राममंदिर का इतिहास (1528 से अब तक)
राममंदिर का इतिहास (1528 से अब तक)
राममंदिर के लिए संघर्ष (टाइमलाइन- कब क्या हुआ)
सन् 1528
बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या के रामकोट में स्थित राम जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर उसी स्थान पर मंदिर के अवशेषों से इस्लामिक ढांचे का निर्माण करवाया। तीन गुम्बद वाले इस ढांचे को मस्जिद जन्मस्थान कहा गया।
सन् 1530 से सन् 1556
राम जन्मस्थान मंदिर टूटने से हिन्दू आहत थे। उन्होंने सतत संघर्ष किया। इस दौरान दस युद्ध हुए। स्वामी महेशानंद साधु सेना लेकर लड़े और रानी जयराज कुमारी स्त्री सेना। दोनों बलिदान हो गए।
सन् 1556 से सन् 1605
यह अकबर का काल था। इस दौरान 20 युद्ध हुए। स्वामी बलराम आचार्य वीरगति को प्राप्त हुए। बाद में अकबर ने बीरबल और टोडरमल की राय से इस्लामिक ढांचे के सामने एक छोटे से चबूतरे पर हिन्दुओं को पूजा अर्चना की अनुमति दे दी।
सन् 1528 से सन् 1731
हिन्दू राम जन्मभूमि पर कब्जा चाहते थे, जिस पर इस्लामिक ढांचा बना दिया गया था। इस कालखंड में 64 लड़ाइयां लड़ी गईं।
सन् 1650 से सन् 1707
यह औरंगजेब का समय था। इस काल में गुरु गोविंद सिंह, बाबा वैष्णव दास, कुंवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदम्बा सिंह आदि के नेतृत्व में कुल 30 लड़ाइयां लड़ी गईं।
सन् 1822
फैजाबाद अदालत के मुलाजिम हफीजुल्ला ने सरकार को एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें कहा कि राम के जन्मस्थान पर बाबर ने मस्जिद बनवाई थी।
सन् 1852
निर्मोही अखाड़े के संतों ने दावा किया कि बाबर ने मंदिर तोड़कर इस्लामिक ढांचा बनाया।
सन् 1855
जन्मस्थान के पास हनुमान गढ़ी पर बैरागियों और मुसलमानों के बीच लड़ाई हुई। वाजिद अली शाह नेपांच दस्तावेजों समेत ब्रिटिश रेजीडेंट मेजर आर्टम को पर्चा भेजा, जिसमें लिखा कि इस ढांचे कोलेकर हिन्दुओं और मुसलमानों में तनाव रहता है।
सन् 1858
अंग्रेजी सरकार ने इस स्थान की घेराबंदी करवाते हुए ढांचे के अंदर का हिस्सा मुसलमानों को नमाज के लिए तथा बाहर का हिस्सा हिन्दुओं को पूजा अर्चना के लिए दे दिया।
सन् 1860
डिप्टी कमिश्नर फैजाबाद की अदालत में ढांचे के खादिम मीर रज्जब अली ने एक एप्लीकेशन लगाई कि परिसर में एक निहंग सिख ने निशान साहिब गाड़कर एक चबूतरा बना दिया है, वह हटाया जाए।
सन् 1877
मुसलमानों को ढांचे में जाने के लिए दूसरा रास्ता दे दिया गया।
15 जनवरी 1855
निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने चबूतरा, जहॉं पूजा अर्चना होती थी, अदालत से वहॉं मंदिर बनवाने की अनुमति मांगी।
इसी वर्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई।
24 फरवरी 1885
फैजाबाद की जिला अदालत ने महंत रघुबर दास की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह जगह ढांचे के बेहद निकट है। चबूतरे पर रघुबर दास का कब्जा है। दीवार उठाकर चबूतरे को अलग किया जा सकता है, लेकिन मंदिर नहीं बना सकते।
17 मार्च 1886
जिला जज फैजाबाद कर्नल कैमियर ने माना कि ढांचा हिन्दुओं के पवित्र स्थान पर बना है। साथ ही कहा कि अब देर हो चुकी है। 356 वर्ष पुरानी गलती को सुधारना उचित नहीं। सभी पक्ष यथास्थिति बनाए रखें।
20-21 नवम्बर 1912
बकरीद पर अयोध्या में गोहत्या के विरुद्ध पहला दंगा हुआ। 1906 से ही यहॉं म्यूनिसिपल कानून के अंतर्गत गोहत्या बैन थी।
मार्च 1034
