सत्ता की लिप्सा में राष्ट्रहित की बलि देतीं ममता

सत्ता की लिप्सा में राष्ट्रहित की बलि देतीं ममता

अजय सेतिया 

सत्ता की लिप्सा में राष्ट्रहित की बलि देतीं ममतासत्ता की लिप्सा में राष्ट्रहित की बलि देतीं ममता

कांग्रेस गंगा जमुनी तहजीब का हवाला देती रहती है, लेकिन गंगा जमुनी तहजीब पहले खिलाफत आन्दोलन के समय मालाबार में और बाद में डायरेक्ट एक्शन डे के समय कोलकाता में फर्जी साबित हो गई थी। ऐसी कोई तहजीब हिंसक लोग नहीं मानते। खिलाफत आन्दोलन से बात शुरू करते हैं। तुर्की का सुलतान इस्लामिक दुनिया का खलीफा था, जिसने पहले विश्व युद्ध में जर्मनी के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किया था। तुर्की हार गया था, तो मुसलमानों ने अफवाह फैलाई कि अंग्रेजों ने उनके इस्लामिक मजहबी गुरु ‘खलीफा’ के साथ दुर्व्यवहार करके उन्हें संधि करने को विवश किया और सत्ता से बेदखल कर दिया है। दुनियाभर के बाकी मुसलमान तो शांत थे, लेकिन भारत के मुसलमानों ने खलीफा की बहाली के लिए ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आन्दोलन शुरू कर दिया। यह शुद्ध रूप से मुसलमानों का मजहबी आन्दोलन था, लेकिन महात्मा गांधी ने न सिर्फ इस आन्दोलन का समर्थन किया, बल्कि आन्दोलन का नेतृत्व किया। खिलाफत आन्दोलन का समर्थन करके गांधी भारत में ‘इस्लामवाद’ को बढ़ावा दे रहे थे। श्रीमती एनी बेसेंट ने इस आन्दोलन को आत्महत्या करार दिया था। सर पीएस सिवास्वामी अय्यर ने इसे देश के लिए आपदा से भरा अभियान बताया था। कांग्रेस के कई हिन्दू नेताओं ने गांधी का विरोध किया, क्योंकि उन्हें लगता था कि यह मुसलमानों का आन्दोलन है। लेकिन सारे विरोध को दरकिनार करके कांग्रेस ने अपने कोलकाता अधिवेशन में खिलाफत आन्दोलन का समर्थन कर दिया था। इसी आन्दोलन के दौरान मुसलमानों ने मोपला में हिन्दुओं का कत्ल-ए-आम शुरू कर दिया। मुसलमानों को लगता था कि खिलाफत आन्दोलन सफल हो जाएगा, वे अंग्रेजों को बाहर निकाल देंगे और मोपला को इस्लामिक राज्य घोषित कर देंगे। आधिकारिक तौर पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, दस हजार से अधिक हिन्दू मार दिए गए। हिन्दू नेता सही साबित हुए। गांधी को बहुत बाद में खिलाफत आन्दोलन को समर्थन का अफसोस हुआ था।

