्रदेश महामंत्री महेंद्र कुमार लखारा ने किया। कार्यक्रम का समापन सामूहिक राष्ट्रगान से हुआ।
संगोष्ठी में शिक्षक संघ राष्ट्रीय के संरक्षक राजनारायण, उमराव लाल वर्मा, रामावतार, प्रहलाद शर्मा, अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ एवं राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय के प्रदेश संगठन मंत्री घनश्याम सहित पूरे राजस्थान से बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित रहे।