शाहजहॉंपुर में गोहत्या को लेकर दंगे हुए। हिन्दुओं ने इस्लामिक ढांचे को तोड़ने के प्रयास किए। ढांचे का गुम्बद और दीवार क्षतिग्रस्त हुए। अंग्रेजी सरकार ने बाद में इसकी मरम्मत करायी।
सन् 1936
इस बात की कमिश्नरी जांच कराई गई कि क्या इस्लामिक ढांचा बाबर ने बनवाया था।
20 फरवरी 1944
आधिकारिक गजट में यह जांच रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें माना गया कि इस्लामिक ढांचा बाबर ने ही बनवाया था।
22-23 दिसम्बर 1949
ढांचे के अंदर रामलला प्रकट हुए। मामला गर्माया। दोनों पक्षों ने केस दायर किए। सरकार ने इमारत में ताला लगाते हुए कुर्की के आदेश दे दिए। अदालत ने पूजा अर्चना की अनुमति जारी रखी।
29 दिसम्बर 1949
फैजाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन प्रिया दत्त राम को परिसर का रिसीवर नियुक्त कर दिया गया।
6 जनवरी 1950
हिन्दू महासभा के गोपाल सिंह विशारद और दिगंबर अखाड़े के महंत परमहंस रामचंद्र दास ने फ़ैज़ाबाद अदालत में एक याचिका दायर कर जन्मस्थान पर स्वामित्व का मुक़दमा दायर किया। दोनों ने वहाँ पूजापाठ की अनुमति माँगी। सिविल जज ने भीतरी हिस्से को बंद रखकर पूजा पाठ की अनुमति देते हुए मूर्तियों को ना हटाने का अंतरिम आदेश दिया और मुस्लिम पक्षकारों को पूजा में रुकावट न डालने के लिए पाबंद किया।
अप्रैल 1955
इलाहबाद हाईकोर्ट ने 3 मार्च 1951 को सिविल जज के इस अंतरिम आदेश पर मुहर लगायी कि यहाँ पूजा अर्चना जारी रहेगी।
दिसंबर 1959
निर्मोही अखाड़े ने इस विवाद पर तीसरी याचिका दायर कर मंदिर स्थान पर अपना दावा ठोंका और स्वयं को राम जन्मभूमि का संरक्षक बताया।
18 दिसंबर 1961
सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने ढांचे में मूर्ति के विरोध में याचिका दायर की और दावा किया कि ढांचे और उसके आस पास की ज़मीन एक क़ब्रिस्तान है, जिस पर उसका दावा है। यह इस मामले में चौथा वाद था।
अगस्त 1964
जन्माष्टमी के अवसर पर मुंबई में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई। इस स्थापना सम्मेलन में संघ के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर, गुजराती साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, संत तुकोजी महाराज और अकाली दल के मास्टर तारा सिंह उपस्थित थे।
8 अप्रैल 1984
दिल्ली के विज्ञान भवन में संतों का एक सम्मेलन हुआ। इसे धर्म संसद नाम दिया गया। धर्म संसद में अयोध्या में राम जन्मभूमि मुक्ति का मुद्दा उठा।
जून 1984
दिल्ली में जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए हिन्दू समूह ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनायी। इसके अध्यक्ष महंत अवैद्यनाथ और परमहंस रामचंद्र दास तथा महामंत्री नृत्यगोपाल राम इसके उपाध्यक्ष बने। देश भर में राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए रथ यात्राएं निकाली गईं।
18 सितंबर 1985
दिल्ली में जगद्गुरु रामानंदाचार्य शिवराम आचार्य के नेतृत्व में श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ। अशोक सिंघल इस न्यास के प्रबंधकर्ता और विष्णु हरि डालमिया कोषाध्यक्ष बने। स्वामी शिवरामआचार्य को न्यास का धर्मकर्ता बनाया गया।
1 फ़रवरी 1986
फ़ैज़ाबाद के वक़ील उमेश चन्द्र पाण्डेय की याचिका पर जिला जज फ़ैज़ाबाद केएम पांडे ने आदेश दिया कि ढांचे के ताले खोल दिए जाएं और हिन्दुओं को वहाँ पूजा पाठ की अनुमति दी जाए। इस निर्णय के 40 मिनट के अंदर ही सिटी मजिस्ट्रेट ने राम जन्मभूमि के ताले खुलवा दिए। मुस्लिमों ने हिन्दुओं को पूजापाठ की अनुमति मिलने का विरोध किया।
