राष्ट्रभक्ति ले हृदय में, हो खड़ा यह देश सारा, संकटों पर मात कर यह राष्ट्र विजयी हो हमारा- विकासराज
राष्ट्र भक्ति ले हृदय में, हो खड़ा यह देश सारा, संकटों पर मात कर यह राष्ट्र विजयी हो हमारा- विकासराज
तलवाड़ा, 18 नवम्बर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सामाजिक संगठन है। 99 वर्षों की साधना के साथ संघ 100वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। संघ की यह यात्रा संघर्षमय रही है। तीन बार संघ पर प्रतिबंध भी लगा, परन्तु पवित्र ध्येय के साथ यह धारा अविचल बढ़ती रही। ये विचार आरएसएस के विभाग प्रचारक विकासराज ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बांसवाड़ा खंड के तलवाड़ा में आयोजित पथ संचलन कार्यक्रम के अवसर पर व्यक्त किए। मुख्यवक्ता के रूप में बोलते हुए उन्होंने कहा, आज भी समय चुनौतियों से भरा हुआ है, किन्तु दृढ़ प्रतिज्ञ स्वयंसेवक अपनी भारतमाता के लिए निशि-दिन समय समर्पण के साथ समाज की सेवा में रत हो कर कार्य कर रहे हैं।
इसी का परिणाम है, आज विश्व पटल पर संघ व्याप बढ़ता जा रहा है।
इस अवसर पर उन्होंने पुण्यश्लोक रानी अहिल्याबाई होल्कर के 300वीं जयंती वर्ष पर उनके कृतित्व तथा भगवान बिरसा मुंडा के 150वें जयंती वर्ष पर उनके बलिदान का स्मरण करते हुए उनके जीवन पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा, इस वर्ष संघ ने देश के नागरिकों से पांच कर्तव्यों का आग्रह किया है। पहला है नागरिक कर्तव्य, प्रत्येक नागरिक को अपने कर्तव्य समझने होंगे। सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा से लेकर सरकार द्वारा तय, संविधान सम्मत नियमों का पालन हमारे व्यवहार में आना चाहिए। दूसरा है पर्यावरण संरक्षण, प्रकृति माँ है, हमने यदि उसका संरक्षण किया तो वह हमें पुत्रवत् संभालेगी। तीसरा है सामाजिक समरसता। भारत के सामाजिक ताने-बाने की अपनी एक विशेषता है। जाति व्यवस्था बहुत बड़े समाज को संभालने के लिए एक व्यवस्था मात्र है, परंतु स्वजाति गौरव के नाम पर समाज में जो विघटन दिखाई दे रहा है, उसे रोकना होगा। अस्पृश्यता पूर्ण रूप से पाप था, पाप है, और पाप रहेगी। ईश्वर की बनाई सृष्टि में मनुष्य मात्र एक जाति है, शेष सब व्यवस्थाएं हैं। ऐसा भाव रखकर समाज में सभी को जगाना और सबको साथ में लेकर चलने का एक स्वभाव समाजिक समरसता का है। चौथा विषय है स्व का बोध। जब तक हमें अपने स्व के प्रति गौरव का भाव उत्पन्न नहीं होगा, तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते। पांचवां विषय है कुटुंब प्रबोधन का। परिवार ऐसी व्यवस्था है जिसके कारण भारत सनातन काल से एक सक्षम संस्कृति के रूप में खड़ा है।
विश्व की कई अन्य संस्कृतियों को हमने जन्म लेते और मरते हुए देखा है, लेकिन भारतीय सनातन संस्कृति सनातन काल से जीवित है, उसका आधार परिवार व्यवस्था है। यहां परिवार का मुखिया अपना दायित्व समझता है,परिवार को पालना यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है, माता-पिता का पालन पोषण करना एक संतान का कर्तव्य है। संतान को श्रेष्ठ बनाना उससे आगे ले जाना उसे दिशा देना ये बातें केवल भारतीय संस्कृति और भारतीय कुटुंब व्यवस्था में देखने को मिलती हैं। अन्य संस्कृतियों में नहीं।
उन्होंने कहा कि इन पांच कर्तव्यों का पालन हमें दुनिया में श्रेष्ठ बना सकता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जैन संत पूज्य अजित सागर जी महाराज ने कहा कि आज समाज को जातिगत भेदों से ऊपर उठकर एक होने की आवश्यकता है। संगठित स्वरूप को ही विजयश्री मिलती है, बंटने से शक्ति कमजोर होती है।
निकला विराट त्रिवेणी संगम पथ संचलन
तलवाड़ा में आयोजित पंथ संचलन के लिए सभी स्वयंसेवक दोपहर दो बजे सीनियर स्कूल में एकत्रित हुए फिर तीन भागों में बंटकर तीन स्थानों (सन डेयरी, पावर हाउस, पुष्प वाटिका) पर पहुंचे। 4:03 बजे पथ संचलन प्रारंभ हुआ। तीनों संचलनों का गांधी मूर्ति पर 4 बजकर 22 मिनट पर विराट संगम हुआ। कस्बे में 45 स्थानों पर पुष्पवर्षा व नारों से पथ संचलन का उपस्थित जन मेदिनी ने स्वागत किया। लोग छतों पर खड़े होकर पुष्प वर्षा कर रहे थे। यह वागड़ का पहला सबसे बड़ा एक खण्ड का संचलन था। आसपास के गांवों से 5 हजार से अधिक लोग वहां पहुंचे। तलवाडा खण्ड के सभी 114 गांवों के 1750 से अधिक स्वयंसेवकों ने कदमताल व घोष के साथ भाग लिया। समापन पुनः सीनियर स्कूल में बौद्धिक व उद्धबोधन के साथ हुआ।
समापन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूज्य संत विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य संत शिरोमणि श्री 108 अजित सागर जी महाराज थे। विशिष्ट अतिथि 108 संत श्री 108 निराग सागर जी महाराज, 105 संत श्री विवेकानंद सागर जी महाराज रहे।