पैरालिंपियंस ने लिखा इतिहास, संकल्प और समर्पण हो तो कुछ भी असम्भव नहीं

पैरालिंपियंस ने लिखा इतिहास, संकल्प और समर्पण हो तो कुछ भी असम्भव नहीं

पैरालिंपियंस ने लिखा इतिहास, संकल्प और समर्पण हो तो कुछ भी असम्भव नहींपैरालिंपियंस ने लिखा इतिहास, संकल्प और समर्पण हो तो कुछ भी असम्भव नहीं

जयपुर। संकल्प और समर्पण हो तो जीवन में कुछ भी असम्भव नहीं यह सिद्ध किया है हमारे पैरालिंपियंस ने। पेरिस पैरालिंपिक 2024 भारत के लिए विशेष रहा। भारतीय खिलाड़ियों ने कुल 29 पदक जीते, जिनमें 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य शामिल हैं। यह भारत के पैरालिंपिक इतिहास में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस बार भारत ने अपने सबसे बड़े दल (84 खिलाड़ियों) को पैरालिंपिक में भेजा। भारत को सबसे अधिक 17 पदक एथलेटिक्स में मिले, जिनमें चार स्वर्ण पदक शामिल हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय खिलाड़ियों ने पैरा बैडमिंटन, पैरा शूटिंग, पैरा आर्चरी और पैरा जूडो में पदक जीते हैं। अवनि लेखरा, नितेश कुमार, सुमित अंतिल, हरविंदर सिंह, धर्मबीर, प्रवीण कुमार और नवदीप सिंह ने भारत की झोली में स्वर्ण पदक डाले। उल्लेखनीय है कि भारत ने पैरालिंपिक में 1968 से 2016 तक कुल 12 पदक जीते थे। टोक्यो पैरालिंपिक 2020 में भारत ने कुल 19 पदक (5 स्वर्ण, 8 रजत, 6 कांस्य) प्राप्त किए और अब पेरिस पैरालिंपिक 2024 में यह संख्या बढ़कर 29 हो गई। 

यह कर दिखाया है कुछ विशेष लोगों ने, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। देश की इस उपलब्धि के 5 नायक राजस्थान के हैं।

इनमें पहला नाम अवनि लेखरा का है। वे पैरालिंपिक खेलों में दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। उन्होंने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग SH1 शूटिंग स्पर्धा में विश्व रिकॉर्ड बनाते हुए अपने खिताब को बरकरार रखा। जयपुर की रहने वाली अवनि 2012 में एक दिन अपने पिता के साथ जयपुर से धौलपुर जा रही थीं, तब सड़क दुर्घटना में पिता-पुत्री दोनों घायल हो गए। अवनि को 3 महीने अस्पताल में बिताने पड़े। रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण वे चलने में असमर्थ हो गईं। उस समय वे 11 वर्ष की थीं। परिवार की प्रेरणा से उन्होंने शूटिंग शुरू की और अपनी लगन से न जाने कितने लोगों की प्रेरणा बन गयीं। 2022 में अवनि पद्मश्री से भी सम्मानित हो चुकी हैं। 

भाला फेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाले सुंदर सिंह गुर्जर

करौली जिले के रहने वाले हैं। एक दुर्घटना में उनका दाहिना हाथ कट गया था। लेकिन जीवटता के धनी सुंदर सिंह ने हार नहीं मानी और अपने खेल को जारी रखा। सुंदर की दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत ने उन्हें पैरालिंपिक में सफलता दिलाई है। 2016 में आयोजित रियो पैरालिंपिक में कॉल रूम में लेट एंट्री के कारण वे प्रतियोगिता से बाहर हो गए थे, जिससे उनका सपना उस समय अधूरा रह गया था।

पेरिस पैराल्ंपिक 2024 में आर्चरी में कांस्य पदक (रिकर्व आर्चरी) जीतने वाले बीकानेर के श्याम सुंदर स्वामी का संघर्ष भी छोटा नहीं रहा। बचपन में ही पोलियो के कारण उन्होंने अपने पैर की क्षमता खो दी थी। लेकिन वे हार नहीं माने और आर्चरी को अपना जीवन बनाया और उसमें कुशलता प्राप्त की। श्याम सुंदर ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं और इस बार पैरालिंपिक में भी उनका प्रदर्शन शानदार रहा।

बैडमिंटन में कांस्य पदक (बैडमिंटन SL3-SL4) जीतने वाले नागौर के जितेंद्र कुमावत भी बचपन से ही पोलियो से पीड़ित थे। लेकिन उन्होंने अपने खेल के जुनून को कभी कम नहीं होने दिया। उन्होंने कड़ी मेहनत और समर्पण के साथ बैडमिंटन में अपना नाम बनाया और इस बार पैरालिंपिक में पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया।

मोना अग्रवाल, जिन्होंने पेरिस में आयोजित पैरालिंपिक खेलों में शूटिंग में कांस्य पदक जीता, राजस्थान की उभरती हुई प्रतिभा हैं। उनकी यह यात्रा आसान नहीं रही। उन्होंने बचपन से ही कई चुनौतियों का सामना किया, जिनमें शारीरिक और आर्थिक संघर्ष भी शामिल हैं। मोना को बचपन में पोलियो हो गया था, वह चलने-फिरने में असमर्थ हो गईं। पिछले दो वर्षों में मोना ने शूटिंग सीखी। इस दौरान वे अपने बच्चों से भी अलग रहीं और पैरालिंपिक की तैयारी करने लगीं। मोना के पति रविंद्र ने बताया कि सबसे पहले मोना ने एथलेटिक्स में अपना करियर शुरू किया। इसके बाद सिटिंग वॉलीबॉल में भी हाथ आजमाया। इस दौरान उन्होंने स्टेट लेवल पर कई मेडल अपने नाम किये, लेकिन टोक्यो पैरालंपिक खेलों के बाद मोना ने शूटिंग खेल को चुना और मेडल जीता।

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