3 फ़रवरी 1986
मोहम्मद हाशिम अंसारी ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में ताला खोले जाने के जिला जज के निर्णय को रोकने की अपील की।
सैयद शहाबुद्दीन ने ताला खोले जाने के विरुद्ध 14 फ़रवरी को देश भर में शोक दिवस मनाने की अपील की।
6 फ़रवरी 86
ताला खोले जाने के विरोध में लखनऊ में मुसलमानों की एक सभा हुई, जिसमें बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के गठन की घोषणा हुई। मौलाना मुज़फ़्फ़र हुसैन को कमेटी का अध्यक्ष तथा मोहम्मद आज़म ख़ान और जफ़रयाब जिलानी को संयोजक बनाया गया।
मई 1988
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने 12 अगस्त को अयोध्या मार्च की घोषणा कर राम जन्मभूमि मंदिर में नमाज़ पढ़ने की घोषणा की।
1 फ़रवरी 1989
विश्व हिन्दू परिषद द्वारा प्रयाग में बुलायी गई धर्मसंसद ने 10 नवम्बर को प्रस्तावित मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की। इस धर्म संसद में देवराहा बाबा भी पधारे थे। इस अवसर पर अयोध्या के प्रस्तावित मंदिर का लकड़ी का मॉडल भी जारी किया गया।
मई 1989
विश्व हिन्दू परिषद ने आंदोलन को घर घर तक पहुँचाने के लिए राम शिलापूजन कार्यक्रम की घोषणा की।
1 जुलाई 1989
विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष जस्टिस देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला विराजमान के दोस्त की हैसियत से हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा कि राम मंदिर को तोड़कर उसके स्थान पर बनाए गए इस्लामिक ढांचे को वहाँ से हटाकर कहीं और ले जाया जाए। सरकार ने फ़ैज़ाबाद जिला अदालत में लंबे चले 4 मुकदमों के साथ मूल मुक़दमे को हाईकोर्ट की विशेष बेंच को स्थानांतरित कर दिया।हाईकोर्ट में सबकी एक साथ सुनवाई शुरू हुई।
अगस्त 1989
बद्रीनाथ मंदिर में शंकराचार्य स्वामी शांतानंद ने पहली शिला पूजित कर शिला पूजन कार्यक्रम की शुरुआत की। देश भर में 2,97,633 स्थानों पर शिला पूजन कार्यक्रम चला।
अक्तूबर 1989
राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में पूरे देश से लगभग तीन लाख राम शिलाएँ पहुँचाई गईं। इन रामशिलाओं का पूजन देश के हर गाँव में हुआ था।
6 नवम्बर 1989
प्रधानमंत्री राजीव गांधी गृहमंत्री बूटा सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने देवरहा बाबा से मिल कर शिलान्यास की जगह बदलने का निवेदन किया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।
9 नवम्बर 1989
प्रस्तावित मंदिर के सिंहद्वार पर शिलान्यास हुआ। कामेश्वर चौपाल ने शिलान्यास की पहली ईंट रखी।
जनवरी 1990
विश्व हिन्दू परिषद ने प्रयाग में आयोजित संत सम्मेलन में राम जन्मभूमि स्थल पर फिर से कारसेवा की घोषणा की।
जून 1990
हरिद्वार में विश्व हिन्दू परिषद की बैठक में निर्णय हुआ कि 30 अक्टूबर से अयोध्या में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा की घोषणा की।
सितम्बर को सोमनाथ से चली यह रथयात्रा 30 अक्टूबर को फ़ैज़ाबाद पहुँचनी थी।
17 अक्तूबर 1990
भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि अगर आडवाणी की रथ यात्रा रोकी गई तो वो केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लेगी।
9 अक्टूबर 1990
विवादित ज़मीन के अधिग्रहण के लिए केंद्र सरकार ने तीन सूत्रीय अध्यादेश जारी किया।
अक्तूबर 1990
