पानी है अनमोल, न सूखे भूजल, सहेजें वर्षा जल
पानी है अनमोल, न सूखे भूजल, सहेजें वर्षा जल
राजस्थान में कहावत है- “घी ढुळै तो म्हारो कुछ न जाए, पानी ढुळै तो म्हारो काळजो बळै”… अर्थात् राजस्थान के लिए पानी का महत्व घी से कहीं अधिक है। इसीलिए हर मानसून में जल संरक्षण, जल संवर्धन और पानी सहेजने पर बल दिया जाता है। पानी की उपलब्ध मात्रा का ‘जीरो वेस्ट’ के संकल्प के साथ उपयोग ही अब जल जीवन का नया मंत्र हो सकता है।
गत माह ही बीकानेर और बाड़मेर में सड़क धंसने की घटनाएं सामने आईं। इससे आम जन के साथ ही भू वैज्ञानिक भी चिंता में हैं, क्योंकि दोनों घटनाएं प्रदेश के रेगिस्तानी क्षेत्रों में हुईं। जांच करने पर भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने पाया कि अत्यधिक भू जल दोहन और कम बारिश के कारण यहॉं जमीन धंसी और गड्ढा बन गया। रिपोर्ट में भूगर्भीय क्षेत्र के अवलोकनों के साथ भूजल, क्षेत्र में होने वाली वर्षा और अन्य प्रासंगिक डेटा के विश्लेषण में पाया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में भूजल की अत्यधिक कमी हो गई है। इससे जमीन की ऊपरी सतह के भीतर की परत, जिसमें जलभृत चट्टानें/तलछट होती हैं, वे सूख रही हैं। इससे ऊपरी सतह की परतों का आयतन कम हो जाता है और ढीली रेत वाली भूमि का धंसाव होने की आशंका बनी रहती है। बीकानेर जिले की ग्राउंड वाटर की स्थिति बताने वाली एक रिपोर्ट के अनुसार, बीकानेर जिले में मुख्य रूप से हल्की बनावट, कमजोर संरचना वाली रेत और रेतीली दोमट मिट्टी है। परंतु हर वर्ष जारी होने वाली मानसून रिपोर्ट में बताया गया कि जहां जमीन धंसी है, उस स्थान पर पिछले 30 वर्षों में औसत बारिश 17.4 मिमी बढ़ी है। फिर ऐसा क्यों हुआ कि जमीन के भीतर जल अवशोषित करने वाली परत सूख गई। भूजल को धरती में समाहित होने को जगह ही नहीं मिली और पहले से समाहित भू जल का अत्यधिक दोहन कर लिया गया, जिसके चलते सूखी पड़ी रेत खिसक गई और जमीन धंस गई। प्रकृति ऐसे ही संकेत देती है, जिन्हें समझना मानव का कर्तव्य है। जितना खयाल मानव प्रकृति का रखेगा, प्रकृति बदले में उतना ही अधिक इस संसार और मानव जीवन को लौटाएगी। इसीलिए वर्षा जल संरक्षण करना आवश्यक है। नदी नाले, बावड़ियां पर्याप्त मात्रा में भरे रहेंगे तो मानव को भूजल के अत्यधिक दोहन की आवश्यकता स्वत: ही नहीं पड़ेगी।
भूजल है कम, खर्च हो रहा अधिक- भू जल विभाग
केंद्रीय भू-जल बोर्ड व राजस्थान के भू-जल विभाग ने रिपोर्ट में बताया है कि 2025 में पानी का संकट काफी विकराल रूप ले लेगा। राजस्थान के चार जिलों जयपुर, अजमेर, जोधपुर और जैसलमेर में जल संकट गहराने की आशंका है। जितना भू-जल एकत्र होता है, उससे अधिक की खपत होती है। पिछले 30 वर्षों में भूजल दोहन 114 प्रतिशत तक बढ़ गया है। बारिश का पानी जमीन में अवशोषित ना होकर नदी नालों में से बह कर निकल जाता है। प्रदेश के 299 ब्लॉक में से केवल 12 ब्लॉक ही ऐसे बचे हैं, जिनमें पानी है। 216 ब्लॉक से अत्यधिक भू जल दोहन हो रहा है। राजस्थान में हर वर्ष बारिश और अन्य स्रोतों से जितना पानी रिचार्ज होता है, उससे 5.49 बिलियन क्यूबिक मीटर अधिक पानी उपयोग हो रहा है। यानी भविष्य की बचत को आज ही खर्च किया जा रहा है।
संरक्षित करें वर्षा जल
विशषज्ञों के अनुसार भूजल स्तर बढ़ाने के लिए वर्षा जल संग्रहण के उपाय करना आवश्यक है। इसके लिए भूगर्भ जल रिचार्जिंग के तकनीकी उपाय भी अपनाए जा सकते हैं, जैसे:
1. रिचार्ज पिट
2. रिचार्ज ट्रेंच
