रामलला को हापुस आमों का भोग, निराला है भगवान और भक्त का रिश्ता

रामलला को हापुस आमों का भोग, निराला है भगवान और भक्त का रिश्ता

रामलला को हापुस आमों का भोग, निराला है भगवान और भक्त का रिश्तारामलला को हापुस आमों का भोग, निराला है भगवान और भक्त का रिश्ता

अयोध्या। अक्षय तृतीया पर अयोध्या में रामलला दरबार की छटा निराली थी। पूरा दरबार हापुस आमों और आम रस से सजा था। जैसे शबरी ने भगवान राम को बेर खिलाए थे, वैसे ही पुणे के रामभक्त किसानों ने हापुस आम की पहली फसल भगवान श्री राम को अर्पित की।

कहते हैं, भगवान भाव के भूखे हैं और भक्त सम्पूर्ण भक्ति भाव के साथ भगवान के चरणों में स्वयं को समर्पित करता है। यही आस्था है। घर में कोई मांगलिक कार्य हो, पर्व या उत्सव हो प्रथम थाली भगवान के भोग की लगाई जाती है। इसी प्रकार पहली फसल, ऋतु के पहले फल का भोग भी भगवान को लगाया जाता है। दीपावली के अगले दिन मंदिरों और घरों में अन्नकूट प्रसादी की परम्परा हो, संक्रांति पर तिल की मिठाइयों, खिचड़ी का भगवान को भोग लगाना हो या गुड़ी पड़वा पर नीम की नई कोपलें गुड़ के साथ बांटने की परम्परा; प्रकृति और ईश्वर का संबंध आदि-अनादि काल से धरती पर मानव को सुख समृद्धि का वरदान देता आ रहा है। कृतज्ञ मनुष्य इसके लिए ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करता है और यहीं से शुरू होती है ईश्वर को प्रथम भोग लगाने की परम्परा।

इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए हाल ही वैशाख शुक्ल तृतीया यानी अक्षय तृतीया के अवसर पर 10 मई को अयोध्या के श्री रामलला दरबार में प्रभु श्री राम को पुणे से आए 11,000 हापुस आमों का भोग लगाया गया। पुणे के किसानों ने राम मंदिर बनने के बाद प्राप्त हापुस आमों की पहली फसल भगवान को भोग स्वरूप अयोध्या भेजी। भोग में आम के साथ ही अन्य मौसमी फल तथा आमरस की बोतलें भी थीं। महाराष्ट्र के कई जिले हापुस आम के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं। आमों की यह किस्म विश्व के महंगे आमों की सूची में गिनी जाती है।

विश्व हिन्दू परिषद के शरद शर्मा का कहना है कि जब से भगवान राम के मंदिर का उद्घाटन हुआ है, पूरे देश और दुनिया से भक्त अयोध्या आ रहे हैं और अपने-अपने तरीके से भगवान के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत सहित पूरी दुनिया में फैले राम भक्तों के इस प्रेम को देखते हुए उन राजनीतिक दलों को राम और राम भक्तों की आलोचना से बाज आना चाहिए जो अपने तुच्छ राजनीतिक लाभ के लिए अपनी आपत्तिजनक टिप्पणियों से लोगों की भावनाएं आहत करते रहते हैं।

राम भक्त अर्चना, जो प्रतिदिन कॉपी पर सौ बार राम राम लिखती हैं, बड़े ही भक्ति भाव से कहती हैं, भगवान और भक्त का रिश्ता निराला है। जो लोग इसे दिखावा बताते हैं या कहते हैं कि भोग तो वहीं रखा रह जाता है, भगवान कौन सा खाने आते हैं, उनसे मैं कहना चाहूंगी कि पुस्तक में कोई पाठ लिखा होता है, हम उसे पढ़ते हैं, तो वह हमें याद हो जाता है, उसके शब्द तक हमारे मस्तिष्क में हूबहू अंकित हो जाते हैं। अब पुस्तक तो वैसी की वैसी है, उसमें से कोई अक्षर तो कम नहीं हुआ फिर वह हमारे मस्तिष्क में कैसे अंकित हो गया? ऐसे ही भगवान स्थूल रूप में भले न सही सूक्ष्म रूप में हमारे समर्पण को अवश्य स्वीकार करते हैं। भगवान और भक्त का रिश्ता वैसा ही है जैसे शरीर और आत्मा का और इस भाव को सज्जन ही समझ सकते हैं।

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