सनातन और आध्यात्मिक जगत के प्रणेता राघवाचार्य महाराज का देवलोकगमन
सनातन और आध्यात्मिक जगत के प्रणेता राघवाचार्य महाराज का देवलोकगमन
सीकर, 30 अगस्त 2024। राजस्थान के सीकर जिले के रैवासा पीठाधीश्वर राघवाचार्य महाराज का आज सुबह ह्रदयाघात से निधन हो गया। महाराज को बाथरूम में अचानक दिल का दौरा पड़ा, उन्हें तुरंत सीकर के अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका।
राघवाचार्य महाराज ने अपना पूरा जीवन धार्मिक और सामाजिक सेवा में समर्पित कर दिया। उनकी शिक्षा और मार्गदर्शन ने लाखों लोगों के जीवन को प्रेरित किया। उनके धार्मिक प्रवचन और समाज सेवा के कार्यों ने समाज में एक अमिट छाप छोड़ी। उनके निधन के समाचार से न केवल उनके अनुयायियों बल्कि कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों में भी शोक की लहर दौड़ गई। रैवासा में उनके सम्मान में बड़ी संख्या में लोग जुट रहे हैं, जहां महाराज जी को अंतिम विदाई दी जाएगी। अंतिम संस्कार के लिए उनके भक्तों और अनुयायियों का रैवासा पीठ पर आगमन शुरू हो गया है। उनका जाना सनातन व आध्यात्मिक जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।
राघवाचार्य महाराज सीकर के रैवासा स्थित ऐतिहासिक जानकीनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर थे। यह मंदिर 1570 में स्थापित हुआ था। इसे वैष्णव संप्रदाय की प्राचीनतम पीठों में से एक माना जाता है। महाराज के नेतृत्व में इस पीठ से मधुर उपासन और कई धार्मिक गतिविधियों का प्रसार हुआ। उन्होंने जनकपुर तक गाए जाने वाले होली के पद और अग्रदेवाचार्य महाराज द्वारा बनाए गए महत्वपूर्ण धार्मिक पदों की रचना की। उनके योगदान और शिक्षाओं ने न केवल स्थानीय समुदाय बल्कि पूरे देश के अनुयायियों को प्रभावित किया। महंत राघवाचार्य महाराज के नेतृत्व में इस मंदिर में पिछले 36 वर्षों से दिन-रात रामधुनी जारी है।
राम जन्मभूमि आंदोलन में महंत राघवाचार्य महाराज का योगदान भी अविस्मरणीय है। 1984 से इस आंदोलन से जुड़े महाराज ने अपने स्वास्थ्य की चिंता किए बिना कई सभाएं कीं। प्रदेशभर में दो रथयात्राएं कर जनजागरण किया, इनमें साधु-संत भी शामिल थे। यात्रा का रथ भी बाद में रैवासा में ही रहा। इसके बाद अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन के लिए रैवासा धाम से चांदी की ईंट गई थी, जिस पर 11 लाख बार भगवान राम का नाम लिखा गया था। राघवाचार्य महाराज भी अयोध्या गए और राम मंदिर भूमि पूजन के साक्षी बने थे।
इसके अलावा राघवाचार्य महाराज ने सनातन संस्कृति को बचाने का बीड़ा उठाया था। महाराज ने रैवासा धाम में वेद विद्यालय की स्थापना की। इसमें बच्चों को वेदों की शिक्षा दी जाती है। यहां बच्चों के रहने और भोजन की व्यवस्था भी है। रैवासा धाम की गोशाला में 50 से अधिक गायें हैं, जिनकी प्रतिदिन सेवा की जाती है। साथ ही भगवान जानकीनाथ के सम्मुख अखंड श्री सीताराम नाम संकीर्तन की ध्वनि वातावरण में गुंजायमान रहती है। रसोई में प्रतिदिन यहां पधारे साधु-संतों का भंडारा चलता रहता है।
महाराज जी का जीवन परिचय
राघवाचार्य महाराज का जन्म एक धार्मिक परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें धार्मिक संस्कार और वैदिक शिक्षा मिली। राघवाचार्य महाराज ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत गुरु परंपरा के अंतर्गत की। उन्होंने अपने गुरुओं से वैदिक ज्ञान, ध्यान और योग विद्या सीखी। उनके गुरु ने उन्हें रैवासा पीठ की महंती का उत्तराधिकारी घोषित किया, जिसके बाद वे रैवासा पीठ के पीठाधीश्वर बने।