हिन्दुओं की सहिष्णुता और संविधान दोनों को रौंदा गया है संभल में
रमेश शर्मा
हिन्दुओं की सहिष्णुता और संविधान दोनों को रौंदा गया है संभल में
उत्तर प्रदेश के संभल से प्रतिदिन नये समाचार आ रहे हैं। वे सभी चौंकाने वाले हैं। पहले तो संविधान के अंतर्गत न्यायालय के आदेश का पालन करने गई पुरातत्व और पुलिस टीम पर पथराव करके वापस लौटाया गया, फिर एक अतिक्रमण में मंदिर निकला, फिर एक मस्जिद सहित पूरी बस्ती में तीन सौ बिजली कनेक्शन चोरी के निकले। अब मस्जिद की बगल में एक कुँए से प्राचीन खंडित मूर्तियाँ भी निकलीं। ये सभी चिन्ह संभल में हिन्दुओं की सहिष्णुता और संविधान दोनों को रौंदने की कहानी कह रहे हैं। संभल भारत का ऐतिहासिक ही नहीं प्रागैतिहासिक नगर है। अतीत में जहाँ तक दृष्टि जाती है, संभल का उल्लेख मिलता है। सतयुग, त्रेता और द्वापर में भी संभल एक विकसित और प्रतिष्ठित नगर रहा है। मध्यकाल में संभल कितना समृद्ध और आकर्षण का नगर रहा होगा, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर आक्रमणकारी की दृष्टि संभल पर गई। संभल पर ग्यारहवीं शताब्दी से आक्रमणों का क्रम आरंभ हुआ, जो निरंतर जारी रहा। मेहमूद गजवनी के भतीजे सालार मसूद से लेकर अलाउद्दीन खिलजी, तुगलक, लोदी, बाबर, शेरशाह और औरंगजेब तक सभी के आक्रमण संभल ने झेले। इतिहास तलाशने कोई आधा दर्जन अंग्रेज इतिहासकार भी संभल आये। इन सभी उतार चढ़ावों के बीच अंग्रेजों से भारत की मुक्ति का समय आया। स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि में भारत विभाजन के समय जिन क्षेत्रों में सर्वाधिक उथल पुथल हुई उनमें संभल भी एक था। संभल से कुछ मुस्लिम नागरिक भी पाकिस्तान चले गये।
संभल में हिन्दुओं की सहिष्णुता
संभल से सभी मुस्लिम परिवार पाकिस्तान नहीं गये थे, जो मुस्लिम परिवार पाकिस्तान नहीं गये, उनको हिन्दू समाज ने सहर्ष अपनाया। अपनी सहिष्णुता का परिचय देकर न उनके घरों को छुआ और न उनके किसी मजहबी स्थल को छेड़ा। यह संभल के हिन्दुओं की आत्मीयता और सहिष्णुता ही थी कि 1947 में भारत विभाजन के बाद संभल में मुस्लिम समाज की जनसंख्या 45 प्रतिशत और हिन्दू जनसंख्या 55 प्रतिशत थी। अब पता नहीं यह मुस्लिम समाज की कोई रणनीति थी या केवल संयोग कि बँटवारे के समय संभल से जो मुस्लिम नागरिक पाकिस्तान गये थे, वे अपना पूरा परिवार पाकिस्तान नहीं ले गये थे। उनमें अधिकांश परिवार ऐसे थे जो अपने परिवार के कुछ सदस्यों को छोड़ गये थे। जो मुस्लिम बंधु संभल में रह गये थे, वे स्वयं को अकेला या असुरक्षित न समझें इसके लिये हिन्दुओं ने भाईचारे का आत्मीय वातावरण दिया। सामाजिक जीवन से लेकर सार्वजनिक जीवन तक हिन्दुओं ने सदैव मुस्लिम परिवारों को अपने साथ रखा। जो मुस्लिम संभल में रह गये थे, उन्होंने न केवल अपना घर, मकान, जमीन, जायदाद अपितु अपने निकटतम रिश्तेदारों की संपत्ति भी सहेजी थी। इसमें भी हिन्दू समाज ने कोई आपत्ति नहीं की। दोनों समाज एक दूसरे के पूरक बनकर रहने लगे और समय अपनी गति से आगे बढ़ा।
संभल का इतिहास गवाह है कि बँटवारे के समय जो मुस्लिम परिवार पाकिस्तान चले गये थे उनमें से किसी की भी संपत्ति किसी हिन्दू के पास नहीं है। और जब मुस्लिम समाज के उन लोगों ने जो पाकिस्तान चले गये थे, उनमें से कुछ लोग भारत लौटने लगे, चूँकि उनके परिजन संभल में रहते थे, इसलिये उन्हे लौटने में कोई कठिनाई नहीं हुई। उनके परिजनों के साथ हिन्दू समाज ने पाकिस्तान से लौटे मुस्लिम समाज के इन बंधुओं का स्वागत किया और प्रशासन ने भी कोई आपत्ति नहीं की। इसके साथ ही संभल की जनसंख्या के अनुपात में परिवर्तन आने लगा और समय के साथ कुछ दूरियाँ भी