प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 : हिन्दुओं से छीन लिया गया उनकी विरासत को वापस लेने का अधिकार

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 : हिन्दुओं से छीन लिया गया उनकी विरासत को वापस लेने का अधिकार

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 : हिन्दुओं से छीन लिया गया उनकी विरासत को वापस लेने का अधिकारप्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 : हिन्दुओं से छीन लिया गया उनकी विरासत को वापस लेने का अधिकार

कांग्रेस ने अपने राज में मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल बड़ी चतुराई से खेला। वह 1995 में वक्फ अधिनियम लेकर आई, जिसकी धारा 40 के अंतर्गत, वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित सकता है। पीड़ित हिन्दुओं को कोर्ट जाने का भी अधिकार नहीं। इससे पहले 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट लेकर आई, जिसने हिन्दुओं से उनकी धार्मिक विरासत को वापस लेने का अधिकार छीन लिया। 

भारत में पहला इस्लामिक आक्रांता मोहम्मद बिन कासिम आया। बाद में और भी अनेक आए, भारत के स्व को ठेस पहुंचाने के लिए उन्होंने मंदिर तोड़े और उन पर इस्लामिक ढांचे खड़े कर दिए। हिन्दुओं ने उन्हें बचाने व पुन: खड़ा करने के लिए सतत संघर्ष किया। रिलिजन के आधार पर बंटवारा होने और स्वाधीन होने के बाद आशा थी कि हिन्दुओं को उनकी विरासत गौरव पूर्ण तरीके से वापस मिल जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस्लामिक आक्रांताओं ने छल, आतंक और तलवार के बल पर मंदिर तोड़े और इस्लामिक ढांचे बनवाए, वहीं कांग्रेस ने कानून बनाकर हिन्दुओं को ठगा। संविधान से छेड़छाड़ कर ऐसे प्रावधान कर दिए कि इस मामले में भी हिन्दू कोर्ट तक में भी न जा सकें। इसके लिए तर्क गढ़े गए कि जो हुआ सो हुआ, इतिहास को कुरेदना ठीक नहीं, इससे सामाजिक सद्भाव बिगड़ेगा। 

लेकिन अब संभल में हरिहर मंदिर के स्थान पर शाही जामा मस्जिद और अजमेर में शिव मंदिर के स्थान पर चिश्ती की दरगाह मामले कोर्ट में जाने के बाद कांग्रेस द्वारा लाए गए वर्शिप एक्ट 1991 पर बहस छिड़ गई है। इस अधिनियम की- धारा 3 किसी भी पूजा स्थल को पूर्ण या आंशिक रूप से एक धार्मिक संप्रदाय से दूसरे में परिवर्तित करने पर रोक लगाती है। धारा 4(1) 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थलों की धार्मिक स्थिति जिस रूप में थी, उसे अपरिवर्तित रखने की बात कहती है। धारा 4(2) 15 अगस्त 1947 से पहले पूजा स्थलों की धार्मिक स्थिति से संबंधित सभी फाइलें बंद करने और नए मामलों को दर्ज करने पर रोक लगाती है। धारा 5 के अंतर्गत अयोध्या (बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि) विवाद को इस अधिनियम से छूट दी गई। कहा गया कि यह मामला ब्रिटिश शासनकाल से कोर्ट में था, इसलिए राम मंदिर पर कोर्ट के निर्णय में यह कानून आड़े आ नहीं सकता। वहीं धारा 6 में पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप में बदलाव का प्रयास करने पर तीन वर्ष तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

मंदिरों को वापस पाने की लड़ाई लड़ रहे वकीलों का कहना है, कि यह कानून न्यायालय की समीक्षा को सीमित करता है। कानून का यह प्रावधान कि स्वाधीनता के दिन तक जिस पूजा स्थल का जो स्वरूप है, बाद में भी वही रहेगा, भी तुष्टीकरण का ही एक रूप है। आज यह बात भी उठ रही है कि जब पहला आक्रांता मोहम्मद बिन कासिम था, तो उसके आने से पहले भारत में मंदिरों की जो स्थिति थी, वह क्यों नहीं होनी चाहिए। वकील विष्णु जैन अधिनियम में 15 अगस्त 1947 की इस कट ऑफ तारीख को पूरी तरह अनुचित बताते हैं। इस कानून को चुनौती देने वाली अब तक 6 याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। जिनमें कहा गया है कि यह अधिनियम हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख समुदायों को उनके ऐतिहासिक स्थलों को पुनः प्राप्त करने से रोकता है। यह इन समुदायों की संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध है।

यहॉं यह भी उल्लेखनीय है कि मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, पूजा स्थलों की धार्मिक स्थिति की जांच की जा सकती है, लेकिन ऐसी जांच से उनकी धार्मिक पहचान में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए। हालांकि 12 दिसंबर को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। देखते हैं सुनवाई कब तक पूरी होती है और कोर्ट इस पर क्या निर्णय आता है।

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