कर्नाटक में मुसलमानों को ओबीसी में आरक्षण:’अतिरिक्त लाभ’ पर उठे प्रश्न

कर्नाटक में मुसलमानों को ओबीसी में आरक्षण:'अतिरिक्त लाभ' पर उठे प्रश्न

कर्नाटक में मुसलमानों को ओबीसी में आरक्षण:'अतिरिक्त लाभ' पर उठे प्रश्नकर्नाटक में मुसलमानों को ओबीसी में आरक्षण:’अतिरिक्त लाभ’ पर उठे प्रश्न

देश में इस समय लोकसभा चुनाव चल रहे हैं और आरक्षण का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। अलग—अलग ‘आका’ इस जिन्न को अपने—अपने हित साधने के लिए अलग—अलग आदेश दे रहे हैं। कहीं यह सोशल मीडिया पर फर्जी वीडियो से बाहर निकलता दिखाई दे रहा है, तो कहीं सरकारी दस्तावेजों से निकल कर सत्तासीन पार्टी की वास्तविकता जनता के सामने लाने का काम कर रहा है।

यहां बात हो रही है कर्नाटक सरकार और वहां सत्तासीन कांग्रेस पार्टी की। गत माह राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर जानकारी दी है कि कर्नाटक सरकार के पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को जानकारी दी है कि राज्य में मुस्लिम जनसंख्या 12.92 प्रतिशत है और राज्य सरकार ने मजहब के आधार पर मुस्लिम समुदाय की सभी जातियों को ओबीसी वर्ग की श्रेणी 2बी में आरक्षण योग्य मान कर शामिल कर लिया है। इस श्रेणी में ओबीसी के अंतर्गत चार प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने तुष्टिकरण की नीति अपनाते हुए प्रदेश के मुस्लिम समुदाय की सभी जातियों को इसमें शामिल कर लिया, जबकि सैद्धांतिक रूप से यह सही नहीं है। कारण, कि केवल कुछ ही मुस्लिम जातियां ऐसी हैं, जिन्हें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना गया है। उन्हें पहले से ही ओबीसी की अन्य श्रेणियों, जैसे 1,2ए, 3ए और 3 बी में शामिल किया हुआ है।

फिर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि श्रेणी 2बी में सभी मुस्लिम जातियों को शामिल करने की आवश्यकता क्यों पड़ी?

क्या पिछड़ी जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग एक ही प्रकार के लाभदायी समूह नहीं हैं? फिर मुसलमानों को दोहरा लाभ क्यों? और यह जो ‘अतिरिक्त लाभ’ उन्हें मिलेगा, वह किसका लाभांश काटकर या समाप्त करके उन्हें दिया जाएगा; यह ही जांच का विषय है। 

राष्ट्र्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को लंबे समय से ऐसी शिकायतें मिल रही थीं कि कर्नाटक में ओबीसी आरक्षण कोटे में अनियमितता चल रही है। छह माह पहले आयोग ने जांच की तो सामने आया कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार मुसलमानों को सरकारी नौकरियों, मेडिकल, इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश तथा अनेक सरकारी पदों पर नियुक्ति के लिए सीमा से अधिक आरक्षण दे रही है।

गत वर्ष ही पीजी मेडिकल की 930 सीटों में से 150 सीटें (लगभग 16 प्रतिशत) मुसलमानों के लिए आरक्षित कर दी गईं। इनमें वे जातियां भी शामिल हैं जो आरक्षण के दायरे में नहीं आतीं। बस, यहीं स्पष्ट हो जाता है कि ओबीसी की श्रेणी 2 बी में जो 4 प्रतिशत का ‘अतिरिक्त लाभ’ सभी मुस्लिम जातियों को दिया गया है, उसका कारण क्या है? इसकी पुन: समीक्षा की आवश्यकता है, क्योंकि समय के साथ—साथ आरक्षण नीतियों में कुछ परिवर्तन भी हुए हैं। क्या आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग ईडब्लूएस भी ओबीसी के अंतर्गत माना जाएगा? या ईडब्लूएस की श्रेणी में लाभान्वित होने वाला आर्थिक पिछड़ा व्यक्ति ‘ओबीसी’ में मजहब के आधार पर ‘अतिरिक्त लाभ’ ले लेगा।

राजनीतिक दल जब किसी राज्य या केंद्र में सत्ता में हों तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे जन प्रतिनिधि हैं और लोकतंत्र में जनहित के लिए सेवा में हैं। ऐसा जनहित किस काम का जो जनता के बीच ही भेदभाव का कारण बन जाए। क्या कर्नाटक सरकार मुस्लिमों को ‘अतिरिक्त लाभ’ देकर राज्य के अन्य धर्मावलम्बियों के साथ पक्षपात नहीं कर रही है?

ओबीसी आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर ने बताया, जब उन्होंने राज्य सरकार से पूछा कि 4 प्रतिशत की जगह मुसलमानों की सभी जातियों को 16 प्रतिशत आरक्षण क्यों दे दिया गया? सरकार के इस निर्णय से स्थानीय निकाय चुनावों पर भी असर पड़ेगा। स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 32 प्रतिशत आरक्षण है। यानि एक और अवसर मुसलमानों को बाकी जातियों के मुकाबले अधिक लाभ देने का। क्या इससे बहुसंख्यक वर्ग का वोटर नाराज नहीं होगा? ओबीसी में आरक्षण का यह ‘उपाय’ मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का एक और उदाहरण है।

राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने कर्नाटक सरकार के निर्णय पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि ऐसा निर्णय ‘सामाजिक न्याय’ के विरुद्ध है। ऐसे निर्णयों से सामाजिक न्याय के सिद्धांत कमजोर होंगे।

कानून के विशेषज्ञों का प्रश्न है कि ऐसा कैसे मान लिया जाए कि किसी भी प्रदेश के सभी मुस्लिम पिछड़े हैं। कर्नाटक सरकार का मुसलमानों से विशेष लगाव समझ से परे है।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *