वह झांसी की रानी थी
राम गोपाल पारीक
वह झांसी की रानी थी
कुछ राजा तो चापलूस थे,
लड़ते और लड़ा बैठे।
अंग्रेजों की कुटिल चाल से,
अपना राज्य गंवा बैठे॥
झांसी में भी अंग्रेजों ने,
भेजा था हमलावरों को।
देख के सैनिक दंग रह गए,
घोड़ों और तलवारों को॥
झांसी की धरती पर खेली,
स्वतंत्रता की होली थी।
अंग्रेजों से टक्कर लेती,
ऐसी उसकी टोली थी॥
लड़ी जोश से लक्ष्मीबाई,
दुश्मन का संहार किया।
फिरंगियों से घिर जाने पर,
बुंदेलखंड को छोड़ दिया॥
पहुंच कालपी रानी ने,
फिर सेना को तैयार किया।
दत्तक पुत्र को बांध पीठ पर,
तलवारों से वार किया॥
कितनी तोपें गरजी थीं,
पर रानी को ना हरा सकीं।
अंग्रेजों से लोहा लेती,
रानी को ना डरा सकीं॥
छूटे थे बारूदी गोले,
गिरते आग लगाने को।
रानी का तूफानी हमला,
बढ़ता आग बुझाने को॥
सोनरेख का वह नाला,
जो घोड़ा पार ना कर पाया।
रानी बढ़ ना पाई आगे,
दुश्मन हमला कर पाया॥
वीरगति को प्राप्त हुई,
रानी की यही कहानी है।
दुश्मन के छक्के छुड़वाए,
वो झांसी की रानी है॥