बढ़ने लगीं। ये दूरियाँ 1965 और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद बहुत स्पष्ट देखी गईं। युद्ध की उस विभीषिका में संभल के कुछ मुस्लिम नागरिकों का स्पष्ट सद्भाव पाकिस्तान के प्रति देखा गया। इसी के साथ संभल में साम्प्रदायिक तनाव भी झलकने लगा। कहा जाता है कि इस खिंचाव और तनाव के पीछे उन जमातों की भूमिका रही है, जो समय समय पर संभल आती रहीं। उनमें कुछ जमाती पाकिस्तान के मजहबी उलेमा रहे हैं। कारण जो भी हों, लेकिन यह खिंचाव और तनाव जो एक बार आरंभ हुआ फिर कभी कम न हुआ।
हिन्दुओं की सहिष्णुता का दमन
जिस हिन्दू समाज ने भारत विभाजन के दिनों में मुस्लिम परिवारों को अपनत्व दिया था, स्नेह, सहिष्णुता और भाईचारे का वातावरण दिया था। उसी हिन्दू समाज पर मुस्लिम समूह ने हमला बोल दिया। वह मार्च 1976 की बात है। संभल में भीषण दंगा हुआ। कहने के लिये यह दंगा था। वास्तव में तो यह एक हिंसक भीड़ द्वारा हिन्दुओं का नरसंहार था। इस नरसंहार में 184 हिन्दू मारे गये थे। इस भीषण नरसंहार के बाद जो हिन्दू बचे, उनमें से कुछ डरकर भाग गए और कुछ औने पौने दाम में अपने घर मकान बेच गये। उस भीषण नरसंहार से बचकर भागे कुछ लोग इन दिनों मुरादाबाद में रह रहे हैं। उन्होंने मीडिया को जो विवरण दिया, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है। उनका कहना था कि 29 मार्च को एक ही दिन में 46 हिन्दू मारे गये थे, उनकी आँखों के सामने हिंसक भीड़ ने सड़क पर टायरों से बाँधकर उन्हें जिंदा जलाया था। यह हिंसा लगभग पन्द्रह दिन चली। मरने वाले हिन्दुओं की संख्या 184 तक पहुँच गई। यदि इसमें दस वर्ष के साम्प्रदायिक दंगों के आँकड़े जोड़े जायें तो यह संख्या दो सौ के ऊपर बैठती है। संभल के कई मोहल्ले हैं, जिनमें जनसंख्या एक तरफा हो गई। उनमें कोई घर हिन्दू का नहीं बचा। सारे घर मुस्लिम समाज के हैं। अब संभल में जनसंख्या के अनुपात में भी जमीन आसमान का अंतर आ गया है। संभल में मुस्लिम जनसंख्या 45 प्रतिशत से बढ़कर 78 प्रतिशत हो गई है और हिन्दू जनसंख्या 55 प्रतिशत से घटकर 22 प्रतिशत रह गई है। संभल में खाली भूमि पर भी अतिक्रमण हो गये हैं। उस पर मुस्लिम समाज के मकान बन गये हैं। इन लेगों ने मंदिरों तक पर अतिक्रमण कर लिया है।
इन दिनों उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया है। इसमें दो प्राचीन मंदिर सामने आये हैं। एक मंदिर तो 1976 के दंगे में ही वीरान हुआ था। तब से खुला ही नहीं। जिस हिन्दू समाज ने भारत विभाजन के समय मुस्लिम समाज के किसी मजहबी स्थल को नहीं छुआ अपितु सुरक्षित रखने में सहयोग किया, उस हिन्दू समाज के इस मंदिर परिसर पर भी अतिक्रमण, मुस्लिम समाज के घर मकान बन गये। कुछ मूर्तियाँ खंडित करके कुएँ में फेंक दी गईं। अब प्रशासन ने इस मंदिर परिसर को मुक्त करा लिया है और कुएँ से भी मूर्तियाँ निकाल ली गई हैं।
संभल में संविधान की भावना भी रौंदी गयी
संभल में हिन्दू समाज की सहिष्णुता का ही दमन नहीं हुआ, संविधान की भावना और प्रावधान भी रौंदे गये। संभल से पिछले तीन सप्ताह से जो समाचार आ रहे हैं, उनसे लग रहा है कि संभल में मुस्लिम समाज के एक समूह को संविधान की भी कोई चिंता नहीं है। वे मानों एक भीड़तंत्र चलाना चाहते हैं। संविधान किसी भी देश की केन्द्रीभूत चेतना होती है। सभी प्रशासनिक, न्यायायिक प्रक्रिया और विधायिका ही नहीं समाज का सार्वजनिक जीवन भी संविधान से ही संचालित होता है। संविधान प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकार बोध के साथ दूसरे नागरिक के अधिकार की सीमा में अतिक्रमण न करने के प्रति भी सचेत करता है। जो इसका उल्लंघन करते हैं, वे