पंच परिवर्तन में समाहित है संविधान की आत्मा
डॉ. अभिमन्यु
पंच परिवर्तनों में समाहित है संविधान की आत्मा
हमारी संविधान सभा के 2 वर्ष 11 माह 18 दिन के अथक प्रयासों के पश्चात 26 नवंबर, 1949 को संविधान बनकर तैयार हुआ। इस दिन हम भारत के लोगों ने संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित, आत्मार्पित किया था। इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाने की परंपरा वर्ष 2015 से प्रारम्भ हुई। इस स्वर्णिम दिन ने 75 वर्ष पूरे कर लिए हैं। यह भी स्वर्णिम संयोग है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अपने 100वें वर्ष में प्रवेश कर गया है, साथ ही उसने पंच परिवर्तन का विजयी संकल्प भी लिया है। ये पंच परिवर्तन ही भारतीय संविधान की आत्मा को सही मायने में लागू करेंगे।
अपने शताब्दी वर्ष में संघ ने पहला संकल्प सामाजिक समरसता का लिया है। सामाजिक समरसता का मूल मंत्र समानता है, जो समाज में व्याप्त सभी प्रकार के भेदभाव एवं असमानताओं को जड़ मूल से नष्ट कर नागरिकों में परस्पर प्रेम एवं सौहार्द में वृद्धि तथा सभी वर्गों में एकता का संचार करती है। श्री गुरु जी मानते थे कि हिंदू समाज के सभी घटकों में परस्पर समानता की भावना के विद्यमान रहने पर ही उनमें समरसता पनप सकती है। तृतीय सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने भी एक बार कहा था कि अगर अस्पृश्यता पाप नहीं है तो इस दुनिया में कुछ भी पाप नहीं है। इसी प्रकार हमारा संविधान भी अनुच्छेद 14 से 18 के मध्य समानता के अधिकार एवं अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता के अंत की बात करता है। इन समानता के अधिकारों को सही अर्थ में बिना सामाजिक समरसता के लागू नहीं किया जा सकता। इसलिए संघ के इस सामाजिक समरसता के संकल्प के द्वारा ही हम भारत में समानता की स्थापना कर सकते हैं। अंबेडकर जी भी कहते थे कि बंधुता ही स्वतंत्रता तथा समानता का आश्वासन है।
इसी प्रकार संघ ने पर्यावरण संरक्षण का अक्षय संकल्प भी लिया है। भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को विशेष महत्व दिया गया है। प्राचीन काल से ही भारत में पर्यावरण के विभिन्न स्वरूपों को देवताओं के सदृश मानकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है। माता भूमि:पुत्रों अहम् पृथिव्या अर्थात पृथ्वी हमारी माता है एवं हम सभी देशवासी इस धरा की संतान हैं, इस तरह पृथ्वी को हमने माता का दर्जा दिया है। इसी प्रकार पीपल, तुलसी, वट वृक्षों एवं गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी, गोदावरी आदि नदियों को पूजा जाता है तथा अग्नि, जल, वायु को देवता मानकर उनका पूजन किया जाता है। हमारे पूर्वजों ने हमें पशु पक्षियों का आदर करना सिखाया है। गाय को हमने माता माना है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 में गोवध निषेध की बात की गई है तथा 48 क में पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन, वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रावधान किया गया है। इस प्रकार संघ के पर्यावरण संरक्षण की पहल भारतीय संविधान में उल्लेखित प्रावधानों का ही अनुसरण है।
