प्रधानमंत्री मोदी और संघ

अवधेश कुमार
प्रधानमंत्री मोदी और संघ
स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार देश के शीर्ष पर बैठे किसी व्यक्ति या प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर इतने विस्तार से बातचीत की है। प्रधानमंत्री ने अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन के साथ तीन घंटे के अपने लंबे पॉडकास्ट में अनेक विषयों पर बातचीत की, जिनमें संघ भी एक महत्वपूर्ण विषय था। अगर साक्षात्कार लेने वाला दुराग्रह या पूर्वाग्रह न पाले तो सकारात्मक दृष्टि से उसके साथ बातचीत संभव है और इससे सही परिप्रेक्ष्य लोगों के समक्ष आता है। हाल के दिनों में प्रधानमंत्री ने तीसरी बार संघ पर अपना मत प्रकट किया है और सबमें सुसंगति है, स्वर एक ही है। 21 फरवरी, 2025 को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा था कि वेद से विवेकानंद तक भारत की महान परंपरा और संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक संस्कार यज्ञ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से चला रहा है। मेरा सौभाग्य है कि मेरे जैसे लाखों लोगों को आरएसएस ने देश के लिए जीने की प्रेरणा दी है। उसके पहले 12 अक्टूबर, 2024 को संघ के शताब्दी वर्ष में प्रवेश करने पर सरसंचालक डॉ. मोहन भागवत के एक वीडियो का लिंक साझा करते हुए उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया था कि राष्ट्र सेवा में समर्पित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस आज अपने 100वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। अविरल यात्रा के इस ऐतिहासिक प्रभाव पर समस्त स्वयंसेवकों को मेरी हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनायें। मां भारती के लिए यह संकल्प और समर्पण देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करने के साथ ही विकसित भारत को साकार करने में भी ऊर्जा भरने वाला है। फ्रिडमैन के साथ उन्होंने संघ की विचारधारा, उत्पत्ति, संगठन की कला और उससे जुड़े संगठनों के विराट स्वरूप पर विस्तार से बातचीत की है।
राजनीतिक विश्लेषक मानेंगे कि प्रधानमंत्री लोकसभा चुनाव के दौरान एक वक्तव्य से पैदा संभ्रम को समाप्त कर पूरे संगठन परिवार में सही संदेश स्थापित करने की दृष्टि से ऐसा कर रहे हैं। देखने वालों की दृष्टि है, किंतु संघ के स्वयंसेवक और संगठन परिवार के कार्यकर्ता इसे संपूर्ण जीवन लगा देने वाले एक वरिष्ठ स्वयंसेवक के सही मंतव्य के रूप में ही लेंगे। वास्तव में जिन्हें संघ समझना हो वे इसे उस रूप में लेंगे तो समस्या नहीं आएगी। अभी भी आप संघ के बारे में प्रत्यक्ष साकार से परे दुराग्रह, वैचारिक विरोध य घृणा के कारण लिखने – बोलने के आलोक में देखेंगे तो सही निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते। प्रधानमंत्री के पूरे वक्तव्य का मूल समझना हो तो उनकी इस पंक्ति को आधार बनाना होगा की आरएसएस आपके जीवन में एक स्पष्ट दिशा प्रदान करता है, जिसे वास्तव में जीवन का उद्देश्य कहा जा सकता है। दूसरी बात, राष्ट्र सब कुछ है और लोगों की सेवा करना भगवान की सेवा के समान है यह वैदिक युग से कहा गया है। हमारे ऋषि मुनियों ने जो कहा, विवेकानंद जी ने जो कहा उसका संघ प्रतिनिधित्व करता है। आरएसएस पर निष्पक्षता से अध्ययन करने वाले उनकी इस बात से शत प्रतिशत सहमत होंगे। संघ को संघ की दृष्टि से समझने का प्रयास करने वाले प्रधानमंत्री की बात से सहमत होंगे कि संघ को समझना इतना आसान नहीं है। इसके काम की प्रकृति को वास्तव में समझने के लिए प्रयास करना पड़ता है। उन्होंने अपने बारे में स्पष्ट किया कि उनके जीवन में एक दिशा, राष्ट्र की सेवा और लक्ष्य को पाने की प्रेरणा, संकल्प तथा काम करने की अंत:शक्ति केवल संघ के स्वयंसेवक होने के कारण मिले, जो बाद में अध्यात्म और संतों के कारण सशक्त होते हुए आगे बढ़ा। उनका कहना था कि मुझे ऐसे पवित्र संगठन से जीवन के मूल्य प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है। संघ के माध्यम से मुझे एक उद्देश्य पूर्ण जीवन मिला, फिर मुझे संतों के बीच कुछ समय बिताने का सौभाग्य मिला, जिसने मुझे एक मजबूत आध्यात्मिक आधार दिया, मुझे अनुशासन और उद्देश्यपूर्ण जीवन मिला।
