संविधान की भावना और भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है सैम पित्रोदा का वक्तव्य
रमेश शर्मा
संविधान की भावना और भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है सैम पित्रोदा का वक्तव्य
काँग्रेस की सलाहकार टोली के प्रमुख सदस्य सैम पित्रोदा ने रंग, क्षेत्र और कद-काठी के आधार पर भारतीय समाज को विभाजित करने संबंधी अंग्रेजों के षड्यंत्र को एक बार फिर स्थापित करने का प्रयास किया है। अपनी सत्ता मजबूत करने लिये अँग्रेजों ने सामाजिक और क्षेत्र विभाजन का यही खेल रचा था। इस प्रकार का विभाजन भारतीय परंपरा, दर्शन और संस्कृति का तो अपमान है ही, यह भारत के संविधान की भावना के भी विपरीत है।
सैम पित्रोदा अपने वक्तव्यों को लेकर सदैव चर्चित रहे हैं। उन्होने कभी मध्यम वर्ग से अधिकतम टैक्स वसूलने की सलाह दी, तो कभी विरासत में मिली संपत्ति का एक बड़ा भाग सरकार द्वारा ले लेने की बात कही। जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अयोध्या में भगवान रामलला जन्मस्थान मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ, तब उन्होंने मंदिर को अनावश्यक बताया था। अब उनका नया वक्तव्य आया है, जिसमें उन्होंने भारत के निवासियों को उनके रंग, क्षेत्र एवं कद-काठी के आधार पर वर्गीकृत किया है और विदेशी नस्लों से जोड़ा है। सैम पित्रोदा ने अपने वक्तव्य में पूर्वी भारत के लोगों को चाइनीज नस्ल जैसा, उत्तर भारत के लोग को अंग्रेजी, पश्चिम भारत के लोगों को अरब और दक्षिण के लोगों को अफ्रीकी नस्ल जैसा माना है। सैम पित्रोदा यहीं नहीं रुके। उन्होंने यह भी कहा कि दक्षिण भारत के लोग अपेक्षाकृत अधिक बुद्धिमान होते हैं। सैम पित्रोदा इन दिनों अमेरिका में रहते हैं। उनका यह वक्तव्य वहीं से आया है। वे काँग्रेस के वरिष्ठ सदस्य और ओवरसीज काँग्रेस के अध्यक्ष हैं। काँग्रेस की यह शाखा अमेरिकी और यूरोपीय देशों में सक्रिय है। काँग्रेस के सलाहकार समूह में वे महत्वपूर्ण सदस्य हैं, स्वर्गीय राजीव गाँधी के विश्वस्त रहे हैं, उन्हें राहुल गाँधी का सलाहकार भी माना जाता है। उनके सुझावों पर काँग्रेस ने अनेक नीतिगत निर्णय लिये हैं। भारत में विभेद पैदा करने वाला उनका वक्तव्य ऐसे समय आया है, जब पूरा देश अठारहवें लोकसभा चुनाव के वातावरण में तैर रहा है। तीन चरणों का मतदान हो चुका है। चार चरणों का मतदान और होना है। लोकसभा के इस चुनाव में भी वर्ष 2019 की भाँति साँस्कृतिक राष्ट्रभाव और सामाजिक एकत्व भाव प्रबल हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले कार्यकाल में अपना पद संभालते ही इस एकत्व पर जोर दिया था। उनका नारा था- “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास”। समय के साथ अयोध्या में रामजन्म स्थान मंदिर योजना ने भी आकार लिया। अब यह मोदीजी का नारा हो या कालचक्र का अपना प्रभाव कि सामाजिक एकत्व और साँस्कृतिक राष्ट्रभाव इन दस वर्षों में अधिक मुखर हुआ है। इस वातावरण से उन राजनीतिक दलों को अपनी सफलता कुछ दूर दिखाई दे रही है, जिनका लक्ष्य केवल सत्ता है, जिसे प्राप्त करने के लिये वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। सल्तनतकाल और अंग्रेजीकाल का इतिहास गवाह है कि विदेशी शक्तियों ने भारत में अपनी जड़ें जमाने के लिए सामाजिक और क्षेत्रीय विभेद पैदा करने का ही षड्यंत्र किया था। जिसकी झलक इस चुनाव प्रचार में भी दिख रही है। सामाजिक एकत्व में सेंध लगाने के लिये पहले जाति आधारित जनगणना और मजहब आधारित आरक्षण पर जोर दिया गया फिर शब्दांतरण से मुस्लिम समाज के आरक्षण का संकेत भी आया। इंडी गठबंधन के महत्वपूर्ण घटक लालू प्रसाद यादव ने तो मुस्लिम समाज को आरक्षण देने की बात खुलकर कही। इन बातों का प्रभाव तीसरे चरण के मतदान में न दिखा। बल्कि पहले और दूसरे चरण के मतदान के रुझान में तो मीडिया ने यह अनुमान भी व्यक्त किया कि इस बार भाजपा दक्षिण भारत के केरल और तमिलनाडु में भी खाता खोल सकती है। यदि ऐसा हुआ तो संसद में विपक्ष की शक्ति वर्तमान स्थिति से कुछ कमजोर हो सकती है। इसकी भरपाई अगले चार चरणों के मतदान से ही संभव है, जो केवल और केवल सामाजिक एकत्व में सेंध लगाकर ही संभव है। यह केवल संयोग है या किसी रणनीति का अंग कि सैम पित्रोदा का वक्तव्य तीसरे चरण के मतदान के तुरन्त बाद आया। पित्रोदा ने अंग्रेजी नीति दोहराई। अंग्रेजों ने सबसे पहले आर्यों को हमलावर बताया था और उन्हें यूरोपीय नस्ल से जोड़ा था। दक्षिण भारत को उत्तर भारत से अलग बताया और वनवासियों को अफ्रीकन नस्ल से जोड़ा था। अंग्रेजों ने हर उस जगह ऐसा किया, जहॉं वे गए। अमेरिका और अफ्रीका में तो रंग के आधार पर कानून भी बनाये। दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने पहला आँदोलन रंग भेद के विरुद्ध ही किया था।
भारत में सामाजिक विभाजन को गहरा करने के लिये अँग्रेजों ने जाति, धर्म और क्षेत्र को आधार बनाया। इसी आधार पर सेना गठित की और जेल मैनुअल बनाया। अधिकांश प्रांतों में दो रेजीमेंट बनाई गईं। जैसे पंजाब रेजिमेंट भी और सिक्ख रेजीमेंट भी, राजस्थान रेजिमेंट भी और राजपूताना राइफल्स भी, मराठा रेजिमेंट भी और महार रेजिमेंट भी। अंग्रेजों ने मजहब के आधार पर मुस्लिम रेजिमेंट भी बनाई थी। सबकी भर्ती की प्राथमिकता में अंतर था।
अंग्रेजों द्वारा बोई गई इस विष बेल में खाद पानी वामपंथी विचारकों ने दिया। अंग्रेजी षड्यंत्र और वामपंथी कुतर्कों की पूरी झलक सैम पित्रोदा के बयान में है ।