सनातन संस्कृति में व्यक्ति के अहं एवं उसके मैं का कोई स्थान नहीं है, अपितु स्थान है सर्वभूत हिते रता: की भावना का। स्वयं को दूसरों के लिए उत्सर्ग कर देने के भाव का। पर हित सरिस धर्म नहीं भाई का मंत्र इस संस्कृति की आत्मा है। इस आत्मा का विकास जिस प्रारंभिक पाठशाला में होता है उसका नाम कुटुंब है। कुटुंब को हमारे समाज में इतना महत्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि उसी के माध्यम से हमारे अंतर मन में यह संकल्प दृढ़ होता है कि हमारा जीवन सभी के लिए है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने अपने एक वक्तव्य में कहा था कि कुटुंब राष्ट्र की वह इकाई है, जिससे संपूर्ण राष्ट्र को प्राण वायु प्राप्त होती है, जिसके बलबूते भारत ने संघर्ष की लम्बी लड़ाई में अभूतपूर्व विजय प्राप्त की थी। आज उसी को पूर्ण जीवन देने की आवश्यकता है, आओ हम सभी राष्ट्र की प्राणदायिनी इकाई को पुनर प्रतिष्ठित करने के अभियान में प्राणपण से जुट जाएं, इसी में हमारा और हमारे राष्ट्र के साथ-साथ सारी वसुंधरा का हित सिद्ध होने वाला है। इस प्रकार भारतीय संविधान के आदर्श एवं संकल्प तभी पूर्णता को प्राप्त कर पायेंगे, जब भारत राष्ट्र की प्राणदायिनी इकाई कुटुंब मजबूत होगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वर्ष 1925 से भारत के स्व के भाव को नागरिकों के बीच जगाने का कार्य कर रहा है। इसमें स्व के बोध से स्व तंत्र को विकसित करना, स्वदेशी और स्वावलम्बन की भावना जगाना, स्व आधारित जीवन दृष्टि की पुनर्स्थापना, आत्मनिर्भर भारत के लिए ग्रामीण क्षेत्र, कृषि, कुटीर उद्योगों, हस्तशिल्प, लघु उद्योग आदि शामिल हैं। जब हम में स्वाधीनता से आगे बढ़कर ‘स्व के तंत्र’ का भाव विकसित होगा, तब ही हमारे संविधान की उद्देशिका में निहित मूल तत्वों जैसे सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न, पंथ निरपेक्ष, लोकतान्त्रिक, गणराज्य, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता जैसे तत्वों को सही भारतीय अर्थ में लागू किया जा सकेगा। इसी तरह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 क में भी कहा गया है कि स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें तथा अपनी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें, उसका परिरक्षण करें। अनुच्छेद 43 में कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने की बात की गई है, जो भारत के स्व के विकास के द्वारा ही आसानी से लागू किया जा सकता है।
हम सब भारत के निवासी हैं, इस नाते हम सब इसके नागरिक हैं। नागरिक जीवन को सुखी एवं संपन्न बनाने के लिए हम सब नागरिकों का कर्तव्य है कि हम अपने तथा देश से संबंधित सभी कार्यों में सहयोग करते हुए अपने नागरिक बोध का परिचय दें। नागरिक बोध का अर्थ है अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को भी जानें। संघ के पांच परिवर्तनों में से एक संकल्प नागरिक कर्तव्य का भी है, जिसमें सभी नागरिकों से यह अपेक्षा की गई है कि वे कानून का पालन करें। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51क में 11 नागरिक कर्तव्य बताए गए हैं, देश अपने नागरिकों से उन कर्तव्यों की पालना की अपेक्षा रखता है। देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें, राष्ट्र के प्रति यह जिम्मेदारी का भाव ही किसी देश को महान बनाता है। इसी भावना के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज में नागरिक कर्तव्यों का बोध हो उस दिशा में कार्य कर रहा है।
इस तरह हम देखते हैं कि भारतीयों के लिए पंच परिवर्तन ही वह सशक्त माध्यम है, जिसके द्वारा हम भारतीय संविधान की उद्देशिका, संविधान में उल्लेखित मूल अधिकारों, राज्य के नीति निर्देशक तत्वों, मूल कर्तव्यों आदि को सही मायने में अंगीकृत, अधिनियमित एवं आत्मार्पित कर सकते हैं।