अहंकार के छद्म विमर्श से राजनीति

अहंकार के छद्म विमर्श से राजनीति

अनंत विजय

अहंकार के छद्म विमर्श से राजनीतिअहंकार के छद्म विमर्श से राजनीति

 

अहंकार। लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद इस शब्द पर काफी चर्चा हो रही है। लोकसभा चुनाव के पहले और चुनाव के दौरान एरोगेंट शब्द की चर्चा थी। केंद्र सरकार के मंत्रियों की बात हो या फिर भाजपा के बड़े नेताओं की। आसानी से उनके स्वभाव के साथ एरोगेंट शब्द चिपका दिया जाता था। एरोगेंट से अगली कड़ी के रूप में अहंकार आया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक को अहंकारी कहा गया। अमेठी में स्मृति इरानी की चुनावी हार को उनके अहंकार से जोड़ा गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब संसद में ‘एक अकेला सब पर भारी’ बोला था, तभी से उनके साथ एरोगेंट शब्द चिपकाने का अभियान विपक्षी दलों और उनके इकोसिस्टम ने चलाया। वस्तुतः एक प्रधानमंत्री के तौर पर जब वह अपने विकास कार्यों को गिनाते थे, अपने संबोधन में मैं शब्द का प्रयोग करते थे, तो इस मैं को भी एरोगेंट के कोष्ठक में डाल दिया जाता था। इकोसिस्टम से जुड़े विश्लेषकों ने मोदी के भाषणों के चुनिंदा अंश को उठाकर उनके व्यक्तित्व के साथ एरोगेंट शब्द चिपकाने का खेल खेला। यह अभियान लंबे समय से चल रहा था। चुनाव के दौरान इसमें तेजी आई। इसी तरह स्मृति ईरानी के व्यक्तित्व के साथ भी एरोगेंट शब्द चिपकाने का खेल चला। कभी किसी सरकारी अधिकारी के जनता के पक्ष में काम करने को लेकर उनके संवाद के अंश काटकर, तो कभी किसी पत्रकार को, उनके उत्तर को एरोगेंट कहा गया। चुनाव में अमेठी गया था तो पता चला कि एक व्यक्ति की हत्या हो गई थी। वहां के प्रभावशाली लोग आरोपी को बचाने में लगे थे। स्मृति ईरानी को जब पता चला तो वह पीड़ित के पक्ष में खड़ी हो गईं। हत्यारोपी के विरुद्ध कानून सम्मत कार्य करने के लिए पुलिस को कहा। तब वहाँ के प्रभावशाली लोगों ने कहा कि स्मृति ईरानी एरोगेंट हो गई हैं, वह किसी की नहीं सुनती हैं। इसे इकोसिस्टम ने आगे बढ़ाया।

चुनाव परिणाम में भारतीय जनता पार्टी को इस बार अपेक्षित सफलता नहीं मिली। सबसे बड़े राजनीतिक दल और चुनाव पूर्व गठबंधन के तौर पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को बहुमत मिला और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बन गई। मंत्रिमंडल का गठन हो गया। मंत्रिमंडल गठन के बाद राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कार्यकर्ता विकास वर्ग के अपने संबोधन में अपनी बातें रखीं। उसमें भी अहंकार शब्द का प्रयोग किया गया। फिर क्या था, इकोसिस्टम को मसाला मिल गया। उसे नरेन्द्र मोदी को नसीहत के तौर पर प्रस्तुत किया जाने लगा। पृष्ठभूमि बनाई ही जा चुकी थी। सरसंघचालक के बयान से निकलने बाले संदेश को समझना है तो उसे समग्रता में देखना होगा। पहले बात कर लेते हैं अहंकार की। सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में कहा, ‘जो सेवा करता है, जो वास्तविक सेवक है, जिसको वास्तविक सेवक कहा जा सकता है उसको कई मर्यादा रहती हैं यानी वह मर्यादा से चलता है। काम सब लोग करते हैं, लेकिन कार्य करते समय मर्यादा का पालन करना, जैसा कि तथागत ने कहा है- कुशलस्य उपसंपदा, यानी अपनी आजीविका पेट भरने का काम सबको लगा ही है, करना ही चाहिए। अपने शरीर को भूखा नहीं रखना है, लेकिन कौशल पूर्वक जीविका कमानी है और कार्य करते समय दूसरों को धक्का नहीं लगना चाहिए। यह मर्यादा भी उसमें निहित है। ऐसी मर्यादा रखकर हम लोग काम करते हैं। काम करने वाला उस मर्यादा का ध्यान रखता है। वह मर्यादा ही अपना धर्म है, संस्कृति है। जो पूज्य महंत गुरुवर्य महंत रामगिरी जी महाराज ने अभी बहुत मार्मिक कथाओं से थोड़े में बताई, उस मर्यादा का पालन करके जो चलता है, कर्म करता है, कर्मों में लिप्त नहीं होता, उसमें अहंकार नहीं आता। वही सेवक कहलाने का अधिकारी रहता है।’