अपराधी की श्रेणी में आते हैं। संविधान का यह उल्लंघन दो प्रकार से होता है। एक असावधानी से हो जाना और दूसरा योजना पूर्वक संविधान के विरुद्ध आचरण करना। यह गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। संभल में अतीत की जो घटनाएँ सामने आ रहीं हैं, वे सब गंभीर अपराध की श्रेणी में आती हैं। सामूहिक हिंसा करके किसी को भागने पर विवश करना, घर मकान पर अतिक्रमण करना, किसी अन्य पंथ के धर्म स्थल पर भी अतिक्रमण करना सब संविधान की भावना और संविधान के प्रावधान के विरुद्ध है। 1976 के उस भीषण नरसंहार के किसी अपराधी को कोई सजा नहीं हुई। कुछ लोग गिरफ्तार तो किये गये थे, लेकिन साक्ष्य के अभाव में सब अदालत से छूट गये। हत्या और लूट करने वाले, घर छीनने वाले आज भी खुले घूम रहे हैं। उन पर ऊंगली उठाने तक का साहस किसी को नहीं है। इस बस्ती में नल और बिजली के अधिकांश कनेक्शन अवैध हैं। लाखों रुपये की बिजली प्रतिमाह चोरी होती है। बस्ती में रहने वालों का रौब इतना है कि कोई सरकारी कर्मचारी तो दूर पुलिस का सिपाही बस्ती के भीतर नहीं घुस सकता। 24 नवम्बर को जिस बड़ी घटना से इतिहास की ये परतें खुलना आरंभ हुईं, वह परिसर किसी व्यक्ति, संस्था या समाज के नहीं भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। उस पर कोई निर्माण नहीं कर सकता। उस परिसर के बारे में माना जाता है कि वह प्राचीन हरिहर मंदिर था। हमलावर बाबर के एक सेनापति ने उसका रूपांतरण करके मस्जिद का स्वरूप देने का प्रयास किया। उस परिसर का निर्माण कुछ ऐसा था कि विश्व भर के पुरातत्वविद आकर्षित हुए। इतिहास में उपलब्ध विवरण के अनुसार 1874 में ब्रिटिश पुरातत्वविद् एसीएल कार्ल ने सर्वेक्षण किया था और इतिहासकार अलेक्जेंडर कनिंघम का मानना था कि वह हिंदू मंदिर था, जिसे परिवर्तित कर मस्जिद का स्वरूप दिया गया। इस परिसर की कलात्मकता कुछ ऐसी थी कि इस परिसर को 1920 में भारत सरकार के पुरातात्विक विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया। समय के साथ सरकार ने आदेश देकर परिसर के एक हिस्से में नमाज पढ़ने और एक हिस्से में पूजन हवन की अनुमति दे दी। लेकिन 1976 में हिंसक भीड़ ने हिन्दुओं का प्रवेश रोक दिया। जिस हवन कुण्ड में हवन होता था, उसे वुजू के लिये उपयोग किया जाने लगा। यद्यपि पुरातात्विक अधिनियम के अनुसार, उसमें कोई निर्माण नहीं हो सकता। लेकिन परिसर को पूरी तरह मस्जिद के रूप में बदलने के लिये सतत निर्माण होने लगे। पुरातात्विक टीम जब भी जाती एक भीड़ एकत्र हो जाती। भीड़ के भय से पुरातात्विक टीम ने जाना लगभग बंद कर दिया। पुरातत्व विभाग ने न्यायालय में अपनी जो रिपोर्ट प्रस्तुत की, उसमें परिसर में परिवर्तन और वहाँ जाने पर अवरोध उत्पन्न करने की बात कही। सभी पक्षों को सुनकर न्यायालय ने संविधान के प्रावधान के अनुरूप परिसर का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया। न्यायालय के आदेश पर पुलिस और प्रशासन को साथ लेकर पुरातात्विक टीम परिसर में पहुँची थी। लेकिन भीड़ ने भारी पथराव किया। हिंसा और संविधान के अनुरूप काम करने पहुँची टीम को लौटना पड़ा। उस परिसर में हिंसा करके दूसरे पक्ष को रोकना, पुरातात्विक परिसर में अपनी इच्छा से निर्माण करके उसके स्वरूप को बदलना और न्यायालय के आदेश से गई टीम को हिंसा करके लौटाना, सीधा सीधा संविधान विरोधी कार्य है। फिर भी भारत में एक राजनैतिक धारा ऐसी है, जिसे संविधान के सम्मान की नहीं अपने वोट बैंक की चिंता है। इसलिये वे नारा तो संविधान बचाने का लगाते हैं, लेकिन देश के भाईचारे को मिटाकर संविधान की भावना को रौंदने वालों का खुला समर्थन कर रहे हैं।