रामलला खेलेंगे कचनार के फूलों से बने गुलाल से होली
रामलला खेलेंगे कचनार के फूलों से बने गुलाल से होली
भारत में फूलों, फूलों से बने रंगों व गुलाल से होली खेलने की परम्परा बहुत पुरानी है। रासायनिक रंग तो बहुत बाद में आए। अपनी विरासत को आगे बढ़ाते हुए एनबीआरआई (NBRI) ने इस बार कचनार के फूलों से गुलाल तैयार किया है। रामलला इसी गुलाल से होली खेलेंगे। त्रेता युग में कचनार अयोध्या का राज्य वृक्ष था। एनबीआरआई ने कचनार के फूलों के अलावा गोरखनाथ मंदिर में चढ़ाए हुए फूलों से भी हर्बल गुलाल तैयार किया है। इस मिश्रण में गुलाब, गेंदा और दूसरे फूल भी सम्मिलित हैं। एनबीआरआई संस्थान के निदेशक डॉ. अजीत कुमार शासनी ने यहॉं तैयार गुलाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेंट किया है। उल्लेखनीय है कि अयोध्या के राम दरबार में 495 वर्षों के बाद होली खेली जाएगी।
कचनार के पेड़ की विशेषताएं
कचनार का पेड़ भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कचनार के पेड़ का वर्णन रामायण में भी मिलता है। मान्यता है कि इसके फूलों को भगवान राम के शासनकाल में अयोध्या साम्राज्य के ध्वज पर उकेरा गया था।
कचनार एक भारतीय पौधा है, जो दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे श्रीलंका, थाईलैंड आदि में भी पाया जाता है। इसे ऑर्किड ट्री के रूप में भी जाना जाता है। कचनार के फूल पांच पंखुड़ी वाले होते हैं, जो गुलाबी और सफेद रंग में खिलते हैं। कचनार की जड़ें, तना, पत्तियां, फूल और बीज सभी में लाभकारी पोषक तत्व और औषधीय गुण पाए जाते हैं। कचनार के एंटी इन्फ्लेमेटरी (anti inflammatory), एंटीबैक्टीरियल (anti bacterial) और एंटीफंगल (anti fungal) गुणों के कारण इसका दवाई के रूप में भी उपयोग होता है।
वैज्ञानिक एसके तिवारी ने जानकारी देते हुए बताया कि कचनार के फूलों को पीसने और अलग–अलग सॉल्वेंट्स (solvents) का परीक्षण करने के बाद, इससे एक सुंदर गुलाबी रंग का गुलाल बना, फिर अन्य रंगों का गुलाल भी बनाया गया। एनबीआरआई का लक्ष्य इस पर्यावरण अनुकूल विकल्प को लोगों तक पहुंचाना है। उन्होंने बताया कि कचनार के फूलों से तैयार हर्बल गुलाल की सुगंध लैवेंडर (lavender fragrance) तथा गोरखनाथ मंदिर में चढ़े फूलों से बने गुलाल की सुगंध चंदन (chandan fragrance) जैसी है। इस गुलाल में लेड, क्रोमियम और निकेल जैसे रसायन नहीं हैं। इसे आसानी से पोंछ कर साफ किया जा सकता है।