प्रकृति का पूजन ही है पीपल पूर्णिमा
तृप्ति शर्मा
प्रकृति का पूजन ही है पीपल पूर्णिमा
सनातन धर्म प्रकृति का मित्र है। प्रकृति से संस्कृति, संस्कृति से संस्कार, संस्कार से विचार, विचार से व्यवहार, व्यवहार से परिवार और परिवार से संसार की सुख-समृद्धि व वैभव बढ़ता है।
वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को पीपल पूर्णिमा कहा जाता है, जो इस बार गुरुवार 23 मई, 2024 को मनाई जा रही है। इस दिन प्रात: काल पीपल पर जल चढ़ाने व पूजन अर्चन करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है। पितृगण भी संतुष्ट होते हैं, धन ऐश्वर्य एवं वंश वृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहा गया है क्योंकि इसी पूर्णिमा को भगवान विष्णु के नवें अवतार महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन विष्णु भगवान की विशेष पूजा की जाती है। भगवत गीता के अध्याय 10 में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने पीपल के वृक्ष को अपना रूप बताते हुए कहा है कि- “अश्वत्थ:सर्ववृक्षणाम ” अर्थात सभी वर्षों में मैं पीपल हूं। इसलिए पीपल सर्वश्रेष्ठ एवं पूजनीय है। क्योंकि इसमें साक्षात वासुदेव प्रतिष्ठित हैं।
हमारे धार्मिक व ज्योतिष ग्रंथों और पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख पूर्णिमा पर पीपल का पेड़ लगाने से हर तरह के दोष दूर होते हैं और कई यज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है। वैशाख पूर्णिमा के अगले दिन से ज्येष्ठ मास आरंभ होता है। गांव में और रास्तों में पीपल के नीचे ज्येष्ठ के महीने की गर्मी में पानी भरे मटकों से प्याऊ लगाई जाती है। लोकाचार है कि धार्मिक महिलाएं इस महीने में प्रतिदिन एक घड़ा पानी का किसी मंदिर में या पुजारी या अपने जेठ के घर रखती हैं। गर्म लू के मौसम में वैशाख पूर्णिमा को पीपल का वृक्ष उगाना, पीपल के वृक्ष के नीचे पानी के मटके भरकर प्याऊ लगाना मानवता की सेवा है। प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा कोई पुण्य नहीं हो सकता।
पीपल हमारा औषधालय भी है। इसके फल और पत्ते रक्त विकार को ठीक करते हैं। पीपल की छाल से चर्म विकार भी ठीक होते हैं। पीपल के वृक्ष हमारे न्यायालय भी हैं। प्राचीन काल से ही पीपल के नीचे चौपालें और पंचायतें लगती आई हैं। गांव में तो पीपल ग्राम देवता होता है जो सात पीढियों का साक्षी होता है। अश्वत्थ स्रोत के श्लोक 14 में ब्रह्मा नारद संवाद में लिखा है कि आंख फड़के, भुजा फड़के, बुरे स्वप्न, बुरे विचार मन में आएं तो प्रातःकाल उठकर पीपल को जल चढ़ाकर प्रणाम करें। ऐसा करने से रोग -शत्रु -भय का नाश होता है। एक पीपल का वृक्ष लगाने से वंश वृद्धि होती है, एक गोदान करने से मुक्ति मिलती है। अतः हमें अपने जीवनकाल में एक पीपल अवश्य लगाना चाहिए।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति और संस्कृति की रक्षा के लिए ही वृक्षों को धार्मिक महत्व दिया गया है। वैज्ञानिक महत्व तो इनका स्वत: सिद्ध ही है। इसीलिए लोग पीपल लगाते तो हैं, पर काटते नहीं अपितु इसके नीचे चबूतरा बनाते हैं ताकि इनकी रक्षा हो सके और यात्रियों को भी सुविधा मिल सके।
वैशाख में पीपल पूर्णिमा, ज्येष्ठ में वट सावित्री व्रत आता है। पूजा के कलश में बड़, पीपल, अशोक, आम के हरे पत्ते व दूर्वा रख कर ही पूजा होती है। तुलसी जी की पूजा तो नित्य प्रति की ही जाती है। हम सौभाग्यशाली हैं कि छह ऋतुओं वाली देवभूमि में हमारा जन्म हुआ है, जो हमें श्रेष्ठतम और सर्वहितकारी बनाती है। हमने हमेशा मानवता के कल्याण के लिए प्रकृति और संस्कृति को सहेज कर रखा है। यही हमारा सनातन धर्म और पीपल पूर्णिमा का संदेश है।