भारी विरोध को देखते हुए सरकार ने BJP को भरोसे में लिए बिना उक्त अध्यादेश को तीसरे दिन ही वापस ले लिया। उधर केंद्र सरकार के कहने पर बिहार की लालू सरकार ने लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा रोकी और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया। VP सिंह की सरकार अल्पमत में आ गयी।
नवम्बर 1990
विश्व हिन्दू परिषद के कारसेवक अनेक पाबंदियों के बावजूद लाखों की संख्या में अयोध्या पहुँच गए। उन्होंने मंदिर तोड़कर बनाए गए इस्लामिक ढांचे पर तोड़फोड़ की और भगवा झंडा फहरा दिया। मुलायम सिंह सरकार ने गोलियां चलवा दीं। 40 से अधिक कारसेवक मारे गए।
7 नवंबर 1990
VP सिंह सरकार गिर गई। कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर देश के नए प्रधानमंत्री बने।
मई 1991
देश में आम चुनाव हुए। UP में BJP की सरकार बनी। केंद्र में PV नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने कार्यभार संभाला। भाजपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता मिलने से अयोध्या आंदोलन में तेज़ी आयी।
अक्तूबर 1991
उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार ने अयोध्या में मंदिर तोड़कर बनाए गए ढांचे के आस पास की 2.77 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया।
फ़रवरी 1992
उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में तोड़ दिए गए राम मंदिर परिसर के चारों और राम दीवार का निर्माण शुरू किया।
मार्च 1992
विवादित स्थल के पास 1988-89 में अधिग्रहण की गई 42.09 एकड़ ज़मीन रामजन्मभूमि न्यास को रामकथा पार्क के लिए सौंप दी गई।अधिग्रहण की गई उस ज़मीन पर बने सभी मंदिर आश्रम और भवनों को तोड़कर वहाँ ज़मीनों के समतलीकरण का काम शुरू हुआ। मुस्लिम पक्ष ने इस पर हाईकोर्ट से रोक लगाने की माँग की। जिसे मानने से कोर्ट ने मना कर दिया।
9 जुलाई 1992
विश्व हिन्दू परिषद ने कारसेवा फिर शुरू की।
24 नवम्बर 1992
राज्य सरकार को बताए बिना केंद्र सरकार ने केंद्रीय सुरक्षा बलों की एक कंपनी को अयोध्या भेजा। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने एतराज़ जताया। केंद्र और राज्य में इस पर तनाव बढ़ा।
नवम्बर 1992
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ढांचे की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेते हुए एक हलफ़नामा दाख़िल किया कि अयोध्या में कोई स्थाई निर्माण नहीं होगा। सुप्रीमकोर्ट ने अपना एक पर्यवेक्षक नियुक्त किया, जिसका काम यह देखना था कि 6 दिसंबर को प्रस्तावित कारसेवा के नाम पर वहाँ कोई स्थाई निर्माण ना हो। मुरादाबाद के जिला जज तेज शंकर अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के पर्यवेक्षक बने।
3 दिसंबर 1992
अयोध्या में 25 हज़ार अर्धसैनिक बल तैनात किए गए।
6 दिसंबर 1992
विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के कार्यकर्ताओं में ग़ुस्सा फूटा। नेतृत्व के आदेशों की अनदेखी करते हुए वहाँ उपस्थित लाखों कारसेवकों ने इस्लामिक ढांचे को गिरा दिया। देशभर में दंगे फैले। केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया।मुख्यमंत्री कल्याण सिंह बर्खास्तगी से पहले ही अपना इस्तीफ़ा सौंप चुके थे। शाम तक पूर्व मंदिरस्थल पर अस्थाई मंदिर बना मूर्तियाँ फिर से स्थापित कर दी गईं।
6 दिसंबर 1992
दो एफ़आइआर ढांचा विध्वंस के विरुद्ध राम जन्मभूमि थाने में दर्ज की गईं।
15 दिसंबर 1992
केंद्र सरकार ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश की चुनी हुई BJP सरकारों को बर्खास्त करनदिया। आडवाणी समेत 6 लोगों को गिरफ़्तार करके ललितपुर जेल भेज दिया गया।