3. रिचार्ज ट्रेंच कम बोरवेल
4. तालाब/पोखर/सूखा कुआँ/बावड़ी
5. सतही जल संग्रहण, छोटे-छोटे चेक डेम
इंडिया वाटर पोर्टल के अनुसार, यह तकनीक स्थानीय हाइड्रोजियोलॉजी पर निर्भर करती है। भूगर्भ जल रिचार्जिंग की कोई भी विधि अपनाने के लिए निर्माण कार्य महीने से सवा-महीने में पूरा हो जाता है। उदाहरण के लिए 1000 मिलीमीटर वर्षा होने पर घर की लगभग 100 वर्गमीटर क्षेत्रफल की छत पर, हर वर्ष बरसात में एक लाख लीटर जल गिरता है जो सीवर लाइनों व नालों में बहकर व्यर्थ चला जाता है। वर्षा जल संचयन की विधि अपनाकर इसमें से 80,000 लीटर पानी को भूजल भण्डारों में जल की भावी पूँजी के रूप में जमा किया जा सकता है।
यदि घर ऐसे क्षेत्र में है, जहाँ सतह से थोड़ी गहराई पर ही बालू का संस्तर मौजूद है,, अर्थात् उथले संस्तर वाले क्षेत्र हैं, तो रिचार्ज पिट फिल्टर मीडिया से भरा 02 से 03 मीटर गहरा गढ्ढा बनाकर छतों पर गिरने वाले वर्षा जल को जमीन के भीतर डायवर्ट किया जा सकता है। यदि छत का क्षेत्रफल 200 वर्गमीटर हो, तो रिचार्ज पिट के बजाय बगीचे के किनारे ट्रेंच बनाकर बारिश के पानी को रिचार्ज किया जा सकता है। इसमें भी ट्रेंच में फिल्टर मीडिया (विभिन्न साइज के ग्रेवल) भरा जाएगा। जिन क्षेत्रों में बालू का संस्तर 10 से 15 मीटर या अधिक गहराई पर है, यानी गहरे संस्तर वाले क्षेत्र में, तो वहां वर्षा जल संरक्षण के लिये एक रिचार्ज चैम्बर बनाकर बोरवेल के माध्यम से रिचार्जिंग कराई जा सकती है।
परम्परागत जल संरक्षण
वर्षा ऋतु में परंपरागत जल संग्रहण आवश्यक है। इसकी सबसे आसान विधि मानसून आने से पूर्व खेतों पर मेड़ बनाना है। फिर मेड़ पर पेड़ लगाना होगा। यह आज की नहीं, हमारे पुरखों की परंपरागत विधि है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कैच द रेन का आह्वान इसी ओर इशारा करता है। ऐसा करने से तालाब, कुआं, नाला, सामुदायिक जलाशयों में बरसात का पानी भर जाता है। इससे भू-जल का स्तर आसानी से ऊपर आता है और कुछ ही वर्षों में यह संकट सदा के लिए दूर हो सकता है।
इस संबंध में राजस्थान भू-जल विभाग के मुख्य अभियंता सूरज भान सिंह का कहना है कि अटल भू-जल योजना के अंतर्गत पिछले चार वर्षों में 15 हजार जल संचयन संरचनाएं बनाई गईं। इसके अतिरिक्त 30 हजार से अधिक किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर अपनाने के लिए प्रेरित कर पानी की खपत कम करने के प्रयास भी किए गए। इससे 17 जिलों की 1129 ग्राम पंचायतों में से 189 ग्राम पंचायतों में जलस्तर बढ़ा है। 289 ग्राम पंचायतों में स्थिति में मामूली सुधार हुआ है।
21 बांधों में मानसून की बारिश से आया पानी
राजस्थान के 691 बांधों में से 511 बांध सूखे पड़े हैं। मानसून की शुरुआती बारिश के बाद 21 बांधों में थोड़ा बहुत पानी आया है। 176 बांध ऐसे हैं, जिनमें नाम मात्र का पानी बचा है तो केवल चार ही बांध हैं जो पूरे भरे हुए हैं। जल संसाधन विभाग ने आशा जताई है कि अगर बांधों में अच्छी मात्रा में बारिश का पानी आ जाए तो आस-पास के क्षेत्रों में भूजल स्तर तो सुधरेगा ही, ट्यूबवैल और कुएं भी रिचार्ज हो सकेंगे। राज्य में लगभग 408 छोटे बांध हैं। इनमें से 336 पूरी तरह खाली हैं।
मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान-2.0
जल संकट की ऐसी चिंताजनक स्थिति को देखते हुए राजस्थान सरकार प्रदेश में वर्षा जल संचयन की 5 लाख इकाईयां बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। ये इकाईयां 20 हजार गांव-ढाणियों में बनाई जाएंगी।