संघ को समझने के लिए उसके तौर-तरीकों को समझना आवश्यक
अवधेश कुमार
संघ को समझने के लिए उसके तौर-तरीकों को समझना आवश्यक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की दो दिवसीय बैठक 26 अक्टूबर को सम्पन्न हो गई। बैठक के अंतिम दिन पत्रकार वार्ता में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने अनेक विषयों पर बात की, जिनमें हिन्दू एकता का विषय भी शामिल था। मीडिया ने इस विषय को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान, बंटेंगे तो कटेंगे का समर्थन बताते हुए सर्वाधिक प्रमुखता दी। संघ पिछले 99 वर्षों से हिन्दू समाज की एकता के लक्ष्य पर काम कर रहा है, तो इस वक्तव्य का समर्थन न करने का कोई कारण भी नहीं। एक प्रश्न के उत्तर में सरकार्यवाह होसबाले ने कहा था कि संघ हमेशा से हिन्दू एकता पर काम करता रहा है, हमें एकता का प्रयत्न करना होगा, इसे आचरण में लाना है। हम जाति, भाषा, प्रांत, अगड़े पिछड़े में बटेंगे तो कटेंगे। हिन्दू समाज की एकता संघ के लिए जीवन वृत्त है। हम इसके लिए आग्रहपूर्वक कहेंगे और करेंगे भी। उन्होंने आगे कहा कि अपने को बचाए रखने और दुनिया का मंगल करने के लिए हम हिन्दू एकता चाहते हैं, हिन्दू एकता लोक कल्याण और सबको सुख प्रदान करने वाली यानी हिन्दू एकता का लक्ष्य किसी मजहब, पंथ या देश का विरोध नहीं बल्कि संपूर्ण मानवता का कल्याण और विश्व का मंगल है। वे एक नहीं रहेंगे तो स्वयं कटेंगे, विश्व के लिए भी अमंगलकारी होगा। इसलिए राजनीति और वोट की दृष्टि से इसका महत्व है, क्योंकि विपक्षी पार्टियों और भारत विरोधी आंतरिक व बाहरी शक्तियों ने उन्हें जाति के आधार पर बांटकर अपने राजनीतिक, आर्थिक व अन्य लक्ष्य पाने का आधार बनाया हुआ है। भारत विरोधी शक्तियों ने यह समझा है कि हिन्दू यदि जातियों से ऊपर उठकर हिन्दू के रूप में विचार करने लगा तो भारत को विश्व की प्रमुख महाशक्ति और प्रभावी देश बनने से नहीं रोका जा सकता। ऐसा हो गया तो वो अपने स्वार्थों को पूरा करने वाली, जैसी विश्व व्यवस्था बनाए रखना चाहते हैं, नहीं बना पाएंगे। इसलिए यह कामना कि हिन्दू समाज एक होकर सोचे, चुनावों के दौरान मतदान करे तथा जाति, प्रांत, भाषा में न बंटे यह भारत के हित में ही है। हालांकि दत्तात्रेय के पूरे वक्तव्य में राजनीति और चुनाव की बात नहीं थी। यह हो भी नहीं सकती क्योंकि जिन लोगों ने निष्पक्षता से संघ को देखा व जाना है, उन्हें पता है कि मीडिया और हम जिस प्रकार वोट और राजनीति को अपनी सोच में सर्वोपरि रखते हैं, वैसा संघ में नहीं होता।
कार्यकारी मंडल की बैठक संघ की प्रमुख वार्षिक बैठकों में से एक होती है, जिसका आयोजन सरसंचालक के विजयदशमी वक्तव्य के बाद होता है। इसमें भविष्य की दृष्टि से लक्ष्य निर्धारित होते हैं तथा पिछले वर्ष के कार्यों का लेखा-जोखा भी रखा जाता है। जैसा कि पत्रकार वार्ता में सरकार्यवाह होसबाले ने बताया भी कि पिछले मार्च में हुई प्रतिनिधि सभा की समीक्षा की गयी। शाखा में आने वाले व हर समूह के कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण वर्ग आयोजित हुए, इस वर्ष कार्यकारी मंडल बैठक से पूर्व दो दिन का प्रांत टोली का प्रशिक्षण वर्ग हुआ। वर्तमान संदर्भ और संघ से जुड़े विविध आयामों के कार्य विस्तार पर चर्चा के साथ आने वाले दिनों में हमें क्या-क्या करना है, नये विचार कैसे जुड़ेंगे, समाज के नये व्यक्तियों को कैसे जोड़ना है, विभिन्न आयु वर्ग के लोगों को जोड़ना और जुड़े हुए लोगों से कार्य विस्तार कैसे हो, इसकी भी चर्चा बैठक में हुई है। संघ 99 वर्ष पूर्ण करते हुए शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुका है। शताब्दी की दृष्टि से तत्काल संघ पंच परिवर्तन का मुद्दा लेकर समाज के बीच जा रहा है। पंच परिवर्तनों में स्व आधारित जीवन शैली, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण और नागरिक कर्तव्य शामिल हैं। यह ऐसा विषय है, जिस पर केंद्रित होकर भारत का कोई संगठन काम नहीं करता। समस्या यह है कि हमारे राजनीतिक दल, मीडिया तथा बुद्धिजीवियों और एक्टिविस्टों का बहुत बड़ा वर्ग अज्ञानता , निहित स्वार्थों या संकुचित दृष्टि के कारण संघ की आलोचना करता है और संघ खंडन या स्पष्टीकरण में पड़ने की जगह लक्ष्य के