रानी अहिल्याबाई होल्कर ने संत जैसा जीवन जीते हुए भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधा- मनोज कुमार

रानी अहिल्याबाई होल्कर ने संत जैसा जीवन जीते हुए भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधा- मनोज कुमार

रानी अहिल्याबाई होल्कर ने संत जैसा जीवन जीते हुए भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधा- मनोज कुमाररानी अहिल्याबाई होल्कर ने संत जैसा जीवन जीते हुए भारत को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधा- मनोज कुमार

लखनऊ। अखिल भारतीय साहित्य परिषद अवध प्रान्त की ओर से मंगलवार (17 सितम्बर, 2024) को हिन्दी संस्थान, लखनऊ के मुंशी प्रेमचन्द्र सभागार में ‘अहिल्या बाई होल्कर का जीवन दर्शन’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री मनोज कुमार ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर सामाजिक परिवर्तन की वाहक थीं। उन्होंने घुमन्तू समाज के उत्थान के लिए काम किया। भीलों के लिए भील कौड़ी की शुरुआत की और उन्हें कृषि के लिए प्रेरित किया। वह युद्ध क्षेत्र में स्वयं जाकर सैनिकों का उत्साह बढ़ाती थीं। उन्होंने महिलाओं की सेना का गठन किया। राज्य की आय कैसे बढ़ सकती है, इसके लिए आर्थिक सुधार किये। महारानी ने उद्योग, व्यापार व आर्थिक उन्नति का ढांचा तैयार किया। 

सह संगठन मंत्री ने कहा कि संत स्वरूपा पुण्यश्लोका लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर साक्षात देवी थीं। संत जैसा जीवन जीते हुए उन्होंने साधना के साथ शासन किया। उनकी राजाज्ञाओं पर ‘श्री शंकर आज्ञा’ लिखा रहता था। गायों को चरने के लिए भूमि खाली छोड़ने और पक्षियों व मछलियों के लिए दाना डालने की व्यवस्था थी। अहिल्याबाई सर्वभूत हिते रत: अर्थात सबके कल्याण के लिए वह काम करती थीं। पूरी प्रजा उन्हें माँ मानती थी। इसलिए वह लोकमाता कहलायीं। सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दृष्टि से देखें तो उन्होंने मुगल साम्राज्य के कारण ध्वस्त हो चुके तीर्थस्थलों का पुनर्निर्माण कराया। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुशील चन्द्र त्रिवेदी ने कहा कि मुगल साम्राज्य के विपरीत छोटे राज्य बनाकर संघर्ष करके अहिल्याबाई होल्कर ने देश में सांस्कृतिक एकता का परचम लहराया। डॉ. त्रिवेदी ने कहा पिछले 2 हजार वर्षों में देश में सांस्कृतिक एकता के लिए अहिल्याबाई ने सर्वाधिक कार्य किए। उन्होंने कहा सनातन व भारतीयता को छोटे में नहीं लेना है। समाज में सिद्धि लाने के लिए हमें मिलना होगा, तब भारत स्वयं सिद्ध हो जायेगा।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. पवन पुत्र बादल ने कहा कि रिश्तों की सुगंध केवल भारत में ही मिलती है। भारत की कुटुम्ब परम्परा को तोड़ने के लिए षड्यंत्र हो रहे हैं। भारत की परिवार व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए अनेक सीरियल बनाये जा रहे हैं। डॉ. पवन पुत्र बादल ने कहा कि हमें भविष्य की पीढ़ी को अपनी परम्परा व संस्कृति से जोड़कर रखना है। 

इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रान्तीय अध्यक्ष विजय त्रिपाठी, प्रान्त महामंत्री द्वारिका प्रसाद रस्तोगी, प्रान्त सह मंत्री डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव एवं सुशील श्रीवास्तव समेत अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।

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