पॉलीथीन समस्या नहीं अवसर
राकेश कुमार
पॉलीथीन समस्या नहीं अवसर
प्रतिभा किसी परिचय का मोहताज नहीं होती। संसाधनों का अभाव भी उसका रास्ता नहीं रोक पाता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का खरौना गांव है। यहां के युवाओं की एक टोली अपने वैज्ञानिक अनुसंधान के कारण चर्चा में है। यह कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है बल्कि उन्होंने कचरा पॉलिथीन से वैकल्पिक फ्यूल बनाकर एक ऐसी क्रांति का सूत्रपात किया है जो न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी देशहित में है।
पूरा विश्व आजकल प्रदूषण पर चिंतित दिख रहा है। दिल्ली जैसे महानगरों का तो हाल ही मत पूछिए। लोग जान पर खेल कर रोजी रोजगार के कारण इन दमघोंटू शहरों में रहने को अभिशप्त हैं। पराली, प्लास्टिक से उत्पन्न प्रदूषण को लोग अपने फेफड़ों में भर रहे हैं। बीमार हो रहे हैं। मर रहे हैं। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ में लोगों से आग्रह किया था कि डबल पी अर्थात पॉलिथीन और पराली की समस्या का समाधान खोजना होगा। यह डबल प्रॉब्लम है। विकल्प तलाशना शुरू हुआ। लेकिन समस्या थी कि पॉलिथीन का क्या किया जाए, जो न गलता है, न सड़ता है। जलाओ तो वायु प्रदूषण। न जलाओ तो हवा से रासायनिक क्रिया करके ऐसी जहरीली गैस बनता है, जो जानलेवा है।
अंततः प्रधानमंत्री की बातों से प्रेरित होकर 2019 में मुजफ्फरपुर के कुछ किशोरों ने इस समस्या का समाधान खोजना शुरू किया। उन्होंने इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया कि कचरा पॉलिथीन जानलेवा न बने। इस बीच एक किशोर आशुतोष मंगलम का चयन आईआईटी में हो गया। भारतीय स्तर पर 432वां रैंक था। घर में खुशी छाई हुई थी। लेकिन आशुतोष ने आईआईटी में जाने से इनकार कर दिया और अपना प्रयोग जारी रखा। प्रयोगशाला के नाम पर एक कमरे के अंदर कुछ सामानों से प्रयोग। परिणाम सुखद रहा। वे एक ऐसी सामग्री का निर्माण करने में सफल रहे, जिसके साथ पॉलिथीन को मिलाकर 300 से 350 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने पर वह डीजल में बदल जाता है। पॉलिथीन को डीजल में बदल देने का चमत्कार लेखक ने अपनी आंखों से देखा। उसे सूंघा और प्रयोग में लाकर भी उसे जाना-समझा।
आशुतोष मंगलम के अनुसार, पॉलिथीन के दो प्रकार होते हैं पहला पीपी और दूसरा पीई। दोनों को ही डीजल में बदला जा सकता है। उन्होंने बताया कि जब कचरा पॉलिथीन को कैटलिस्ट के साथ मिलाकर उसे एक निश्चित तापमान पर गर्म करते हैं, तो वह डीजल में बदल जाता है। यह कैटलिस्ट क्या है। यह तो उन्होंने नहीं बताया, पर वह काला भुरभुरा पदार्थ है। इस कैटलिस्ट को उन्होंने पेटेंट करा रखा है। दो किलो पॉलिथीन से एक लीटर डीजल बनते हमने अपनी आंखों से देखा। उनका कहना है कि यह डीजल है। डीजल के तौर पर प्रयोग में लाने का लाइसेंस भी सरकार से प्राप्त है। लेकिन टेक्निकल टर्म से इसे डीजल नहीं बुला सकते। इसीलिए हमने इसे अल्टरनेट फ्यूल अर्थात वैकल्पिक ईंधन नाम दिया है। कैटलिस्ट के साथ दो किलो कचरा पॉलिथीन को मिलाकर गर्म करने पर चार प्रकार के पदार्थ एक लीटर अल्टरनेट फ्यूल, चार सौ ग्राम एलपीजी गैस, तीन सौ ग्राम बिटुमिन तथा सौ ग्राम वैक्स प्राप्त होते हैं। फ्यूल का प्रयोग ईंधन के रूप में किया जा सकता है। गैस का प्रयोग खाना बनाने से लेकर बिजली उत्पादन तक में किया जा सकता है। बिटुमिन का प्रयोग सड़क निर्माण में किया जा सकता है और वैक्स का प्रयोग जिप्सम को मिलाकर फायर प्रूफ ईंट या चिकनाई वाले कार्यों में किया जा सकता है। लेकिन पूछा जा सकता है कि इस प्रक्रिया में प्रदूषण कितना होगा। उत्तर है जीरो (शून्य) प्रतिशत। यह स्वयं एनजीटी भी मानती है। एनजीटी के सारे दिशा- निर्देशों का पूरी तरह से अनुसरण किया जाता है।