13 दिसंबर 1952
ढांचे को ढहाने और उसके बाद फैले दंगे की जाँच के लिए लिब्राहन आयोग का गठन हुआ। 30 जून 2009 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी।
7 जनवरी 1993
अयोध्या में राम जन्मभूमि परिसर की 67.7 एकड़ ज़मीन का केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से अधिग्रहण किया, इसमें एक अस्थाई मंदिर भी था। इसी दिन राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 ए के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भी किया, कोर्ट बताए कि क्या विवादित ढांचे के नीचे कभी कोई मंदिर था और वहाँ मंदिर तोड़कर मस्जिद बनायी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद इस रेफरेंस को यह कहते हुए लौटा दिया कि वह इस पर राय नहीं दे सकता।
मार्च 1993
ढांचे को गिराने की प्रतिक्रिया में मुंबई में बम धमाके हुए। इस विस्फोट और उसके बाद हुए दंगों में हजारों लोग मारे गए।
फ़रवरी 2002
विश्व हिन्दू परिषद ने मंदिर निर्माण फिर से शुरू करने के लिए 15 मार्च की अंतिम तारीख़ तय की। देशभर से कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा होने लगे। कारसेवकों को वापस ले जा रही साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे एस6 पर गुजरात के गोधरा में हमला किया गया। उस हमले में कारसेवक ज़िंदा जला दिए गए। इस घटना के बाद पूरे गुजरात में दंगे फैल गए, जिनमें हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई।
अप्रैल 2002
इलाहाबाद हाईकोर्ट में तीन जजों की विशेष बेंच में इस बात की सुनवाई शुरू हुई कि विवादित स्थल पर किसका अधिकार है।
5 मार्च 2003
इलाहाबाद हाईकोर्ट की विशेष बेंच ने ASI को इस बात की जाँच करने को कहा कि क्या वहाँ पहले कोई मंदिर था?हाईकोर्ट ने एएसआई से कहा कि वह खुदाई कर इस बात का पता लगाए। ASI को मस्जिद के नीचे ग्यारहवीं सदी के एक मंदिर होने के साक्ष्य मिले।
30 सितंबर 2010
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दायर की गई चार याचिकाओं पर निर्णय सुनाया। इस निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा कि विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बाँट दिया जाए– एक तिहाई हिस्सा रामलला को दिया जाए, जिसका प्रतिनिधित्व हिन्दू महासभा के पास है। एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दिया जाए और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए।
दिसंबर में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट गए।
मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने ज़मीन के बँटवारे पर रोक लगा दी और कहा कि इस स्थिति को पहले की तरह ही बने रहने दिया जाए।
मई 2014
लोकसभा के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की और केंद्र की सत्ता में आई।
जून 2015
विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलाओं को फिर इकट्ठा करने का आह्वान किया। छह महीने बाद दिसंबर में दो ट्रक शिलाएँ पहुँच भी गयीं। उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने कहा कि वो अयोध्या में शिलाओं को लाने की अनुमति नहीं देंगे।
8 फ़रवरी 2018
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को दो सप्ताह में अपने अपने दस्तावेज़ तैयार करने का आदेश दिया। साथ ही यह भी कहा कि इस मामले में अब कोई नया पक्षकार नहीं जुड़ेगा।
14 मार्च 2018