अनुरूप काम करता रहता है। इसी कारण उसका सतत् विस्तार भी हुआ है। होसबाले ने सही कहा कि संघ के कार्य का मूल आधार है शाखा। कुछ आंकड़े देखिए। इस समय 45 हजार 411 स्थानों पर 72,354 शाखाएं चल रही हैं। पिछले वर्ष की तुलना में 3626 स्थान और 6645 शाखाएं बढ़ी हैं। साप्ताहिक मिलन की संख्या 29 हजार 369 रही। यानी पिछले वर्ष से 3 हजार 147 अधिक की वृद्धि। जहां शाखा नहीं लगती वहां मासिक संघ मंडली का काम है। अभी 11 हजार 382 स्थानों पर संघ मंडली है, जो पिछले वर्ष से 750 अधिक है। इस तरह कुल मिलाकर देखें तो अभी 1 लाख 13 हजार 105 ईकाइयों के रूप में संघ है। कार्यकारी मंडल की बैठक के बाद 27 अक्टूबर को क्षेत्र व प्रांत प्रचारकों की बैठक हुई, जिसमें पंच परिवर्तन के विषय को समाज के अंतिम पायदान पर कैसे पहुंचाया जाए, इसका लक्ष्य तय हुआ यानी कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से संयुक्त परिवारों को बचाने के लिए स्वयंसेवक घर-घर जाएंगे, परिवार आपस में संवाद बनाए रखें, एक साथ भोजन की परंपरा निभाएं, इसके लिए लोगों को समझाएंगे। इसी तरह पर्यावरण रक्षा के प्रति प्रत्येक व्यक्ति को सचेत करना तथा नागरिक कर्तव्य समझाना है। सामाजिक समरसता और स्वदेशी के लिए भी लोगों को जागरूक करने का लक्ष्य तय हुआ। जैसा हम जानते हैं कार्यकारी मंडल में ओटीटी प्लेटफॉर्म और इंटरनेट को लेकर गहरी चिंता प्रकट की गई, जो भारत के पारिवारिक, सामाजिक विभाजन, कुसंस्कार पैदा करने तथा अन्य प्रकार की अवांछित गतिविधियों का कारण बन रहा है। यह भी तय किया गया कि आपत्तिजनक सामग्रियों के बारे में बच्चों पर पड़ने वाले कुसंस्कारों की जानकारी देनी है। सरसंघचालक ने विजयदशमी के वक्तव्य में इसकी चर्चा की थी, कार्यकारी मंडल में फिर यह विषय उठा। सरकार्यवाह होसबाले ने पत्रकार वार्ता में इसे रखा। सरकार्यवाह का कहना था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए, पर इस पर एक नियामक भी बनाने की आवश्यकता है। सरकार तो इस ओर ध्यान देगी ही, समाज को भी संस्कारों में वृद्धि करके इस ओर ध्यान देना चाहिए। कौन संगठन इतने बड़े खतरे को देखते और समझते हुए भी इस तरफ फोकस करके काम करने को अग्रसर है? अगले दिन संघ की कार्यकारिणी की बैठक में कार्यकारी मंडल बैठक की समीक्षा की गई। कार्यकारी मंडल की बैठक में राष्ट्रीय पदाधिकारियों के साथ क्षेत्र और प्रांत के पदाधिकारी होते हैं जबकि कार्यकारिणी में अखिल भारतीय पदाधिकारी के साथ अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल होते हैं। संघ की हर बैठक में बांग्लादेश के हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा विचार के केंद्र में रहता है और इनमें भी था। अगर होसबाले ने कहा कि हिन्दू समाज को वहां से पलायन करने की आवश्यकता नहीं है, वे वहीं डटे रहें, वह उनकी भूमि है और यह भी कि जहां भी संकट आता है, हिन्दू भारत की ओर देखता है तो मानकर चलिए कि संघ अपनी क्षमता के अनुसार इसका हर स्तर पर प्रयास भी कर रहा होगा। विरोधियों को संघ की इसी कार्य पद्धति से सीखने की आवश्यकता है।
आमतौर पर राजनीति और अन्य कई क्षेत्रों के लोगों को समझ नहीं आता कि संघ के लोग बार-बार चरित्र निर्माण की बात क्यों करते हैं। दत्तात्रेय ने कहा कि संघ चरित्र निर्माण का कार्य करता है, जो केवल चर्चाओं में नहीं वरन् आचरण में दृष्टिगोचर होता है। आपदा के समय अपनी सीमाओं और संसाधनों के साथ मोर्चा संभालने में स्वयंसेवक हमेशा दिखते हैं। संघ द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, पश्चिम बंगाल में आए तूफान में 25,000 परिवारों की स्वयंसेवकों ने राहत शिविरों में सेवा की, उड़ीसा बाढ़ के दौरान 4 हजार परिवारों को स्वास्थ्य और भोजन आदि सहायता पहुंचायी, जुलाई में वायनाड़ और कर्नाटक में भूस्खलन में एक-एक हजार स्वयंसेवक लगे और सहायता कार्य किए, बड़ोदरा, जामनगर, द्वारका बाढ़ में भी स्वयंसेवकों ने भोजन आदि की व्यवस्था की, इनमें 600 मृतकों का अंतिम संस्कार भी कराया …आदि आदि। केवल हिन्दू नहीं सभी समुदायों के लोगों को उनकी पद्धति के अनुसार स्वयंसेवकों ने अंतिम संस्कार कराया तो विरोधी विचारें कि उनके द्वारा बार-बार संघ को सांप्रदायिक या दूसरे मजहबों का विरोधी बताना क्या झूठ नहीं?