पॉलिथीन से तेल बनाने की सफलता को लेकर आशुतोष मंगलम का कहना है कि यह उनकी अकेले की उपलब्धि नहीं है बल्कि इसके पीछे एक पूरी टीम है। इस टीम में जो सबसे ज्यादा आयु की लड़की शिवानी है वह बस 25 वर्ष की है। बाकी युवा 23 वर्ष से नीचे के ही हैं। मंगलम बताते हैं कि हमारी आयु तब इतनी छोटी थी कि बैंक ने लोन देने से इनकार कर दिया था, काम के कारण नहीं, आयु के कारण। तब अपनी बड़ी बहन के नाम पर इस कार्य के लिए लोन लिया था। अब था इसे एक संस्थागत नाम देना। पंजीकरण कराना। नाम पड़ा-जक्ष। कुबेर का पर्यायवाची शब्द जक्ष है। जश्न का अर्थ धन का रक्षक। इस नाम के पीछे हमारी पूरी टीम के लोगों का नाम भी छिपा है। जे यानि जिज्ञासु, ए यानि आशुतोष और अमन, के यानि कीर्ति भूषण गोस्वामी, एस यानि शिवानी और सुमित तथा एच यानि हसन। युवाओं की यह टीम अपने काम से लोगों के बीच लोहा मनवा चुकी है।
सरकारी सहायता कैसे प्राप्त हुई? बिहार में यह एक बड़ी समस्या है के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे कार्यों को प्रोत्साहित करती है। हर अधिकारी, पदाधिकारी ने दिल खोलकर हमारी सहायता की। 2021 में तत्कालीन जिला अधिकारी प्रणव कुमार, तत्कालीन उपविकास अधिकारी आशुतोष द्विवेदी, नगर आयुक्त विवेक रंजन मैत्रये तथा तत्कालीन महाप्रबंधक जिला उद्योग परिमल कुमार सिन्हा ने अपना दिल और दरवाजा 24 घंटे और 365 दिन के लिए खोल रखा था। यहां तक कि अगर कोई सरकारी नियम इस मार्ग में रोड़ा बनता दिखता तो अपने स्तर पर ही उसे दूर करने का प्रयास कर रहे थे। अर्थात् इरादा नेक और बुलंद हो तो कायनात की हर वस्तु आपकी सहायता में लग जाती है।
सिस्टेमेटिक रूप से जक्ष ने दो नवंबर 2022 से काम करना शुरू कर दिया। तब से लेकर रिपोर्ट लिखे जाने तक एक लाख लीटर से ऊपर फ्यूल बनाया और बेचा जा चुका है। इस दौरान दो सौ टन से ऊपर पॉलीथीन कचरे को निपटाया गया है। वह भी जीरो प्रतिशत प्रदूषण की शर्त पर। आश्चर्य मत करिए। अभी तो यह बताना बाकी है कि इतना तेल खपा कहां और कैसे। हसन बताते हैं कि उनके सबसे बड़े ग्राहक गुजरात के हैं। महीने दो महीने पर वह टैंकर में भरकर ले जाते हैं। तेल की कीमत मात्र 72 रुपए प्रति लीटर है। वैसे इस तेल के ग्राहक आसपास के किसान भी हैं। जो अपने ट्रैक्टर, डीजल इंजन एवं अन्य भारी वाहनों को चलाने के लिए इसे ले जाते हैं। कभी-कभी तो नौबत यहां तक पहुंच जाती है कि तेल की कमी के कारण आपस में ही तू-तू, मैं-मैं होने लगती है। इससे बचने के लिए हमने अपनी यूनिट का उत्पादन दो गुणा करने का निश्चय किया है। जो दिसंबर 2024 के प्रथम सप्ताह से ही होने लगेगा। इतनी मात्रा में तेल के लिए पॉलिथीन कहां से आएगा के प्रश्न पर उन्होंने कहा अभी तो मुजफ्फरपुर में ही काफी है। कचरे की कमी नहीं है। जो पॉलिथीन पूरे विश्व के लिए एक समस्या है, हमारा लक्ष्य उसे एक अवसर में बदल देना है। वे हंसते हुए कहते हैं इधर से कचरा (पॉलिथीन) डालो और उधर से सोना (तेल) निकलेगा। हमारा सारा कार्य किसानों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। हम न सिर्फ पॉलिथीन पर बल्कि पराली पर भी काम कर रहे हैं। जल्द ही यह भी सोना उगलने लगेगा। इसके अलावा ड्रोन से लेकर अन्य अनेक दिशाओं में यहां काम हो रहा है। वह भी बिना हो-हल्ला और ड्रामेबाजी के। इससे सीधे-सीधे किसान लाभान्वित होंगे।