वास्तव में यह आम सक्रिय स्वयंसेवकों के सामूहिक अनुभवों की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति है। संघ के स्वयंसेवकों से पूछिए कि संघ आपको क्या सिखाता है, तो कहेंगे कि जिस तरह हम परिवार की चिंता करते हैं, उसी तरह देश की करें। दूसरी बात यह बताएंगे कि कोई हमारा सहयोग करे न करे, साथ आए न आए, लेकिन उसको साथ लेने का प्रयास करते हुए राष्ट्र की सेवा, आमजन की सेवा में रत रहते हुए देश को परम वैभव तक ले जाना है। स्वयंसेवक से जब आप राजनीति पर प्रश्न करेंगे, तब शायद ही कोई उत्तर मिलेगा। राजनीति हम पर इतना हावी है कि उसके बाहर हम सोचने और देखने की आसानी से कल्पना नहीं करते, इसलिए यह चरित्र समझ में नहीं आता। प्रधानमंत्री मोदी ने इसलिए संघ के विविध कार्यों को भी फ्रिडमैन के माध्यम से दुनिया के समक्ष रख दिया है।
अब विश्व समुदाय को अनुभव होगा कि वास्तव में 100 वर्षों में इस संगठन ने मुख्यधारा के ध्यान से दूर रहकर अनुशासन और भक्ति के साथ स्वयं को देश और मानवता की सेवा में समर्पित किया है। इसी कारण आज विश्व में इससे बड़ा कोई संगठन नहीं और न इतना बड़ा संगठन परिवार बनने की कोई सोच सकता है। उदाहरण के लिए उन्होंने संघ की प्रेरणा से चलने वाले संगठनों में सेवा भारती की चर्चा की, जो 1 लाख 25 हजार सेवा परियोजनाएं बिना सरकारी सहायता केवल समाज की सहायता से चला रहा है। यह उन झुग्गी – झोपड़ियों और बस्तियों में बच्चों को पढ़ाने, उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखने, स्वच्छता के साथ अन्य प्रकार की सहायता देने का काम करता है, जहां सबसे गरीब लोग रहते हैं। दूसरे, वनवासियों के बीच संघ का बनवासी कल्याण आश्रम आज जंगलों में पूरा समय लगाकर जनजातियों की सेवा के काम में लगा है, जो 70 हजार से अधिक एकल विद्यालय चलाता है। इन्हें धन कैसे मिलता है तो प्रधानमंत्री के अनुसार, अमेरिका के कुछ लोग 10 से 15 डॉलर दान देते हैं। उन्हें कहा जाता है कि एक कोका कोला मत पियो और यह पैसा विद्यालय को दो। फिर एक महीने कोका कोला छोड़ दो और वह पैसा एकल विद्यालय को दो। यह बाहर से समझ नहीं आएगा, लेकिन जरा सोचिये कि इतनी संख्या में एकल शिक्षक इतने बच्चों को वर्षों से शिक्षित कर रहे हैं तो कितने छात्र इससे निकले होंगे, जो आत्मनिर्भर बनने के साथ ही राष्ट्र के लिए काम करने की प्रेरणा रखते होंगे। इसी तरह स्वयंसेवकों ने शिक्षा में क्रांति के लिए विद्या भारती की स्थापना की, जिसके इस समय लगभग 25 हजार विद्यालय हैं, जिनमें 30 लाख से अधिक छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। आसानी से कल्पना की जा सकती है कि इतने वर्षों में कितने करोड़ छात्र निकले होंगे और वहां से प्राप्त समग्र शिक्षा के साथ जीवन मूल्य, कौशल आदि से वो समाज पर बोझ न बनकर परिवार और राष्ट्र की सेवा का समन्वय बनाते हुए काम कर रहे होंगे। जानकारों को पता है कि समाज जीवन का कोई क्षेत्र नहीं जहां संघ नहीं। महिला, युवा, छात्र, मजदूर सभी क्षेत्रों में संघ संगठनों के माध्यम से सक्रिय है। आज छात्रों के बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद केवल भारत नहीं विश्व का सबसे बड़ा विद्यार्थी संगठन है तो भारतीय मजदूर संघ 50 हजार यूनियन चलाता है वह भी दुनिया का सबसे बड़ा मजदूर संघ है। अन्य संगठनों से अलग इसकी दृष्टि वही है। प्रधानमंत्री ने बिल्कुल सही कहा कि वामपंथी विचारधाराओं ने दुनिया के मजदूर एक हो जाओ का नारा देते हुए बताया कि पहले आप एक हो जाओ और बाकी सब कुछ हम संभाल लेंगे। संघ प्रशिक्षित स्वयंसेवकों के मजदूर संघों का नारा दिया, ‘मजदूर दुनिया को एक करो’। आप सोचिए जो लोग संघ को विभाजनकारी मानते हैं उसने इस छोटे से शब्द के द्वारा कितना बड़ा बदलाव सोच और व्यवहार में लाया होगा।
निश्चित रूप से प्रधानमंत्री स्तर के व्यक्ति द्वारा संघ के बारे में इस तरह बात करने के बाद राजनीतिक कारणों से उसके विरोध में खड़े लोगों को छोड़ दें, तो विश्व भर के थिंक टैंक, बुद्धिजीवी, पत्रकार, नेता, एक्टिविस्ट, समाजसेवी, एनजीओ चलाने वाले आदि नई दृष्टि से मूल्यांकन करेंगे। उन्होंने जो कुछ कहा वह अमूर्त नहीं है, जिसे देखा और समझा न जा सके। प्रधानमंत्री के बोलने के बाद संपूर्ण विश्व में संघ को देखने की जो दृष्टि बनेगी उसके आलोक में योजनानुसार भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में प्रचार, सुदृढ़िकरण, कार्य विस्तार के लिए संघ की कार्य योजना हो। स्वयंसेवकों व कार्यकर्ताओं का भी दायित्व है कि प्रधानमंत्री के कथन का स्वरुप विस्तार से साकार दिखे, इसके लिए सतत कार्य में लगे रहें।