गांधीवादियों की गंगा जमुनी तहजीब दूसरी बार उस समय अपनी मौत मर गई, जब मुस्लिम लीग ने मजहब के आधार पर पाकिस्तान की मांग के लिए 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा की, जिसमें दस से पन्द्रह हजार तक हिन्दू मारे गए, हालांकि कई स्थानों पर मरने वालों की संख्या एक लाख से अधिक बताई गई है। मुस्लिम लीग का कहना था कि मुसलमानों का हिन्दुओं के साथ सहअस्तित्व संभव नहीं है। हिन्दू और मुस्लिम दो अलग राष्ट्र हैं। यह बात जेल से छूटने के बाद वीर सावरकर ने भी कही थी। इसलिए कांग्रेस के नेता बार बार कहते हैं कि द्विराष्ट्र सिद्धांत वीर सावरकर का दिया हुआ था, मोहम्मद अली जिन्ना का नहीं। वीर सावरकर की द्विराष्ट्र की थ्योरी के उलट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कभी भारत विभाजन के विरुद्ध नहीं था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखंड भारत के पक्ष में तब भी था, आज भी है। संघ और वीर सावरकर को एक ही पलड़े में तोलने वाले राहुल गांधी जैसे इतिहास से बेखबर कांग्रेसी नेता मतभेदों की इन बारीकियों को कभी नहीं समझ पाए। लेकिन वीर सावरकर ही नहीं, बाद में सरदार पटेल की भी एक सोच बनी थी कि अगर रिलिजन के आधार पर द्विराष्ट्र बन ही रहे हैं, तो हिन्दू-मुस्लिम का सही से विभाजन होना चाहिए। द्विराष्ट्र का सिद्धांत सही से लागू नहीं किया गया, इसलिए भारत पिछले 75 वर्षों से सैकड़ों दंगों, हिन्दुओं के धार्मिक जुलूसों पर पत्थराव के अलावा हाल ही तक शाहीन बाग और मुर्शीदाबाद जैसी समस्याओं को झेल रहा है।

अगर इसे मुस्लिम लीग की मांग के अनुसार ही अक्षरशः माना जाता, तो आज भारत में जगह-जगह और बार-बार हिन्दू-मुस्लिम दंगों की स्थिति पैदा नहीं होती। गलती कहां हुई? गलती फिर महात्मा गांधी के स्तर पर हुई, जब उन्होंने मुस्लिम लीग के सह-अस्तित्व को नकारने की सच्चाई को स्वीकार नहीं किया। पिछले दिनों बिहार में राहुल गांधी ने जब एक भाषण में कहा कि गांधी और नेहरू सच्चाई से मोहब्बत करते थे, तो आश्चर्य हुआ। वे दोनों ही सच्चाई से मोहब्बत नहीं करते थे, बल्कि सच्चाई से मुंह छुपाते थे। गांधी और नेहरू ने तो यह सच्चाई भी स्वीकार नहीं की थी कि देश की एक भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री बनाने की सिफारिश नहीं की थी, जब कि 15 में से 12 कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाना चाहा था, क्योंकि कांग्रेस कमेटियां नेहरू और पटेल में अंतर जानती थीं। सरदार पटेल उन लोगों में से थे, जो चाहते थे कि अगर मजहबी आधार पर अलग देश बन रहा है, तो फिर सारे मुसलमानों को पाकिस्तान जाना चाहिए और हिन्दुओं को शान्ति से रहने देना चाहिए। लेकिन गांधी और नेहरू ने उनकी बात नहीं मानी। सरदार पटेल का वह दर्द बंटवारे के बाद एक नहीं कई बार झलका। स्वाधीनता के सिर्फ 13 दिन बाद 28 अगस्त को जब मुसलमानों ने संविधान सभा में अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की, तो सरदार पटेल ने संविधान सभा में जो कहा था, उसका एक छोटा अंश मैं हू-ब-हू प्रस्तुत कर रहा हूं। उन्होंने कहा था-अगर जो प्रक्रिया अपनाई गई थी (बंटवारे के लिए हिंसा का रास्ता), जिसके परिणामस्वरूप देश अलग हुआ, उसे दोहराया जाना है, तो मैं कहता हूं जो लोग उस तरह की चीज चाहते हैं, उनके लिए पाकिस्तान में जगह है, (यानि भारत में फिर से हिंसा करने वाले मुसलमान पाकिस्तान चले जाएं) यहां नहीं (यानि ऐसे मुसलमानों के लिए भारत में जगह नहीं है)। यहां, हम एक राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं और हम एक राष्ट्र की नींव रख रहे हैं, और जो लोग फिर से विभाजन करना चाहते हैं और विघटन के बीज बोना चाहते हैं, उनके लिए यहां कोई जगह नहीं होगी, अब अगर आपको लगता है कि आरक्षण का अर्थ आवश्यक तौर पर यह खंड है, तो आप दोनों तरह से नहीं चल सकते। (पाकिस्तान भी और भारत में आरक्षण भी), इसलिए मेरे दोस्तों आपको अपना दृष्टिकोण बदलना होगा, स्वयं को बदली हुई परिस्थितियों के अनुकूल बनाना होगा और यह कहने का दिखावा न करें कि ‘ओह, हमारा आपसे बहुत स्नेह है। हमने आपका स्नेह देखा है।… अपने आप से पूछें कि क्या आप वास्तव में यहां खड़े होकर हमारे साथ सहयोग करना चाहते हैं या आप फिर से विघटनकारी रणनीति अपनाना चाहते हैं। इसलिए जब मैं आपसे अपील करता हूं, तो मैं आपसे अपने हृदय में बदलाव लाने की अपील करता हूं, न कि जुबान बदलने की, क्योंकि यहां इससे कोई लाभ नहीं होगा।…. मेरा सुझाव है कि आप उन दिनों को न भूलें, जब आपने जिस तरह के (हिंसक) आंदोलन किए थे, वे बंद हो गए हैं और हम एक नया अध्याय शुरू कर रहे हैं। इसलिए, मैं एक बार फिर आपसे अपील करता हूं कि आप बीती बातों को भूल जाएं। भूल जाएं कि क्या हुआ। आपको जो चाहिए था, वो मिल गया। आपको एक अलग राज्य (देश) मिल गया है और याद रखिए, आप ही वो लोग हैं जो इसके लिए जिम्मेदार थे, न कि वो लोग जो पाकिस्तान में रह गए, आपने आंदोलन का नेतृत्व किया। आपको मिल गया। अब आप क्या चाहते हैं? मुझे समझ में नहीं आता। बहुसंख्यक हिंदू प्रांतों में आपने, अल्पसंख्यकों ने, आंदोलन का नेतृत्व किया। आपने विभाजन करवाया और अब फिर से आप मुझसे कहते हैं और छोटे भाई का स्नेह पाने के लिए मुझे फिर से वही बात माननी चाहिए, देश को विभाजित हिस्से में फिर से विभाजित करना चाहिए। (यानि आप भारत को फिर से विभाजित करना चाहते हैं) भगवान के लिए, समझिए कि हमें भी कुछ समझ है। आइए हम बात को अच्छी तरह से समझें। इसलिए, जब मैं कहता हूं कि हमें अतीत को भूल जाना चाहिए, तो मैं ईमानदारी से कहता हूं… पारस्परिक आदान-प्रदान होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं है, तो आप मेरी बात मान लीजिए कि कोई भी नरम शब्द आपके शब्दों के पीछे छिपी हुई बात को नहीं छिपा सकता।’

