प्रयागराज महाकुंभ 2025: “एक थाली, एक थैला” अभियान से स्वच्छ और सतत आयोजन की दिशा में बड़ा कदम

प्रयागराज महाकुंभ 2025: “एक थाली, एक थैला” अभियान से स्वच्छ और सतत आयोजन की दिशा में बड़ा कदम
विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक, प्रयागराज महाकुंभ 2025, इस बार केवल आध्यात्मिकता और आस्था का केंद्र ही नहीं रहा, बल्कि स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी एक ऐतिहासिक प्रेरणा बना। कुंभ में संघ के “पंच परिवर्तन” विचार और “एक थाली, एक थैला” अभियान ने प्लास्टिक और डिस्पोजेबल कचरे में भारी कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस पहल के कारण महाकुंभ में कचरे के उत्पादन में लगभग 29,000 टन की कमी आई, जिससे सार्वजनिक आयोजनों के लिए स्थायी और पर्यावरण हितैषी व्यवस्था को बढ़ावा मिला।
“एक थाली, एक थैला” अभियान: एक क्रांतिकारी पहल
महाकुंभ 2025 में प्लास्टिक और डिस्पोजेबल सामग्री के अंधाधुंध उपयोग को रोकने के लिए “एक थाली, एक थैला” अभियान चलाया गया। इसके अंतर्गत देशभर से पुन: प्रयोग योग्य थालियां, बैग और गिलास एकत्रित किए गए, जिससे श्रद्धालुओं को भोजन के लिए डिस्पोजेबल प्लेटों पर निर्भर न रहना पड़े। इस पहल को जनभागीदारी और संगठनात्मक प्रयासों के माध्यम से क्रियान्वित किया गया, जिसमें कोई बजट नहीं रखा गया, बल्कि इसे सामाजिक सहयोग से सफल बनाया गया।
अभियान के आंकड़े इस प्रकार हैं :
थालियां एकत्रित: 14,17,064
बैग एकत्रित: 13,46,128
गिलास एकत्रित: 2,63,678
कुल कवर किए गए राज्य: 46 में से 43 (मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर)
संग्रह बिंदु: 7,258
भाग लेने वाले संगठन: 2,241
अभियान के अंतर्गत कुंभ में 10 लाख से अधिक प्लेटें, 13 लाख बैग और 2.5 लाख गिलास वितरित किए गए, जिससे लाखों श्रद्धालु लाभान्वित हुए और प्लास्टिक के उपयोग में भारी कमी आई।
“पंच परिवर्तन” विचार: कुंभ को नई दिशा देने वाला अभियान
संघ द्वारा महाकुंभ 2025 में “पंच परिवर्तन” का विचार लागू किया गया, जिसके अंतर्गत पाँच प्रमुख क्षेत्रों में बदलाव लाने की योजना बनाई गई:
1. स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण
डिस्पोजेबल बर्तनों का न्यूनतम उपयोग, गंगा और अन्य पवित्र जलस्रोतों की सफाई, पुन: प्रयोग योग्य सामग्री का उपयोग बढ़ाना।
2. संगठनात्मक प्रबंधन और सुविधा विस्तार
व्यापक स्तर पर जनभागीदारी से व्यवस्थाओं का संचालन, कुंभ स्थल पर सुविधा विस्तार और सेवा प्रबंधन।
3. धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का पुनरुद्धार
पारंपरिक पूजा पद्धतियों और धार्मिक अनुष्ठानों का जागरूकता अभियान, संत-महात्माओं के साथ संवाद और ज्ञान प्रसार
4. समाज में स्थायी प्रभाव
“बर्तन बैंक” जैसी स्थायी व्यवस्था को प्रोत्साहन, दीर्घकालिक सामाजिक और धार्मिक सुधारों की शुरुआत।
5. तकनीक और नवाचार का समावेश
डिजिटल सूचना तंत्र और कुंभ से जुड़ी तकनीकी व्यवस्थाओं का समावेश, श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मोबाइल ऐप और ऑनलाइन सहायता
मुख्य उपलब्धियां और प्रभाव
डिस्पोजेबल प्लेटों और कटोरों (पत्तल-दोना) का उपयोग 80-85% तक कम हुआ।
अपशिष्ट में कमी हुई (29,000 टन से अधिक कचरा कम हुआ), यदि यह पहल नहीं होती, तो कुल अपशिष्ट 40,000 टन से अधिक होता।
डिस्पोजेबल बर्तनों पर ₹3.5 करोड़ प्रतिदिन की बचत हुई, जिससे 40-दिवसीय आयोजन में कुल ₹140 करोड़ की बचत हुई।
पुन: प्रयोज्य प्लेटों में भोजन परोसे जाने के कारण बचे हुए खाद्य अपशिष्ट में 70% की कमी आई।
धार्मिक संस्थाओं, भंडारों और सामुदायिक रसोई को डिस्पोजेबल वस्तुओं पर लाखों रुपए खर्च करने से बचत हुई।
आयोजन में वितरित की गई स्टील की प्लेटों का उपयोग आने वाले वर्षों तक किया जाएगा, जिससे अपशिष्ट और लागत में कमी जारी रहेगी।
इस पहल से सार्वजनिक आयोजनों में पुन: प्रयोज्य बर्तनों को अपनाने की प्रेरणा मिली, जिससे भविष्य में अन्य आयोजनों में भी “बर्तन बैंक” जैसी संकल्पना लोकप्रिय हो सकती है।
यह अभियान पूर्णत: शून्य बजट पर आधारित था और केवल सामुदायिक भागीदारी से सफल हुआ।
प्रयागराज महाकुंभ 2025 में “एक थाली, एक थैला” अभियान और संघ के “पंच परिवर्तन” विचार ने सामाजिक जागरूकता, पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता के क्षेत्र में नई उपलब्धि प्राप्त की। यह पहल आने वाले वर्षों में न केवल कुंभ, बल्कि अन्य धार्मिक और सार्वजनिक आयोजनों में भी स्थायी बदलाव लाने का काम करेगी।
“धर्म और संस्कृति के साथ स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण की यह पहल, भारत को सतत विकास की दिशा में आगे ले जाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।”