राष्ट्र एवं हिन्दू हित में पंच परिवर्तनों को अपनाना होगा- विकासराज
राष्ट्र एवं हिन्दू हित में पंच परिवर्तनों को अपनाना होगा- विकासराज
बांसवाड़ा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बांसवाड़ा खंड के विराट त्रिवेणी संगम पथ संचलन का आयोजन रविवार को खण्ड केंद्र तलवाडा में हुआ। इस अवसर पर मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक विकासराज ने उपस्थित स्वयंसेवकों व जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन है। 99 वर्षों की साधना के साथ संघ ने 100वें वर्ष में प्रवेश किया है। संघ की यह यात्रा संघर्षशील रही है। संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगे, परन्तु पवित्र ध्येय के साथ यह धारा अविचल बढ़ती रही। आज भी समय चुनौतियों से भरा हुआ है, किन्तु दृढ़ प्रतिज्ञ स्वयंसेवक अपनी भारत माता के लिए निशदिन समय के समर्पण के साथ समाज की सेवा में रत हो कर कार्य कर रहे हैं। इसी का परिणाम है, आज विश्व पटल पर संघ का व्याप बढ़ता जा रहा है।
उन्होंने कहा कि इस वर्ष संघ ने देश के नागरिकों से पांच परिवर्तनों का आग्रह किया है। पहला है नागरिक कर्तव्य। प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्य समझे। सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा से लगाकर सरकार द्वारा तय, संविधान सम्मत नियमों का पालन उसके व्यवहार में आना चाहिए। किसी के द्वारा रोके टोके जाने पर नियम पालन करने की अपेक्षा मन से नियम पालन करना, सामान्य व्यवहार में शामिल होना चाहिए। दूसरा है पर्यावरण संरक्षण। इस धरती व प्रकृति को सुव्यवस्थित रूप से चलाना है, मनुष्य और सभी प्राणियों को जीवन जीना है तो प्रकृति के साथ सामंजस्य अति आवश्यक है। प्रकृति माँ है, हमने अगर उसका संरक्षण किया तो वह हमें पुत्रवत संभालेगी। वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन परत में छिद्र आदि से औसत तापमान बढ रहा है। ऋतुओं के चक्र में परिवर्तन हो रहा है, मौसम बदल रहा है। उन्होंने कहा कि इन सब को नियंत्रित करने के लिए हमें कुछ कदम उठाने होंगे, जैसे वर्षाकाल में वृक्षारोपण, जल संरक्षण, बिजली बचाना एवं बिजली के उत्पादन हेतु सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। ऐसे ही एक बार काम में लेने के बाद अनुपयोगी प्लास्टिक का बिल्कुल निषेध करना चाहिए। तीसरा विषय सामाजिक समरसता का है। भारत के सामाजिक ताने-बाने की अपनी एक विशेषता है। जातियां बहुत बड़े समाज को संभालने के लिए व्यवस्था मात्र हैं। स्वजाति गौरव के नाम पर हमें समाज में जो विघटन दिखाई दे रहा है, उसे रोकना होगा। अस्पृश्यता पूर्ण रूप से पाप थी, पाप है और पाप रहेगी। अस्पृश्यता को किसी भी मायने में सही नहीं ठहराया जा सकता। ईश्वर की बनाई सृष्टि में मनुष्य मात्र एक जाति है, शेष सब व्यवस्थाएं हैं। ऐसा भाव रखकर समाज में सभी को जगाना और सबको साथ में लेकर चलने का एक स्वभाव सामाजिक समरसता का है। उसके लिए भी समझदार लोगों को पहल करने की आवश्यकता है। इन सबके साथ ही चौथे विषय “स्व का बोध” का बोध होना भी आवश्यक है। जब तक हमें स्वदेश व स्वदेशी के प्रति गौरव का भाव उत्पन्न नहीं होगा, तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते। भारत विश्व गुरु रहा है, भारत की सहिष्णुता और वसुधैव कुटुंबकम जैसे उदांत्त विचारों के कारण से संपूर्ण सृष्टि में मानव के जीवित रहने के लिए इन भारतीय विचारों का स्थापित होना अति आवश्यक है। परंतु कालांतर में देश में पैदा हुईं अनेक स्थितियों- परिस्थितियों, पाश्चात्य अंधानुकरण और अंग्रेजीयत के मोह के कारण हम स्व का बोध/गौरव भूल गए। परिणामस्वरूप हमने बहुत कुछ खोया है। हमें अपने स्व पर अभिमान करना होगा। हमें आयुर्वेद पर भरोसा करना होगा। हमें प्रकृति की पूजा करनी ही होगी। हमें अपने पूर्वजों अपनी थातियों, अपने शास्त्रों, अपनी परंपराओं और अपनों पर निश्चित रूप से भरोसा करना ही होगा। यह स्वाभिमान हमें आगे ले जाएगा। हमारा पांचवां कर्तव्य है परिवार को साथ लेकर चलना। एकजुटता बनाए रखना। इसके लिए कुटुंब प्रबोधन आवश्यक है। परिवार ऐसी व्यवस्था है, जिसके कारण भारत सनातन काल से एक सक्षम संस्कृति के रूप में खड़ा है। विश्व की कई अन्य संस्कृतियों को हमने जन्म लेते और मरते हुए देखा है, लेकिन भारतीय सनातन संस्कृति सनातन काल से जीवित है, उसका आधार परिवार व्यवस्था है। यहां परिवार का मुखिया अपना दायित्व समझता है, परिवार को पालना एक सामाजिक जिम्मेदारी है। माता-पिता का पालन पोषण करना एक संतान का कर्तव्य है। संतान को श्रेष्ठ बनाना, उसे दिशा देना, माता-पिता का कर्तव्य है। पति-पत्नी का रिश्ता भी ऐसा ही है। ये संस्कार केवल भारतीय संस्कृति और भारतीय कुटुंब व्यवस्था में ही देखने को मिलते हैं। जब तक भारतीय कुटुंब व्यवस्था स्थाई रूप से लागू थी, तब तक समाज बहुत शांत भाव से और उन्नति करता हुआ नजर आ रहा था। जब से एकल परिवार की व्यवस्था हुई है, तब से भारत में वृद्ध आश्रम और अनाथालय खुले।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जैन संत अजित सागर जी महाराज ने कहा कि आज समाज को जातिगत भेदों से ऊपर उठकर एक होने की आवश्यकता है। संत और ऋषि राष्ट्र की धरोहर हैं। उनका कार्य समाज व राष्ट्र को सही मार्ग दिखाना है। आज हम सभी को एक होकर देशहित में काम करने की आवश्यकता है। संगठित स्वरूप को ही विजयश्री मिलती है, बंटे हुए समाज को कोई भी शक्ति समाप्त कर सकती है। निज व्यवहार को सामूहिक स्वरूप में प्रकट करने का समय है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारे लिए एक आदर्श है।
पथ संचलन
इस अवसर पर तलवाडा कस्बे में पथ संचलन का भी आयोजन हुआ। संचलन तीन स्थानों, संघ डेयरी, विद्युत पावर हाउस और पुष्प वाटिका से एक साथ ठीक 4:03 बजे प्रारंभ हुए, जिनका गांधी मूर्ति पर एक साथ 04:22 बजे विराट संगम हुआ। स्वयंसेवक तीनों स्थानों से 4 पंक्तियों में एक साथ चलकर आये और संगम के साथ 12 पंक्तियों के स्वरूप में आगे बढ़े। रास्ते में 45 स्थानों पर पुष्पवर्षा व घोष लगाकर उपस्थित जन मेदिनी ने स्वागत किया। स्वागत के लिए पूरा गाँव उमड़ पड़ा। मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य देखने और पुष्प वर्षा करने के लिए कस्बावासी छतों पर भी खड़े रहे। यह वागड़ का खण्ड स्तर पर निकला सबसे विराट पथ संचलन था। आसपास के गांवों के 5000 से अधिक पुरुषों व महिलाओं ने यह विहंगम दृश्य देखा। तलवाडा खण्ड के सभी 114 गांवों के 1750 से अधिक स्वयंसेवकों ने कदम ताल व घोष के साथ भाग लिया। कार्यक्रम का समापन पुनः सीनियर स्कूल में बौद्धिक के साथ हुआ। इससे पूर्व अवतरण एवं काव्यगीत हुआ।