संविधान सभा में दिया गया सरदार पटेल का भाषण उनकी आशंकाओं को प्रकट करने वाला था, वह गांधी और नेहरू के कारण संयमित थे, जिन्होंने मुसलमानों को भारत में ही रहने के लिए प्रेरित किया, वरना जो मुसलमान भारत में रह गए, बंटवारा उन्होंने ही करवाया था, यह बात सरदार पटेल ने संविधान सभा में साफ-साफ शब्दों में कही थी। सरदार पटेल को पता था कि जिन्होंने बंटवारा करवाया था, वे आगे जाकर फिर हिन्दुओं को अमन शान्ति से रहने नहीं देंगे। इसलिए 6 जनवरी, 1948 को लखनऊ में उन्होंने फिर कहा ‘मैं स्पष्ट तौर पर मुसलमानों से कहना चाहता हूं कि भारत के प्रति देश भक्ति की घोषणा काफी नहीं होगी, इसका व्यावहारिक प्रमाण देना होगा। एक ही नाव में, आप दो घोड़ों की सवारी नहीं कर सकते। जो लोग पाकिस्तान जाना चाहते हैं, उन्हें वहां चले जाना चाहिए और शांति से रहना चाहिए, लेकिन यहां के लोगों को भी शांति से रहना चाहिए और प्रगति के काम में योगदान देना चाहिए।’

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