उपरोक्त वक्तव्य में से केवल अंतिम वाक्य को निकालकर उसे नरेन्द्र मोदी या उनकी सरकार के मंत्रियों के क्रियाकलापों और व्यवहार से जोड़ दिया गया। सरसंघचालक ने अपने वक्तव्य के इस हिस्से में सेवा और मर्यादा की बात की। इसके लिए उन्होंने तथागत और महंत रामगिरी जी को उद्धृत किया। इसमें राजनीति की बात तो कहीं है ही नहीं, समाज सेवा की बात है, जो वह संघ शिक्षा वर्ग के प्रतिभागियों को समझा रहे हैं। इसी तरह से मणिपुर को लेकर उनकी चिंता भी समाज की चिंता है। जब वह कहते हैं कि समाज में जगह-जगह कलह नहीं चलता। एक वर्ष से मणिपुर शांति की राह देख रहा है। उससे पहले 10 वर्ष शांत रहा। ऐसा लगा कि पुराना ‘गन कल्चर’ समाप्त हो गया। परंतु अचानक जो कलह वहां पर उपज गई या उपजाई गई, उसकी आग में वह अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है। कौन उस पर ध्यान देगा? प्राथमिकता देकर उसका विचार करना हमारा कर्तव्य है। इकोसिस्टम के लोग इस अंश को लेकर भी मोदी पर हमलावर होने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं। कुछ लोग तो यहां तक कह जा रहे हैं कि सरसंघचालक ने पहली बार मणिपुर की स्थिति पर अपनी बात रखी है। दरअसल ऐसे लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्य करने की पद्धति का अल्पज्ञान है। मोहन भागवत ने वर्ष 2023 के विजयादशमी के अपने संबोधन में भी मणिपुर के हालात पर चिंता प्रकट की थी। इसके बाद संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने मणिपुर पर बयान जारी किया था। संघ निरंतरता में मणिपुर की स्थिति को लेकर चिंता प्रकट कर रहा है। इसे नरेन्द्र मोदी की आलोचना करार देना इकोसिस्टम की राजनीतिक चाल है। सरसंघचालक के बयान को आंशिक रूप से उद्धृत कर संघ और भाजपा में काल्पनिक टकराव बताने वाले विश्लेषक यह भूल रहे हैं कि मोहन भागवत ने अपने भाषण में मोदी सरकार की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। वह कहते हैं कि पिछले दस वर्षों में बहुत कुछ अच्छा हुआ। आधुनिक दुनिया जिन मानकों को मानती है, जिनके आधार पर आर्थिक स्थिति का मापन किया जाता है, उनके अनुसार भी हमारी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हो रही है। हमारी सामरिक स्थिति निश्चित रूप से पहले से अधिक अच्छी है। दुनियाभर में हमारे देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है। 

इतनी स्पष्टता के बावजूद अगर विपक्ष को उस बयान पर राजनीति ही करनी है तो उनको मोहन भागवत के भाषण का वह अंश देखना चाहिए जहाँ तकनीक के सहारे असत्य परोसने की बात उन्होंने कही और प्रश्न उठाया कि क्या शास्त्र का, विज्ञान का, विद्या का यह उपयोग है? इसके बाद अपना मत प्रकट किया कि सज्जन विद्या का ऐसा उपयोग नहीं करते।

दरअसल विपक्षी दल और उनका पूरा इकोसिस्टम चुनाव में अपनी हार की खीझ मिटाने के लिए वाराणसी, अमेठी और फैजाबाद लोकसभा सीट के चुनाव परिणामों पर केंद्रित हो गया है। अमेठी में भारतीय जनता पार्टी की हार के अनेक कारण हैं, जबकि स्मृति इरानी के अहंकार को एकमात्र कारण बताया जा रहा है। लोगों के साथ खड़े होने और शक्तिशाली लोगों के सामने निर्बल को प्राथमिकता देने का अहंकार कहकर प्रचारित किया गया। वाराणसी में भाजपा की जीत का अंतर कम होने को नरेन्द्र मोदी के अहंकार से जोड़ दिया गया। फैजाबाद की हार को प्रभु श्रीराम से जोड़ दिया गया। गजब है राजनीति का खेल और गजब है (कु) तर्क गढ़ने का हुनर।

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