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अनावश्यक दख़ल से बचाने के लिए मुख्य पक्षकारों के अलावा बाक़ी सारे पक्षों की ओर से दायर सभी 32 हस्तक्षेप अर्जियों को ख़ारिज कर दिया। अब वही पक्षकार बचे जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय में शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर दोनों पक्ष समझौते के लिए राज़ी हैं तो कोर्ट इसकी अनुमति दे सकता है। लेकिन वो किसी पक्ष को विवश नहीं कर सकता।
9 जनवरी 2019
मामले की सुनवाई के लिए पाँच जजों की बेंच का गठन हुआ। इस बेंच के अध्यक्ष चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई बनाए गए। इसके साथ ही बेंच में बोबड़े, रमन्ना, UU ललित और डीवाई चंद्रचूड को शामिल किया गया।
25 जनवरी 2019
जस्टिस UU ललित के बेंच से अलग होने के बाद नई बेंच का गठन हुआ। चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में इस बेंच में बोवड़े, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस अब्दुल नज़ीर को शामिल किया गया।
29 जनवरी 2019
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन देकर विवादित परिसर वाली ज़मीन को उसके मूल मौलिक मूल मालिक को देने की अनुमति माँगी।
26 फ़रवरी 2019
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से विवाद के हल के लिए मध्यस्थता की संभावना टटोल लेने को कहा।
11 जुलाई 2919
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर इस मामले का निपटारा मध्यस्थता के माध्यम से नहीं होता है तो कोर्ट प्रतिदिन इस मामले की सुनवाई करेगा और उसके आधार पर निर्णय सुनाएगा। मध्यस्थता पैनल से उसकी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया।
2 अगस्त 2019
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल इस मामले को निपटाने में असफल रहा है। अब इस मामले की सुनवाई 6 अगस्त से प्रतिदिन दोबारा शुरू होगी।
6 अगस्त 2019
सुप्रीम कोर्ट में मामले की प्रतिदिन सुनवाई शुरू हुई। 40 दिन तक लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीमकोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया।
9 नवंबर 2019
सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें उसने इस्लामिक ढांचे को राम का जन्मस्थान माना और ज़मीन रामलला विराजमान को दे दी। इससे जन्मस्थान पर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ हो गया।
कोर्ट ने कहा कि सरकार एक ट्रस्ट बनाकर मंदिर का निर्माण करवाए। परिसर पर सरकार का क़ब्ज़ा होगा। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को मस्जिद के लिए अयोध्या में किसी दूसरी जगह 5 एकड़ ज़मीन दे दी जाए। कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के दावे को ख़ारिज कर दिया। यह निर्णय 5 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से दिया।
5 फ़रवरी 2020
सुप्रीम कोर्ट से आए निर्णय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। ट्रस्ट में 15 सदस्य बनाए गए। जिनमें से 12 को भारत सरकार द्वारा नामित किया गया और 3 को 19 फ़रवरी 2020 को आयोजित ट्रस्ट ने अपनी पहली बैठक में चुना।
5 अगस्त 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन कर 12:44 मिनट पर मंदिर की आधारशिला रखी।
1 जून 2022
प्रस्तावित मंदिर के गर्भगृह की पहली शिला रखी गई।
सितम्बर 2023
गर्भगृह पूरा हुआ।
22 जनवरी 2024
रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजेंगे, उनकी प्राण प्रतिष्ठा होगी।